बैसाखी पर्व का आगमन प्रकृति के परिवर्तन का प्रतीक है जिस दिन सूर्य मीन राशि
से मेष राशि में प्रवेश कर चुका है| वास्तव में बैसाख माह के आगमन का सूचक है
बैसाखी पर्व| कुछ मान्यतानुसार हजारों साल पहले देवी गंगा इसी दिन धरती पर उतरी
थीं। उन्हीं के सम्मान में बैसाखी पर्व के रूप में हिंदू धर्मावलंबी इस पर्व को
मनाते हैं और पर्व के परंपरा अनुसार पारंपरिक पवित्र स्नान के लिए गंगा किनारे
एकत्र होते हैं। बैसाखी का यह खूबसूरत पर्व अलग अलग राज्यो में अलग-अलग नामों से
जाना जाता है। केरल में यह त्योहार 'विशु' कहलाता है। बंगाल में इसे नब बर्षा, असम में इसे रोंगाली बिहू, तमिलनाडू में पुथंडू और बिहार में इसे वैषाख के नाम से पुकारा जाता है। लेकिन बैसाखी
का पर्व पंजाब में अत्यंत धूम-धाम से मनाया जाता है क्योंकि बैसाखी के ही दिन 13
अप्रैल 1699 को सिखों के दसवें गुरु गुरुगोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना
की थी। इसलिए सिख लोग इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।
बैसाखी पर्व की खास बातें:
- किसानों के लिये महत्वपूर्ण
दिन है बैसाखी पर्व: बैसाखी का संबंध फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। इसी दिन गेहूं की पक्की
फसल को काटने की शुरूआत होती है। किसान इसलिए खुश होते हैं क्योंकि अब फसल की
रखवाली करने की उनकी चिंता समाप्त जो हो जाती है| इस दिन किसान सुबह उठकर नहा धोकर
मंदिरों और गुरुद्वारों में जाकर भगवान को अच्छी फसल होने का धन्यवाद देते हैं।
इस पर्व पर पंजाब के लोग अपने रीति रिवाज के अनुसार भांगडा और गिद्धा करते हैं।
- खालसा पंथ की स्थापना: बैसाखी के ही दिन 13 अप्रैल 1699 को सिखों के दसवें
गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को
सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं।
- मौसम के बदलाव का पर्व:
बैसाखी का पर्व जब आता है उस समय सर्दियों की समाप्ति और गर्मियों का आरंभ
होता है। इसी के आधार स्वरुप लोक परंपरा धर्म और प्रकृति के परिवर्तन से जुड़ा यह
समय बैसाखी पर्व की महत्ता को दर्शाता है।
- व्यापारियों के लिए भी
अहम दिन है बैसाखी: इस दिन देवी दुर्गा और भगवान शंकर की पूजा होती है। कई जगह व्यापारी लोग आज
के दिन नये वस्त्र धारण करके अपने बहीखातों का आरम्भ करते हैं। (साभार:नवभारतटाइम्स.कॉम)