ब्रज की पावन धरा में राधा और कृष्ण की लीला के सबूत आज भी दिखते हैं। पुराणों
के अनुसार गोवर्धन पर्वत उठाने के कुछ समय बाद दोनों की सगाई हुई थी। उस वक्त राधा
के पिता से मिले मोतियों को कृष्ण ने कुंड के पास जमीन में बो दिया था। तब से यहां
मोतियों के पेड़ उग आए। ज्ञात हो कि आज भी ब्रज में 84 कोस यात्रा के दौरान
लोग यहां पर मोती जैसे फल बटोरने आते हैं। असल में मोती जैसे फल देने वाले ये डोगर
(पीलू) के पेड़ हैं| हालाँकि पूरे ब्रज में कुछ ही जगह ये पेड़ हैं, लेकिन मोती जैसे फल सिर्फ
मोती कुंड के पास मौजूद पेड़ों में ही मिलते हैं। इस बाबत बरसाना के विरक्त संत
रमेश बाबा बताते हैं कि भगवान कृष्ण, राधा के साथ सांसारिक रिश्ते नहीं रहे, लेकिन गर्ग संहिता, गौतमी तंत्र समेत कई
ग्रंथों में इस महान कुंड और राधा-कृष्ण की सगाई का वर्णन है। गर्ग संहिता के
अनुसार, जब इंद्र के बारिश के प्रकोप की वजह से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण
ने गोवर्धन पर्वत उठाया था। इसके बाद राधा और कृष्ण की सगाई कर दी गई थी। सगाई के
दौरान राधा के पिता वृषभानु ने नंदबाबा को ये मोती दिए थे। तब नंदबाबा चिंता में
पड़ गए कि इतने कीमती मोती आखिर कहाँ और कैसे रखें? श्रीकृष्ण इस चिंता को
समझ गए। उन्होंने मां यशोदा से लड़कर मोती ले लिए और कुंड के पास जमीन में बो दिए।
जब यशोदा जी ने श्रीकृष्ण से पूछा कि मोती कहां है, तब उन्होंने इसके बारे
में बताया। नंदबाबा इससे नाराज हुए और मोती जमीन से निकालकर लाने के लिए लोगों को
भेजा। लेकिन जब लोग यहां पहुंचे तो देखा कि यहां पेड़ उग आए हैं और पेड़ों पर मोती
लटके हुए हैं। तब बैलगाड़ी भरकर मोती घर भेजे गए| तभी से यहां मौजूद कुंड का नाम
मोती कुंड भी पड़ गया।(साभार:भास्कर.कॉम)