लो मेरी ख्वाहिशों का चाँद बुझ गया,
जब आसमां ज़मीं पे आके झुक गया।
जो कारवाँ गुजर रहा था झूमता हुआ,
जाने क्या हुई बात रुख बदल गया।
वो शोर मचाते रहे कुछ भी नहीं किया,
कीमती था वक़्त यूँ ही फिसल गया।
वो सद चाक़ कर गया गिरेबां को तार-तार,
जलते चिराग की भी रोशनी निगल गया।
बनता रहा हूँ बे-वजह लोगों का खिलौना,
गर तेज आँधियों में जलाया तो जल गया।
जीने को मिली ज़िन्दगी तक़दीर बन गई,
जलता रहा लहू में आंसुओं में ढल गया।
क्या कुछ नहीं हुआ हमारे साथ दोस्तों,
हम दर्द की जिये हैं कह-कहों मिल गया।
आखिर नक़ाब क्यों नहीं उठा रहे हैं आप,
जलते हुए अलाव से ये दिल पिघल गया।