कि जब-जब चाहतों के दीप जलते हैं,
बदलती रुख़ हवा, पथ्थर पिघलते हैं।
उचककर आसमां छूने चला है आदमीं,
जमीं पर्वत में ढलती मौसम बदलते हैं।
उठाकर पाँव कंधों पर चलोना मोड़ तक,
बहुत बेताब है मंजिल राहों से गुजरतें हैं।
मुश्किलों का सही हल ढूँढना लेना दोस्तों,
महज हालत ही तो हैं ,अक्सर बदलते हैं।
उबलकर भाप बनता टूट कर पानी हवायें,
ह्रदय में पीर होती है तो आंसू निकलते हैं।
नहीं राहत मेरी बैचैनीयाँ दिन-रात बढती,
लो आईनं है वक्त,हम सजते सवरते हैं। \
मुक़द्दर से कोई बंदर सिकंदर बन गया,
कभी अवसर यूँ ही करवट बदलते हैं ।