डब्ल्यु डब्ल्यु ई फेम द ग्रेट खली फैन्स के बीच बहुत पॉपुलर हैं, लेकिन उन्हें इस मुकाम
तक पहुंचाने वाले हैं प्रदीप बाबा मधोक। खली के शुरुआती सालों में उनके प्रमोटर
रहे प्रदीप बाबा मधोक आज वाराणसी में वर्ल्ड स्ट्रॉन्ग मैन वर्ल्ड कप आयोजित करवा
रहे हैं। यह बाबा की कोशिशों का ही नतीजा है कि यह हाई प्रोफाइल इंटरनेशनल इवेंट
इतिहास में पहली बार इंडिया में हो रहा है। कभी साइकल पर चलने वाले बाबा मधोक ने दैनिकभास्कर.कॉम
पर अपनी सक्सेस स्टोरी शेयर की| ज्ञातव्य है कि वर्ल्ड स्ट्रॉन्ग मैन फेडरेशन के
प्रेसिडेंट रहे बाबा मधोक 1995 से 1999 तक खली के प्रमोटर रहे। तब वे खली को हर शो के लिए
कुल 5000 रुपए देते थे। यही नहीं, इस साल हो रहे वर्ल्ड स्ट्रॉन्ग मैन कप में वे 3 दोस्तों के साथ मिलकर
50 लाख रुपए खर्च भी कर रहे हैं।हालाँकि अपने शुरुआती दिनों में भाई के होस्टल
में कुल 500 रुपए के लिए सब्जी-राशन लाने का काम करते थे। उन्होंने कनाडा में पेट्रोल पंप
कर्मी का काम भी किया। आज वे वर्ल्ड स्ट्रांग मैन फेडरेशन का प्रेसीडेंट होने के
साथ 27 डालिम्स ग्रुप ऑफ स्कूल के मालिक हैं।
भाई देते थे ताना, लोहे के डंबल से नहीं भरेगा पेट !
- बाबा मधोक ने बताया कि उनके पिता डॉ अमृत लाल इसरत बीएचयू में प्रोफ़ेसर थे। हाई
स्कूल तक उन्होंने इलाहाबाद और मसूरी में पढ़ाई की। वे पढ़ाई में खास अच्छे नहीं थे, इसलिए घरवालों ने
उन्हें वापस बनारस बुला लिया। 11वीं व 12वीं की पढ़ाई उन्होंने वाराणसी के एंगलो बंगाली स्कूल से पूरी की। स्कूल टाइम
के दौरान ही उनकी मुलाकात फिजिकल कोच गोविंद दादा से हुई। गोविंद ने प्रदीप बाबा
को स्पोर्ट्स और बॉडी बिल्डिंग की तरफ मोड़ा। प्रदीप मधोक ने बताया, "मेरे भाई मुझे ताना देते थे कि लोहे के डंबल उठाने से
जिंदगी नहीं बनेगी, लेकिन मैंने उन्हें गलत साबित कर दिया।" बाबा एक तरफ बॉडी बिल्डिंग में
जुट गए और दूसरी तरफ बीएचयू से ग्रेजुएशन भी पूरा किया। बीएचयू में पढ़ाई के दौरान
ही उन्होंने ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी में ब्रॉन्ज मेडल जीता।
कनाडा खींच ले गया शौक !
- बाबा के सिर पर बॉडी बिल्डिंग का जुनून सवार हो चुका था। इसके लिए उन्होंने
कनाडा से फिजिकल एजूकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन करने का फैसला किया। कनाडा में रहते
हुए जब प्रदीप को पैसों की कमी होने लगी, तो उन्होंने वहां के पेट्रोल पंप में काम करना शुरू कर दिया। जेब खर्च बनाने
के लिए वे पेट्रोल भरने की नौकरी करते थे।
इंडिया में नहीं मिली जॉब !
- प्रदीप बाबा ने कनाडा में पढ़ाई तो की, लेकिन इससे उन्हें
स्वदेश में कोई नौकरी नहीं मिल पाई। खर्चा चलाने के लिए प्रदीप अपने भाई के स्कूल
होस्टल में सब्जियां और राशन साइकल पर पहुंचाने का काम करने लगे। इसके लिए उन्हें
कुल 500 रुपए मेहनताना मिलता था।
बाइक के शौक में खाई दुत्कार !
- प्रदीप बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही मोटरबाइक का शौक था। उस टाइम बनारस में
यामाहा की नई राजदूत-350 बाइक सिर्फ एक टुल्लू कंपनी के मालिक शरद शाह के पास थी। बाबा बताते हैं कि
वे सिर्फ उस बाइक को देखने के लिए रामकटोरा तक साइकल से जाते थे। प्रदीप बंगले के बाहर से
ही खड़े-खड़े उस बाइक को निहारा करते थे। उन्हें बाइक को घूरता देख बंगले का गार्ड उन्हें दुत्कार कर भगा देता था।
खरीद ली टुल्लू कंपनी की जमीन और प्यारी बाइक !
- प्रदीप के पिता अमृत लाल डालिम्स सनबीम स्कूल चलाते थे। इसके बावजूद कम
पढ़ा-लिखा होने की वजह से प्रदीप को इधर-उधर नौकरी करनी पड़ी। 1988 से 1992 तक उन्होंने बॉल
बेयरिंग बनाने वाली कंपनी में भी काम किया । प्रदीप ने बताया,
"1992-93 में पहली बार मेरी फैमिली ने मुझ पर भरोसा दिखाया और स्कूल की जिम्मेदारी
पूरी तरह सौंपी दी।" अपनी मेहनत और लगन से प्रदीप बाबा मधोक ने डालिम्स स्कूल
को ग्रुप में तब्दील कर दिया। आज इस ग्रुप के 8 स्कूल और 19 फ्रेंचाइजी हैं। यही
नहीं, प्रदीप बताते हैं कि अपना पुराना सपना पूरा करते हुए उन्होंने टुल्लू कंपनी की
पूरी जमीन और मालिक की वही यामहा बाइक भी खरीदी। आज उसी जमीन पर
डालिम्स स्कूल की बिल्डिंग है।
अब ऐसे हैं जलवे !
- बाबा मधोक ने बॉडी बिल्डिंग और डालिम्स स्कूल ग्रुप से अपना जीवन संवार लिया। कभी
साइकिल से चलने वाले बाबा आज 2.5 करोड़ की जी-63 एएनजी मर्सडीज और 1.5 करोड़ की बीएमडब्लू
समेत 8 लग्जरी गाड़ियों के मालिक हैं। उनके कलेक्शन में 30 लाख रुपए की कीमत
वाली हार्ले डेविडेसन बाइक शामिल है। बाबा करोड़ों रुपए की कीमत वाले आलिशान मकान
में रहते हैं। (साभार: दैनिक भास्कर.कॉम)