देवभूमि के उपनाम से लोकप्रिय उत्तराखंड में यूं तो प्राकृतिक खजाने का भण्डार छिपा है । लेकिन आज भी अन्य राज्यों के मुकाबले यह राज्य विकास में बहुत पीछे है| इसके साथ ही निर्मित राज्य छत्तीसगढ झारखंड इससे काफी आगे निकल गये हैं| यह सच है कि इस राज्य के विकास में पीछे होने के कारणों में प्राकृतिक आपदाएं भी हैं लेकिन सबसे
बड़ा कारण है राजनितिक स्थायित्व |
यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि नारायण दत्त तिवारी के अलावा कोई भी मुख्यमंत्री अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया | राज्य में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों के बीच कुर्सी के चक्कर में यह राज्य पिस गया है | आज जिस हरीश रावत सरकार को अपना बहुमत सिद्ध करना है जो लोगों के बीच उनकी सरकार गिराने में विश्वासघात की दुहाई दे रहे हैं | उन्होंने भी कभी यही काम किया था | वस्तुस्थिति चाहे जो हो | कौन सही है कौन गलत इस बात को परे रखें तो यह कांग्रेस या भाजपा की जीत या हार नहीं है वरन पूरी तरह से जनता की हार है |
हर बार जनता इस उम्मीद में सरकार चुनती है कि उसके राज्य में खुशहाली आये उसे रोजगार मिले उसके बच्चों का पलायन रुके लेकिन हर बार उसे निराशा ही मिली है चाहे भाजपा से या चाहे कांग्रेस से | जिस मुद्दे पर इस राज्य का गठन हुआ था कि इस
पर्वतीय राज्य का विकास हो पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की धारा बहे लेकिन कतिथ थोड़ा बहुत विकास हरिद्वार रूडकी देहरादून ऋषिकेश कोटद्वार रुद्रपुर हल्द्वानी तक ही सिमटा है | प्रदेश के अन्य हिस्से खासकर पर्वतीय इससे अछूते ही हैं |
भाजपा कांग्रेस के शह मात के खेल में जीत या हार चाहे जिसकी हो लेकिन असल में उत्तराखंड में जनता ही हारी है और इस
प्रकरण में भी जनता की ही हार हुई है |