आज बयां होंगे पिछले अफ़साने भी,
जायज-औ-नाजायज सभी बहाने भी।
कल देखा था तुमको ही ईमान बेचते,
मजबूरी हो शायद करज चुकाने की।
मायूसी के अंधकार से बाहर आ,
आ जायेंगे तुमको भाव बताने भी।
रखना अपने पंख खोलकर उड़ना है,
जांबाज परिंदों में होंगे दीवाने भी।
तुमने कितने राज़ छुपा के रख्खे हैं,
भटके हो आ जाओ ठौर-ठिकाने भी।
अगर धर्म की मर्यादा हम भूल गए तो,
कहाँ जाओगे अपने कर्म छुपाने जी।
मेरा हौंसला मेरा मुक़ददर बन जाए,
फिर सब आएंगे दर पर शीश झुकाने।