शिखंडी महाभारत कथा का सबसे विचित्र वह पात्र है,जिसके बारे में ज्यादातर लोग
यही जानते हैं कि वह न तो स्त्री था और न ही पुरुष। साथ ही भीष्म पितामह की मृत्यु
का मुख्य कारण भी वही था। वास्तव में महाभारत का रोचक किरदार शिखंडी का जन्म एक
स्त्री के रूप में ही हुआ था, जो बाद में पुरुष बना। यह रोचक रहस्य स्वयं भीष्म पितामह ने ही
उद्घाटित किया था| दरअसल बात उस समय कि है जब कौरवों-पांडवों के बीच युद्ध होना
निश्चित हुआ था और दोनों ओर की सेनायें कुरुक्षेत्र में डट गईं थीं| तब दुर्योधन
ने भीष्म पितामह से पांडवों के प्रमुख योद्धाओं के बारे में विस्तार से पूछा था। इस
पर भीष्म पितामह ने दुर्योधन को पांडवों के प्रमुख योद्धाओं के बारे में विस्तारपूर्वक
बताते हुए कहा था कि वे खुद कभी राजा द्रुपद के पुत्र शिखंडी से युद्ध नहीं
करेंगे। जब दुर्योधन ने इसका कारण पूछा तब भीष्म पितामह ने बताया कि शिखंडी पूर्व
जन्म में एक स्त्री था। साथ ही वह इस जन्म में भी कन्या के रूप में जन्मा था, लेकिन बाद में वह
पुरुष बन गया। भीष्म ने कहा कि कन्या रूप में जन्म लेने के कारण मैं उसके साथ कभी युद्ध
नहीं करूंगा। शिखंडी स्त्री से पुरुष कैसे बना, यह विचित्र कथा भी
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताई। भीष्म पितामाह ने दुर्योधन को
बताया कि जिस समय हस्तिनापुर के राजा उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य थे। उस समय उनके
विवाह के लिए वो काशीराज की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को
बलपूर्वक हर लाये थे, लेकिन बाद में उन्हें जब यह पता चला कि अंबा के मन में राजा शाल्व के प्रति
प्रेम है तो उन्होंने अंबा को राजा शाल्व के पास भेज दिया था परंतु राजा शाल्व ने
अंबा को अपनाने से इंकार कर दिया था| अंबा को लगा कि उस पर आई इस विपदा का कारण वो
ही हैं| इसलिए उसने उनसे बदला लेने का संकल्प ले लिया। इस संकल्प के तहत अंबा ऋषि परशुरामजी
से मिली और अपनी पूरी व्यथा उन्हें बताई। अंबा की बात सुनकर गुरु परशुराम उनके पास
आए और उन्होंने उनसे अंबा के साथ विवाह करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा
करने से मना कर दिया। जिसके कारण परशुराम और भीष्म में
लगातार 23 दिन तक युद्ध होता रहा। 24वें दिन जब उन्होंने महाभयंकर प्रस्वापास्त्र
अस्त्र का प्रहार परशुरामजी पर करना चाहा तो नारद मुनि ने उनको ऐसा करने से रोक
दिया। तब उन्होंने वह अस्त्र अपने धनुष पर से उतार लिया। यह देख परशुरामजी ने उनसे
कहा कि भीष्म तुमने मुझे परास्त कर दिया। तभी वहां गुरु परशुरामजी के पितृगण
उपस्थित हो गए और उनके कहने पर उन्होंने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार वह युद्ध
समाप्त हो गया। तब अंबा उनके नाश के लिए तपस्या करने के लिए वहां से चली गई। आगे भीष्म पितामह ने दुर्योधन से कहा कि उनसे प्रतिशोध लेने के लिए अंबा यमुना
तट पर तपस्या करती रही और अपने शरीर को त्याग दिया था। बाद में अपने अगले जन्म में
वह वत्सदेश के राजा की कन्या हुई। हालाँकि अपने पूर्वजन्म का ज्ञान होने के कारण
वह उनसे बदला लेने के लिए फिर से तप करने लगी। उसके तप से प्रसन्न होकर जब भगवान
शिव ने उसे दर्शन दिए तो उसने भगवान शिव से उनकी पराजय का वरदान मांगा। भगवान शिव
ने उसे मनचाहा वरदान दे दिया। जिस पर उसने भगवान शिव से पूछा कि एक स्त्री होकर वह
भीष्म का वध किस प्रकार कर पायेगी? तब भगवान शिव ने उससे कहा कि वह अपना अगला जन्म
भी एक स्त्री के रूप में ही लेगी, लेकिन युवा होने पर वह पुरुष बन जाएगी और भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी।
वरदान मिलने के बाद उसने एक चिता बनाई और मेरा वध करने के अपने संकल्प के साथ अग्नि
में प्रवेश कर गई। आगे भीष्म ने दुर्योधन से कहा कि वही
अंबा इस जन्म में शिखंडी के रूप में जन्मी है। जब राजा द्रुपद को कोई संतान नहीं
थी, तब उसने महादेव को प्रसन्न कर पुत्र होने का वरदान मांगा था। तब महादेव ने
उससे कहा था कि तुम्हारे यहां एक कन्या का जन्म लेगी जो बाद में पुरुष बन जाएगी। समय आने पर द्रुपद की पत्नी ने एक कन्या को जन्म
दिया। हालाँकि भगवान शिव के वरदान का स्मरण करते हुए राजा द्रुपद ने सभी को यही
बताया कि उसके यहां कन्या ने नहीं वरन पुत्र ने जन्म लिया है। कन्या के युवा होने
पर राजा द्रुपद की पत्नी ने उनसे कहा कि महादेव का वरदान कभी भी निष्फल नहीं हो
सकता इसलिए उन लोगों को इसका विवाह किसी कन्या से कर देना चाहिए। रानी की बात
मानकर राजा द्रुपद ने दशार्णराज हिरण्यवर्मा की कन्या से शिखंडी का विवाह करवा
दिया। बाद में जब हिरण्यवर्मा की पुत्री को पता चला कि उसका विवाह एक स्त्री से हुआ
है, तो उसने यह बात अपने पिता को बता दी। यह बात जानकर राजा हिरण्यवर्मा ने राजा
द्रुपद को संदेशा भिजवाया कि यदि यह बात सत्य हुई तो वो उनके कुटुंब व राज्य सहित उन्हें
नष्ट कर देगा| हालाँकि राजा द्रुपद ने राजा हिरण्यवर्मा को समझाने की बहुत कोशिश
की, लेकिन उसने पांचालदेश पर आक्रमण कर दिया। राजा हिरण्यवर्मा व अन्य राजाओं ने यह
निश्चय किया कि यदि शिखंडी सचमुच स्त्री हुआ तो वो राजा द्रुपद को कैद कर उसके
राज्य पर अधिकार कर लेंगे और बाद में द्रुपद और शिखंडी का वध कर देंगे। राजा
हिरण्यवर्मा द्वारा आक्रमण करने की बात जब स्त्री रूपी शिखंडी को पता चली तो वह
बहुत घबरा गई और अपने प्राण त्यागने की इच्छा से वन में चली गई। लेकिन जिस वन में
शिखंडी अपना प्राण त्यागने गई थी, उसकी रक्षा स्थूणाकर्ण नाम का एक यक्ष करता था। यक्ष ने जब शिखंडी को देखा तो
उससे वन में आने का कारण पूछा। तब शिखंडी ने उसे पूरी बात सच-सच बता दी। पूरी बात
जानकर यक्ष ने शिखंडी की सहायता करने के लिए उसे अपना पुरुषत्व दे दिया और उसका
स्त्रीत्व स्वयं धारण कर लिया। हालाँकि यक्ष ने शिखंडी से कहा कि उसका कार्य सिद्ध
होने पर वो पुन: उसका पुरुषत्व उसे लौटा देगी| शिखंडी ने हां कह दिया और पुरुष रूप
में अपने नगर लौट आया। शिखंडी को पुरुष रूप में देखकर राजा द्रुपद अत्यंत प्रसन्न
हुए। राजा हिरण्यवर्मा ने भी शिखंडी के पुरुष रूप की परीक्षा ली और शिखंडी को
पुरुष जानकर अति प्रसन्न हुए। कालांतर में एक दिन यक्षराज कुबेर घूमते-घूमते
स्थूणाकर्ण के वन में पहुंचे, लेकिन स्थूणाकर्ण उनके अभिवादन के लिए उपस्थित नहीं हुआ। तब कुबेर ने अन्य
यक्षों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने पूरी बात कुबेर को बता दी। पूरी बात जानकर
यक्षराज कुबेर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने स्थूणाकर्ण को श्राप दिया कि अब उसे
इसी स्त्री रूप में रहना होगा। हालाँकि स्थूणाकर्ण द्वारा क्षमा मांगने पर कुबेर
ने कहा कि शिखंडी की मृत्यु के बाद उसे उसका पुरुष रूप पुन: प्राप्त हो जाएगा। महाभारत
युद्ध में भीष्म पितामह की मृत्यु उपरान्त जब शिखंडी का कार्य सिद्ध हो गया तो वह
वन में स्थूणाकर्ण के पास पहुंचा। तब उसने शिखंडी को कुबेर से सम्बंधित श्राप की पूरी
बात बता दी। यह जानकर शिखंडी को बहुत अधिक प्रसन्नता हुई। शिखंडी के अन्त के
सम्बन्ध में प्रचलित मान्यता यह है कि महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब
दुर्योधन ने मरणासन्न अवस्था में अश्वत्थामा को अपना सेनापति बनाया था, तब महादेव की तलवार से
अश्वत्थामा ने सोती हुई अवस्था में शिखंडी का वध कर दिया था। इस प्रकार महाभारत के
सबसे विचित्र पात्र शिखंडी का अन्त हो गया|