सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड को
साल 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने 36 सौ करोड़ रुपए का भारी भरकम पैकेज जारी किया था. इस पैकेज के अनुसार
सूखे और जल संकट से निपटने के लिए कुछ काम तत्काल करने थे और कुछ दूरगामी योजना के
तहत कराए जाने थे. लेकिन इस रकम का जिस तरह से इस्तेमाल हुआ उसे देखकर और सुनकर विश्वास ही नहीं
होता कि ऐसा भी हो सकता है.
पहली कड़ीः सूखे बुंदेलखंड में
गांव वीरान, घरों पर ताले
यह पैकेज खास तौर पर छोटे बांध
लगाने, पेड़ लगाने और चेक डैम बनाने के लिए था. इसके लिए राज्य सरकार ने विभिन्न
विभागों को अलग-अलग जिम्मेदारियां दीं. लेकिन काम कागजों पर अधिक दिखे, ज़मीन पर कम. बीस हज़ार नए कुएं
बनाने और पुराने कुओं की मरम्मत करने के लिए पांच सौ करोड़ रुपए की सीमा तय की गई
थी. लेकिन हाल ये है कि बुंदेलखंड में नया कुआं शायद ही कहीं दिखे, और पुराने कुओं की
हालत देखकर लगता नहीं कि इनके रखरखाव पर सैकड़ों करोड़ रुपए बहा दिए गए. कुछ ऐसा ही हाल
पशुपालन विभाग का भी है. यहां बकरियां ख़रीदने के लिए स्वयं सहायता समूहों को सौ
करोड़ रुपए जारी किए गए थे. पर ख़रीददारी केवल कागजों पर ही हुई लगती है.
दूसरी कड़ीः 'घर जलते रहे, बुझाने को पानी नहीं था'
यदि पेड़ लगाने और चेक डैम की बात
करें तो वन विभाग को इसके लिए बड़ी धनराशि मुहैया कराई गई, लेकिन चेक डैम की जगह
महज़ पत्थर रखकर खानापूर्ति कर दी गई. पेड़ लगाने की बात तो छोड़ ही दीजिए. स्थानीय लोगों को इस
बात की भनक तक नहीं है कि उनके इलाक़े के विकास के लिए केंद्र सरकार ने इतनी बड़ी
धनराशि जारी की थी. स्थानीय पत्रकार आशीष सागर कहते हैं कि वास्तव में इतनी बड़ी रकम का यदि आधा
हिस्सा भी ख़र्च किया गया होता तो बुंदेलखंड की सूरत बदल गई होती.
तीसरी कड़ीः अवैध कब्ज़े ने छीन
लिया पानी
पैकेज के दुरुपयोग का अहसास तब
गंभीर रूप से हुआ जब इस पैसे से हर ज़िले में बड़ी मंडियां और गोदाम बने दिखे.
सूखे से प्रभावित इस इलाक़े के हर ज़िले में मंडियां बनाई गई हैं. लेकिन इन
मंडियों में आपको एक दाना नहीं मिलेगा. बुंदेलखंड पैकेज में कथित अनियमितताओं को लेकर
कांग्रेस नेता प्रदीप जैन आदित्य सीधे तौर पर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करते
हैं. जब ये पैकेज जारी हुआ था उस समय प्रदीप जैन झांसी से सांसद थे और केंद्र
सरकार में मंत्री भी. बीबीसी से बातचीत में उनका कहना था,
“हमने इस राशि की मॉनीटरिंग के लिए संसद से एक समिति
बनाने का आग्रह किया था, लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने बहुत विरोध किया. इसके अलावा
इस पैकेज के ख़र्च की जानकारी ऑनलाइन करने की भी बात मैंने कही थी लेकिन उसके लिए भी राज्य
सरकारें तैयार नहीं हैं.”
चौथी कड़ीः सूखा बुंदेलखंड कुछ पर
बरसा रहा है ‘सोना’
आशीष बताते हैं, "बुंदेलखंड विशेष पैकेज
से ही बांदा में चौधरी चरण सिंह रसिन बांध परियोजना बनी थी, जिसमें करीब 850
किसानों की कृषि जमीन डूब क्षेत्र की ली गई थी. लेकिन इसमें मछली पालन होता है.
किसान सिंचाई के पानी के लिए तरस रहे हैं." आशीष का कहना है कि इस
बांध के दोनों तरफ बसपा सरकार ने इको पार्क बनवा दिए और उसमें गौतमबुद्ध की
प्रतिमा लगवाई. पार्क में बने हिरन, झूले, मूर्तियां आज बदहाल और टूटी हुई हैं. यही नहीं, प्लास्टर आफ पेरिस के कई खम्भे तेज़ हवा में टूट गए. इन खंभों में बालू भरी थी. आशीष का कहना है कि यह
बुंदेलखंड पैकेज के साथ की गई बेइमानी की जीती जागती तस्वीर है. उधर, वन विभाग ने बांदा
ज़िले में कोल्हुआ जंगल में 58 लाख के ड्राई चेक डैम बनाए थे, वे भी पहली बारिश में ही बह गए.
समीरात्मज मिश्र, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम
के लिए