नवरात्र पर विशेष
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सृष्टि की जननी मां जगदम्बे के परम-प्रिय दिनों का नाम हैं नवरात्र | हर वर्ष २ बार नवरात्र होते हैं – शारदीय और वासंती | इन दिनों शारदीय नवरात्रों की धूम है | नवरात्रों में देवी दुर्गा के ९ स्वरूपों यानि नवदुर्गा की पूजा-आराधना के लिए शहर, कस्बे और गांवों के देवी मंदिरों में भक्तों की आस्था देखते ही बनती है | इस सम्बन्ध में, देवी दुर्गा (शक्ति) के शक्तिपीठ स्थलों की धार्मिक यात्रा का विशेष महत्व है, जहां देवी सती (शक्ति या दुर्गा) के पृथ्वी पर गिरे पवित्र अंग या आभूषण के प्रतिष्ठित होने की व्यापक जन-मान्यता है | हालांकि शक्तिपीठों की वास्तविक संख्या विभिन्न पुराणों, धार्मिक पुस्तकों में भिन्न-भिन्न बताई जाती है जैसे ५१, ६८, १०८ लेकिन महापीठपुराण के अनुसार देवी दुर्गा के शक्तिपीठ स्थलों की संख्या ५२ है | वस्तुस्थिति चाहे जो हो लेकिन इस बात में तनिक भी संशय नहीं कि शक्तिपीठ स्थलों के दर्शन से व्यक्ति के मन में असीम ऊर्जा का स्वतः ही संचार होता है तथा भक्तों की मनोकामनाएं मां जरुर पूरा करती हैं ।
शक्तिपीठ स्थलों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक कथा की व्यापक
मान्यता है | एक बार दक्ष प्रजापति ने अपने वहां विशेष यज्ञ का अनुष्ठान किया
लेकिन अपनी पुत्री सती तथा अपने दामाद भगवान शिव को इसमें शामिल होने का न्योता
नहीं दिया | देवी सती फिर भी इस अनुष्ठान में शामिल हुईं लेकिन वहां उनके पिता ने
भगवान शिव का घोर तिरस्कार किया, जिस पर मां सती को अपने पति भगवान शिव का यह अपमान
सहन नहीं हुआ और उन्होंने यज्ञ-कुंड में स्वयं का दाह कर लिया | इस घटना के कारण
भगवान शिव अत्यंत दुःख में डूबकर देवी सती का शव कंधे पे लिए तीनों लोकों में
विचरण करने लगे | जिससे सृष्टि के विनाश होने की आशंका के मद्देनज़र सभी देवता इस
विपदा का हल ढूंढने भगवान विष्णु के पास पहुंचे | तत्पश्चात भगवान विष्णु ने अपने
सुदर्शन-चक्र से देवी सती के शरीर को खंडित कर दिया | इसके बाद भगवान शिव का क्रोध
शांत हो गया | इस कारण देवी सती के कटे अंग और आभूषण पृथ्वी पर भिन्न-भिन्न स्थलों
पर गिरे जहां शक्तिपीठ प्रतिष्ठित हुए | कुछ जानकारों के अनुसार देवी सती को अपने
कंधे पर लिए भगवान शिव के तांडव नृत्य करने के पश्चात् देवी सती के अंग और आभूषण
पृथ्वी पर गिरे | जो भी हो, लेकिन इन शक्तिपीठों में स्वयं देवी के विराजमान होने
की जन-मान्यता है ।
५२ शक्तिपीठ :
- कामाक्षी देवी (कांचीपुरम, तमिलनाडु, भारत)
- शुचिदेश, (कन्याकुमारी, तमिलनाडु, भारत)
- श्रावणी देवी (कन्याकुमारी, तमिलनाडु, भारत) / चत्ताल भवानी (चट्टगांव, बांग्लादेश)
- सप्तश्रीन्गी देवी (नाशिक, महाराष्ट्र, भारत)
- विराजा देवी (जाजपुर, ओडिशा, भारत) / पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी, ओडिशा, भारत) / माया देवी (हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत)
- श्री सैलम (कुर्नूल, आंध्र प्रदेश) / श्री पर्वत (लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, भारत)
- गोदावरी तीर (राजमुन्द्री, आंध्र प्रदेश, भारत)
- प्रभास (वेरावल, जूनागढ़, गुजरात, भारत)
- कालमाधव (अमरकंटक, मध्य प्रदेश, भारत)
- सोनदेश (अमरकंटक, मध्य प्रदेश, भारत)
- देवी मंगलचंडी (उज्जैन, मध्य प्रदेश, भारत)
- गायत्री देवी (पुष्कर, अजमेर, राजस्थान, भारत)
- विराट (भरतपुर, राजस्थान, भारत) / विन्ध्याचल (मीरजापुर, उत्तर प्रदेश, भारत)
- सावित्री देवी (कुरुक्षेत्र, हरियाणा, भारत)
- सर्वनन्दकरी (पटना, बिहार, भारत)
- त्रिपुरमालिनी देवी (जालंधर, पंजाब, भारत) / देवी मंगलागौरी (गया, बिहार, भारत)
- ज्वालामुखी (काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश, भारत)
- महामाया देवी (अमरनाथ, जम्मू-कश्मीर, भारत)
- पंचसागर (मतभेद : माया देवी-हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत ; शाकम्भरी देवी-सहारनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत ; महुरगढ़, नांदेड़, महाराष्ट्र, भारत)
- रामगिरी (चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, भारत) / मंगलागौरी (गया, बिहार, भारत)
- कात्यायनी देवी (वृन्दावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश) / चामुन्डेश्वरी देवी (मैसूर, कर्नाटक, भारत)
- विशालाक्षी देवी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत)
- ललिता देवी (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत) / नैमिषरण्य (सीतापुर, उत्तर प्रदेश, भारत)
- जयादुर्गा वैद्यनाथ (देवघर, झारखण्ड, भारत) / अम्बाजी (बनासकांठा, गुजरात, भारत) / माया देवी मंदिर (हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत)
- दंतेश्वरी देवी (दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़, भारत)
- कामाख्या देवी (गुवाहाटी, असोम, भारत)
- त्रिपुरसुन्दरी (त्रिपुरा, भारत) / पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी, ओडिशा, भारत) / त्रिपुरसुन्दरी या तुर्तिया माता (बांसवाडा, राजस्थान, भारत)
- बहुला देवी (वर्धमान, पश्चिम बंगाल, भारत)
- उज्जानी देवी (वर्धमान, पश्चिम बंगाल, भारत)
- फुल्लारा देवी (वर्धमान, पश्चिम बंगाल, भारत)
- जुगाद्या देवी (वर्धमान, पश्चिम बंगाल, भारत)
- कंकालेश्वरी देवी (बीरभूम, पश्चिम बंगाल, भारत)
- नलतेश्वरी देवी (बीरभूम, पश्चिम बंगाल, भारत)
- नन्दीकेश्वरी देवी (बीरभूम, पश्चिम बंगाल, भारत) / मैहर देवी (सतना, मध्य प्रदेश, भारत)
- वक्रेश्वर (बीरभूम, पश्चिम बंगाल, भारत)
- विभास (मेदिनीपुर पूर्व, पश्चिम बंगाल, भारत)
- रत्नावली देवी (हुगली, पश्चिम बंगाल, भारत) / देवीपाटन (बलरामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत) / पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी, ओडिशा, भारत)
- त्रिसरोटा देवी (जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल, भारत) / पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी, ओडिशा, भारत)
- किरीट विमला देवी (मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल, भारत) / किरीट कमला देवी (सिलहट, बांग्लादेश)
- कालिका देवी (कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत)
- इन्द्राक्षी देवी (जाफना, श्रीलंका)
- दक्षयानी मानस (मान-सरोवर, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, चीन) / चत्ताल भवानी (चट्टगांव, बांग्लादेश) / महुरगढ़ (नांदेड़, महाराष्ट्र, भारत)
- गण्डकी देवी (मुस्तैंग, नेपाल)
- महामाया गुह्येश्वरी (पशुपति नाथ, काठमांडू, नेपाल)
- मिथिला (धनुषा, नेपाल)
- सुगंधा (सुनंदा) देवी (बरीसाल, बांग्लादेश)
- जयंती देवी (सिलहट, बांग्लादेश) / जयंती देवी (जयंतिया हिल्स, मेघालय, भारत)
- महालक्ष्मी श्री हट्टा (सिलहट, बांग्लादेश)
- अपर्णा देवी (बोगरा, बांग्लादेश)
- जशोरेश्वरी देवी (सतखीरा, बांग्लादेश)
- शिवहरकराय (शरकरारे या करावीपुर) (सुक्कुर, पाकिस्तान) / महालक्ष्मी देवी महिष (कोल्हापुर, महाराष्ट्र, भारत) / नयना देवी (बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश, भारत) / नैना (नैनी) देवी (नैनीताल, उत्तराखंड, भारत) / तुलजाभवानी (उस्मानाबाद, महाराष्ट्र) / हिंगलाज (लासबेला, पाकिस्तान)
- हिंगलाज (लासबेला, पाकिस्तान) / तुलजाभवानी (उस्मानाबाद, महाराष्ट्र)
आस्था अनुसार शक्तिपीठ स्थल में देवी सती (दुर्गा) स्वयं समाहित हैं, जो भक्तों के कष्ट हरती हैं | यही वजह है कि आम दिनों में तो यहाँ भीड़ होती ही है लेकिन नवरात्रों में यहाँ भारी से भारी भीड़ उमड़ती है | इस सम्बन्ध में यह बात जानना जरुरी है कि शक्तिपीठ और सिद्दपीठ में मूल अंतर यह है कि सिद्धपीठ वह स्थल हैं जहां भक्तों के मनोरथ सिद्ध होते हैं वहीं शक्तिपीठ पर देवी सती के पवित्र अंग या आभूषण विराजमान हैं जहां भक्तों के मनोरथ पूर्ण होते हैं | अतः स्पष्ट है कि सारे शक्तिपीठ सिद्धपीठ हैं लेकिन सभी सिद्धपीठ शक्तिपीठ नहीं | उपरोक्त सूची अंतिम नहीं है, क्योंकि यह व्यापक शोध पर निर्भर है | वैसे अगर आप शक्तिपीठों के बारे में गहनता से जानना चाहते हैं तो नई दिल्ली स्थित गुल्लीबाबा पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित पुस्तक “शक्तिपीठ” पढ़ सकते हैं जो इस प्रकाशन की वेबसाइट या अमेज़न डॉट इन पर उपलब्द्ध है |