अकामई टेक्नोलॉजीज ने भारत में इंटरनेट सिचुएशन पर एक रिपोर्ट तैयार की है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि एशिया-पेसिफिक रीजन में भारत में इंटरनेट स्पीड सबसे
स्लो है। यहां एवरेज इंटरनेट स्पीड सिर्फ 2.8 एमबीपीएस है। जबकि सबसे तेज इंटरनेट स्पीड साउथ कोरिया में है जहां एवरेज
इंटरनेट स्पीड 26.7 एमबीपीएस है। भारत में इंटरनेट स्पीड के स्लो होने के संभावित 5 कारण निम्नवत हैं:
1. प्राइवेट कंपनियों का वर्चस्व
बीएसएनएल और एमटीएनएल जैसी कंपनियां ग्रामीण
भारत में अव्वल इंटरनेट प्रोवाइडर हैं दूसरी तरफ एयरटेल और नेक्स्ट्रा ब्रॉडबैंड
जैसी कंपनियां शहरी भारत में डॉमिनेट कर रही हैं। ये कंपनियां शातिर तरीके से
कस्टमर्स को अपनी तरफ अट्रैक्ट करती हैं। फेयर यूसेज पॉलिसी के तहत ये यूजर्स को
इंटरनेट स्पीड देती हैं और उनसे ज्यादा चार्ज करके मैक्सिमम प्रॉफिट कमाती हैं।
ऐसी पॉलिसी लागू करने के लिए कंपनियां सरकार पर दबाव भी बनाती हैं। यही कारण है कि
इंडिया में इंटरनेट स्पीड कम है। इन बड़े इंटरनेट प्लेयर्स के नॉन-मोटिव्स ही भारत
में इंटरनेट ग्रोथ के बीच रोड़ा बने हुए हैं।
* क्या है फेयर यूसेज पॉलिसी (FUP): कुछ कस्टमर्स नेटवर्क बैंडविथ का
इतना ज्यादा इस्तेमाल करते हैं कि ये अन्य यूजर्स की इंटरनेट स्पीड को नुकसान
पहुंचाने लगते हैं| एयरटेल की फेयर यूसेज पॉलिसी ज्यादा से ज्यादा कस्टमर्स को
बेहतर अच्छा इंटरनेट एक्सपीरियंस पहुंचाने का दावा करती है।
2. पब्लिक सेक्टर की नाकामी
प्राइवेट सेक्टर्स को छोड़ दें तो देश में पब्लिक सेक्टर की हालत कुछ खास नहीं
है। जैसा कि हमने पूर्व में ही बताया कि भारत के रूरल और इकोनॉमिकली बैकवर्ड रीजन
में सिर्फ एमटीएनएल और बीएसएनएल जैसे इंटरनेट प्लेयर्स ही हैं। एकछत्र राज होने के
नाते इन्हें किसी अन्य कंपनी से कॉम्पिटिशन नहीं करना पड़ता। इसलिए ये मार्केट को
ध्यान में न रखते हुए अपने मुताबिक ही फंक्शन करती हैं। यही कारण है कि ये
कंपनियां इंटरनेट स्पीड बढ़ाने या कस्टमर्स को बेहतर सर्विस देने की तरफ कुछ ध्यान
नहीं देतीं। ये स्वयं मान लेती हैं कि कन्ज्यूमर्स इतनी स्पीड में ही बहुत खुश हैं
उन्हें और ज्यादा स्पीड नहीं चाहिए। यहां हमारे कन्ज्यूमर्स और इंटरनेट
प्रोवाइडर्स दोनों को ही साउथ कोरिया से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।
3. सरकार का हस्तक्षेप
हाल ही में सेंट्रल गवर्नमेंट ने इंटरनेट बेस्ड सर्विसेस को प्रमोट करने के
लिए देश भर में कैंपेन चलाया था। इसे सरकार का सराहनीय कदम माना जा सकता है। लेकिन
ये तभी सक्सेसफुल हो सकता है जब ब्रॉडबैंड सर्विस प्रोवाइडिंग फेसिलिटी रूरल
एरियाज तक पहुंचे और जरूरतमंदों को कम शुल्क में बेहतर इंटरनेट एक्सेस प्रोवाइड
कराई जाए। स्लो इंटरनेट स्पीड और सेटअप के साथ 'डिजिटल इंडिया' या 'इंडिया जो इंटरनेट पर काम करता है' का सपना वाकई सपना ही
न रह जाए।
4. खराब इंफ्रास्ट्रक्चर
हाल ही में गवर्नमेंट ने अनाउंस किया था कि इंटरनेट स्पीड की मिनिमम सीमा 2 एमबीपीएस होगी। पी एम मोदी
द्वारा जुलाई 2015 में शुरू किए गए डिजिटल इंडिया कैंपेन को सक्सेसफुल बनाने के लिए इस न्यूज को
काफी अहम माना जा रहा है। टायर 2 और टायर 3 सिटीज में बीएसएनएल जैसी कंपनियों की मोनोपोली है जिसके कारण यहां प्राइवेट
प्लेयर्स को आसानी से लाइसेंस नहीं मिल पाता। ध्यान देने योग्य बात है कि इंटरनेट
स्पीड को 10 गुना बढ़ाना ही इन सबका सॉल्युशन
नहीं है। इसके लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइड करना और कम पेपर वर्क से ही
सुधार आ सकता है।
5. एक्स्ट्रा पैसे नहीं खर्च करना चाहते लोग
भारत में इंटरनेट स्पीड स्लो होने का एक ये कारण भी है कि यहां किसी एक जगह पर
कम ही ऐसे लोग होते हैं जिन्हें तेज इंटरनेट स्पीड चाहिए। ज्यादातर इंटरनेट यूजर्स
स्लो इंटरनेट स्पीड से ही खुश हैं और वे तेज स्पीड के लिए एक्स्ट्रा पैसे खर्च
नहीं करना चाहते। ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है जो सिर्फ मेल चेक करने के लिए
इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं उन्हें तेज इंटरनेट स्पीड से कोई लेना देना नहीं।(साभार:भास्कर.कॉम)