क़ैद में मेरी उमींदे बेहिसाब,
एक दिन तो लाऊंगा मैं इन्कलाब।
लुत्फ़ जीने में,मज़ा ले बाबरे,
ज़िन्दगी खुद ही उठाएगी नक़ाब।
वक़्त की तबियत जरा रंगीन है,
देखते ही हो गया पानी शराब।
इन लवों की सुर्खियों को देखकर,
आज फिर शरमा गए खिलते गुलाब।
मेरी जानिब तो उँगलियाँ उठ गईं,
बे-मज़ा सब हो गया खाना खराब]
बात छोटी थी मगर गहरा असर,
सोचते ही रह गया क्या दूँ जबाव]
शामियाना जल गया है आग में,
सर से छत जाती रही आँखों से ख्वाब ]