जैसा कि आपको पता होगा कि इन दिनों
भारत के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश की पावन महाकालनगरी उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ मेला
चल रहा है| संसार के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में यूं तो लाखों संतों का रेला
लगा हुआ है| इसी मेले में एक विलक्षण संत भी हैं जो जन्म से देख तो नहीं सकते
लेकिन मन की आँखों से सिंहस्थ मेले का अनूठा दर्शन कर रहे हैं| हम बात कर रहे हैं
देश के एक दिव्यांग विश्वविद्यालय के आजीवन कुलाधिपति एवं पद्मविभूषण से सम्मानित दिव्यांग
संत जगदगुरु स्वामी रामानंदाचार्य राघवीयो रामभद्राचार्यजी की जिन्हें श्रीमद्भागवत
कथा, रामायण व महाभारत सहित
कई ग्रंथ कंठस्थ है। जो काम दोनों नेत्र वाले के लिए भी दुष्कर है, उसे कैसे आसानी
से वो कर लेते हैं के उत्तर में इस संत का कहना है कि ये संकल्प शक्ति व राघव कृपा
है जिसकी वजह से वो ग्रंथों को कंठस्थ करने के साथ ही शिक्षा का भी प्रचार-प्रसार
कर पा रहे हैं| उत्तर प्रदेश के धार्मिक शहर चित्रकूट में स्थित एक दिव्यांग विवि
के कुलाधिपति श्री रामभद्राचार्यजी का कहना है कि देश के हर दिव्यांग का स्वाभिमान
लौटाना ही उनके जीवन का सर्पोपरि लक्ष्य है। वे हर विकलांग को आत्मनिर्भर बनाना
चाहते हैं।