प्रतिवर्ष 4 फ़रवरी को मनाया जाने वाला विश्व कैंसर दिवस सबसे पहली बार सन 1933
में अंतर्राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ द्वारा स्विट्जरलैंड के जिनेवा में मनाया
गया। वास्तव में विश्व कैंसर दिवस कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने, लोगों को शिक्षित करने, इस रोग के खिलाफ
कार्रवाई करने के लिए दुनिया भर में सरकारों और व्यक्तियों को समझाने तथा हर साल
लाखों लोगों को इस खतरनाक बीमारी से मरने से बचाने के लिए मनाया जाता है। उल्लेखनीय
है कि वर्तमान में दुनिया भर में हर साल 76 लाख लोग कैंसर से दम तोड़ते हैं जिनमें
से 40 लाख लोग समय से पहले (30-69 वर्ष आयु वर्ग) मर जाते हैं। इसलिए समय की मांग
है कि इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ ही कैंसर से निपटने की
व्यावहारिक रणनीति को भी विकसित किया जाए| यह भी महत्वपूर्ण बात
है कि वर्ष 2025 तक कैंसर के कारण समय से पहले होने वाली मौतों के बढ़कर प्रति
वर्ष 60 लाख होने का अनुमान है। इस कड़ी में यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2025 तक
कैंसर के कारण समय से पहले होने वाली मौतों में 25 प्रतिशत कमी के लक्ष्य को हासिल
कर लिया जाए तो हर साल 15 लाख जीवन बचाए जा सकते हैं| विश्व कैंसर दिवस पर
आज आइये जानें कैंसर से जुड़े 4 मिथक......
मिथक 1 : चेतावनी बिना आता है
कैंसर
हकीकत: इस बात में कोई सच्चाई नहीं है| ज्यादातर कैंसर के लक्षण नजर आने लगते हैं, यह दावा ब्रिटिश जर्नल
ऑफ जनरल प्रैक्टिस के जनवरी 2015 के अंक में छपे शोध में किया गया है| इसमें पता
लगाया गया है कि लोगों में कैंसर के लक्षण नजर आने पर वे चिकित्सीय सहायता लेने का
फैसला लेते हैं या नहीं| शोध में शामिल 1,700 मरीजों में से करीब 52 फीसदी ने पिछले तीन
माह में कैंसर से जुड़ा कम-से-कम एक चेतावनी भरा लक्षण दिखने के बावजूद डॉक्टर से
सलाह नहीं ली| कुछ ने लक्षण को स्वीकारने से ही इनकार कर दिया तो कुछ ने डॉक्टर का
समय बर्बाद नहीं करना चाहा, कुछ रोग के खराब निदान के डर से डॉक्टर के पास नहीं पहुंचे तो कुछ ने अपनी
समस्या की वजह बढ़ती उम्र को मान लिया| इस सन्दर्भ में कैंसर के एक भारतीय जानकार
कहते हैं कि “भारतीय संदेह के मामले में कच्चे हैं इसीलिए रोग की पहचान और उपचार
देर से शुरू हो पाता है| ऐसा कोई भी लक्षण जो लगातार तीन हफ्ते तक बना रहता है
मसलन कोई गांठ, मस्सा, गला खराब रहना या बलगम बनना सबकी जांच जरूरी है और डॉक्टर की सलाह द्वारा कैंसर
को मात दिया जा सकता है|''
मिथक 2 : बदकिस्मती
से होता है कैंसर
हकीकत : जी नहीं| 10 में से 4 से ज्यादा तरह के कैंसर से जीवनशैली में बदलाव करके बचा जा सकता है जैसे
तंबाकू नहीं खाना, संतुलित वजन बनाए रखना, सेहतमंद खान-पान, शराब का सेवन नहीं करना, यह भी कैंसर के जानकारों का ही कहना है
मिथक 3 : जल्द-से-जल्द सर्जरी
हो
हकीकत: जरूरी नहीं हर तरह के कैंसर में सर्जरी की जरूरत पड़े| कैंसर विशेषज्ञ के अनुसार ''कैंसर की रोकथाम का उपाय शुरुआत में ही इसकी पहचान करना और सही इलाज शुरू करना
है| भारतीयों को लगता है कि कैंसर को जल्द-से-जल्द शरीर से बाहर कर दिया जाए| रोग
के शुरुआती चरणों में खासकर गांठ, स्तन, फेफड़ों के प्रोस्टेट में सर्जरी की भूमिका बहुत कम होती है| जरूरत यह समझने
की है कि ट्यूमर किस तरह का है, कौन से अंग में और किस जगह पनप रहा है और सबसे जरूरी रोग किस स्टेज पर पहुंच
चुका है|''
मिथक 4 : कैंसर यानी मौत
हकीकत: ऐसा तो बिलकुल भी नहीं है| मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल ऐंड कैंसर रिसर्च
इंस्टीट्यूट के एक वरिष्ठ विशेषज्ञ के अनुसार ''कैंसर का इलाज मुश्किल
इसलिए है क्योंकि यह सिर्फ रोग नहीं है| यह सैकड़ों रोगों का जटिल समूह है, कुछ रोग ज्यादा खतरनाक
होते हैं तो कुछ कम| लेकिन बहुत सारे लोगों ने सही उपचार और अपने जीवट से कैंसर को
मात देने में सफलता पाई है|”
क्या है कैंसर ?
कैंसर का मतलब है कोशिकाओं में कई गुना वृद्धि होना| स्वस्थ मानव शरीर में हर
दिन दस खरब कोशिकाएं विखंडित होती हैं| एक डॉ. के अनुसार ''कई कोशिकाएं मरती हैं और उतनी ही नई कोशिकाएं बन जाती
हैं| शरीर के अपने नियम-कायदे होते हैं-त्वचा की कोशिकाएं बनने में चार हफ्ते लगते
हैं, लीवर की कोशिकाएं 150 दिन में बनती हैं, जबकि लाल रक्त कोशिकाएं 120 दिन में बनती हैं| आनुवंशिकता
या जीवित कोशिकाओं में मौजूद डीएनए भी हर दिन लाखों तरह के बदलावों से गुजरता है| इनमें
से ज्यादातर नुकसानदायक साबित नहीं होते या फिर हमारी कोशिकाओं में नुकसान को सुधारने
की ताकत होती है| समय के साथ और अकस्मात ही शरीर डीएनए की प्रतिलिपि बनाते समय कुछ
गलतियां कर देता है| जब ऐसी गलतियां (परिवर्तन) होती हैं तो अनियंत्रित कोशिकाएं
बनने की आशंका प्रबल हो जाती है, जो शरीर के नियमों को नहीं मानते हुए अनियंत्रित ढंग से बढ़ने लगती हैं और
इर्द-गिर्द की कोशिकाओं और उत्तकों को खत्म करने लगती हैं|” (साभार:आजतक)