ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में सालाना उर्स के दौरान प्रसाद बनाने के
लिए दो देगों (बर्तन) की नीलामी की जाती है। नीलामी की राशि करोड़ों रुपए में होती
है। इनके लिए तीन से चार साल की बुकिंग एडवांस में चलती है। दीगर है कि अजमेर के सूफी
संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती का 804 वां उर्स 4 अप्रैल से शुरू हो
रहा है। ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की पवित्र दरगाह को लेकर कई तरह की
मान्यताएं हैं। चिश्ती साहब के पवित्र दरगाह में रखीं इन दो देगों (बर्तनों) के बारे
में कहा जाता है अजमेर दरगाह में दो बड़ी देग हैं। दरगाह में रखी बड़ी देग मुगल
बादशाह अकबर ने ख्वाजा की शान में भेंट की थी। वहीं छोटी देग बादशाह जहांगीर ने
भेंट की थी। मुगल बादशाह अकबर की इस दरगाह में गहरी आस्था थी। अपनी मन्नत पूरी
होने पर एक बार अकबर ने आगरा से अजमेर तक पैदल चलकर दरगाह पर मत्था भी टेका था। अकबर
ने दरगाह में बुलंद दरवाजे के पास दक्षिण-पश्चिम में एक बड़ी देग बनवाई। उन्होंने
यहां नए साल का जश्न नवरोज मनाया और दान किए। कई बार श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी
होने पर इन देगों में प्रसाद बनवाते हैं। सभी कार्य दरगाह के खादिमों की संस्था
अंजुमन की देखरेख में किए जाते हैं। नीलामी से मिली राशि से यहां सालभर लंगर चलाए
जाते हैं और बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने में इसका उपयोग किया जाता है। अंजुमन के
मुताबिक बड़ी देग में 4,800 किलोग्राम और छोटी देग में 2240 किलोग्राम सामग्री पकाई जा सकती है। ये इतने बड़े
मर्तबान हैं कि कोई 6 हजार से ज्यादा लोग इससे भोजन कर सकते हैं। दरगाह में आने वाले जायरीन देग को
भी देखने आते हैं| उर्स के समय होती है नीलामी, करोड़ों रुपए लगती है
बोली| इस देग में श्रद्घालुओं के लिए
प्रसाद बनाया जाता है जिसे तबर्रुक कहते हैं। इन देगों के लिए अग्रिम बुकिंग चलती
है। बोली में कई खादिम शरीक होते हैं और ये काम घंटों चलता है। इस नीलामी से मिलने
वाली राशि से अंजुमन लंगर चलाती है, बच्चों की तालीम में पैसा खर्च होता है और ऐसे ही सामाजिक कार्यों में मदद दी
जाती है। इन देगों में पकने वाला प्रसाद शाकाहारी होता है। इसे बनाने में चावल और
मैदे के अलावा जाफरान, घी, गुड़, शक्कर, सूखे मेवे और हल्दी जैसी स्वास्थ्यवर्धक चीजें शामिल की जाती हैं। इन दोनों देग में
सालभर पकवान पकाए जाते हैं। उर्स के अलावा अगर कोई श्रद्धालु इन देगों में प्रसाद
पकवाना चाहे तो छोटी देग के लिए 75 से 90 हजार रुपए तक और बड़ी देग के लिए करीब एक लाख 70 हजार रुपए जमा करने
होते हैं।