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शिक्षा संस्कृति
उत्थान न्यास के सचिव, शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति के राष्ट्रीय सह-संयोजक एवं
शिक्षा उत्थान पत्रिका के संपादक श्री अतुल कोठारी रहे इस कार्यशाला के मुख्य
अतिथि|
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शिक्षा संस्कृति
उत्थान न्यास के प्रदेश प्रभारी श्री यशभान तोमर सहित विभिन्न राष्ट्रीय पदाधिकारियों
ने इस कार्यशाला में शिरकत की एवं अपने विचार रखे|
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वर्तमान एवं भविष्य की
शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में बहुत सारी महत्वपूर्ण बातों पर हुई सार्थक चर्चा जिससे
भविष्य की शिक्षा नीति हेतु मिले कुछ अहम सुझाव
विगत 14 अप्रैल को कानपुर के किदवईनगर स्थित डा० वीरेन्द्र स्वरुप इंस्टिट्यूट ऑफ़
प्रोफेशनल स्टडीज के सभागार में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के तत्वावधान में नयी
शिक्षा नीति : एक विमर्श पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी (कार्यशाला) का आयोजन किया गया
जिसमें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास से जुड़े विभिन्न स्थानों से आये प्रतिनिधियों
ने भाग लिया और अपने विचार रखे| मातृभाषा हिंदी के महत्व को रेखांकित करते हुए इस
कार्यशाला के मुख्य अतिथि श्री अतुल कोठारी जी, जो शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव, शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति के राष्ट्रीय सह-संयोजक एवं शिक्षा उत्थान पत्रिका
के संपादक भी हैं ने हिंदी का भविष्य उज्ज्वल बताते हुए कुछ अहम शिक्षा सूत्र
सुझाए| वहीं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रदेश प्रभारी श्री यशभान तोमर ने
न्यास की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए न्यास से जुड़े विभिन्न स्थलों से आये
विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को धन्यवाद ज्ञापित किया| जबकि इस कार्यक्रम का सफल
संचालन किया रंजना यादव जी ने| उल्लेखनीय है कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नैतिक
जीवन मूल्यों के जरिये शिक्षा एवं जीवन के एक लक्ष्य को समाहित कर मातृभाषा हिंदी
को विश्व की सर्वमान्य भाषा का गौरव दिलाने को कृतसंकल्प एक राष्ट्रीय संगठन है
जिसके तले भारतीय भाषा की उत्तरोत्तर प्रगति एवं जनजागरूकता हेतु भारतीय भाषा मंच
का निर्माण किया गया है| आइये जानें नयी शिक्षा नीति : एक विमर्श पर हुई इस राष्ट्रीय
संगोष्ठी में श्री अतुल कोठारी के उद्बोधन की कुछ खास बातें जो भविष्य की शिक्षा
नीति हेतु अति उपयोगी हैं...
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आज भी शिक्षा का
लक्ष्य निश्चित नहीं है| शिक्षा एवं जीवन का लक्ष्य एक ही हो तभी व्यक्ति एवं देश
का समुचित विकास संभव है|
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1974 एवं 1986 में अभी तक दो शिक्षा नीतियां बनी हैं| अब नयी शिक्षा नीति हेतु वर्तमान सरकार
द्वारा कुछ अहम बिंदु सुझाए गएँ हैं जिनमें से 13 बिंदु विद्यालय एवं 20 बिंदु उच्च शिक्षा से
सम्बंधित हैं| हालाँकि विद्यालय स्तर पर अधिक बिंदु होने चाहिये थे|
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जब तक शिक्षा में
चारित्रिक निर्माण के मूल्य समाहित नहीं होंगे कोई शिक्षा नीति सफल नहीं हो सकती|
जीवन मूल्यों की शिक्षा आज की जरुरत है|
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केवल अधिकार की बातें
ही नहीं कर्तव्य की बातें भी जरुरी हैं|
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शिक्षा में अब पर्यावरण
की बातें भी समाहित होनी जरुरी हैं|
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विभिन्न कार्यक्रमों
में अब अतिथियों को पुष्पगुच्छ-स्मृतिचिन्ह के स्थान पर पुस्तक-पौधा भेंट करने की
परंपरा आरम्भ करना ज्यादा उचित है|
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बच्चों पर अंग्रेजी
भाषा थोपी जा रही है जिससे उनका विकास बाधित हो रहा है|
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न्याय विभाग में विशेष
कर उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त होनी चाहिए|
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भारतीय भाषाओँ पर
व्यवस्था तो सरकार बना सकती है पर इसका क्रियान्वयन शिक्षाविदों द्वारा ही संभव है|
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सरकारें भले आयें-जायें
लेकिन शिक्षा नीति में राजनीति न हो|
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चुनाव आयोग की तरह
शिक्षा भी स्वायत्त होना चाहिए|
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जब तक परिवार, शिक्षकों
एवं मैनेजमेंट द्वारा जीवन मूल्यों में बदलाव शुरू नहीं होगा विद्यार्थियों में
बदलाव नहीं हो सकता| इस सन्दर्भ में स्व-कर्तव्य का भाव होना भी बेहद जरुरी है|
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देश को हिंदी की
उपयोगिता समझ में आने लगी है इसलिए अब हिंदी का विरोध नहीं हो रहा जो इसके भविष्य
के लिए एक सकारात्मक बात है|
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हिंदी सशक्त बनाने
हेतु हिन्दीभाषी लोगों में स्वाभिमान जगाना आज की अनिवार्य आवश्यकता है|
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विदेश मंत्रालय तक में
हिंदी को लेकर व्यापक सकारात्मक बदलाव आया है जो एक अच्छा कदम है|
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बच्चे का सही विकास
खुद की भाषा में ही निहित है|
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मेडिकल एवं
इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम भी अब हिंदी में हों न्यास द्वारा ऐसा सार्थक प्रयास किया
जा रहा है जिससे सकारात्मक बदलाव होने की उम्मीद बढ़ गई है|