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बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में फाल्गुन शुक्ल एकादशी को रंगभरी एकादशी
अर्थात रंगों का उत्सव मनाया जाता है। परंपरानुसार, होली के पहले बाबा
विश्वनाथ मां भगवती का गौना कराकर वापस काशी चले आते हैं। इस दिन लोगों को बाबा के
चल प्रतिमा का दर्शन होता है। इसके लिए संकरी गलियों में जन सैलाब उमड़ पड़ता है।
क्या है मान्यता:
विश्वनाथ मंदिर के महंत कुलपति तिवारी ने बताया कि मान्यता के अनुसार, देवलोक के सारे
देवी-देवता इस दिन स्वर्गलोक से बाबा के ऊपर गुलाल फेंकते हैं। मंदिर परिसर
दर्जनों डमरुओं की गूंज से गुंजायमान हो जाता है। इस परंपरा को 200 साल से ऊपर हो चुका
है। उन्होंने बताया कि बाबा विश्वनाथ का बसंत पंचमी को तिलक, शिवरात्रि को शादी और
रंगभरी एकादशी को गौना होता है।
क्या होता है बाबा का गौना:
डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि महाशिवरात्रि पर बाबा भोले की शादी होती है। इस
दिन काशी में पूरी रात जाग कर लोग बाबा का विवाह संपन्न कराते हैं। इसके बाद पड़ने
वाली एकादशी को बाबा का गौना होता है। इस दिन वे अपने ससुराल जाकर मां पार्वती की
विदाई कराकर विश्वनाथ मंदिर लाते हैं।
रंग-गुलाल से नहा उठती है काशी(वाराणसी):
रंगभरी एकादशी के दिन रंग और गुलालों से काशी मानों नहा उठती है। संकरी गलियों
में बाबा विश्वनाथ और मां पार्वती की प्रतिमा घुमाने के बाद पावन प्रतिमा को बाबा
विश्वनाथ और मां पार्वती की प्रतिमा घुमाने के बाद उन्हें आसन पर बैठाया जाता है।(साभार:भास्कर.कॉम)