एक तुम ही नहीं मेरहबां और भी हैं,
हमसफ़र भी नए कारवां और भी हैं।
मंजिलों तुमको इतना गुमाँ किसलिए,
इस जहाँ में हमारे मकाँ और भी हैं।
बात सीधी है फिर भी समझ लीजिये,
इस गुलिस्तान के बागवाँ और भी हैं।
हाथ छोडो मेरा शौक से जाइए तुम ,
रास्तों में अभी नक़्श-ए-पां और भी है।
कौन जाने मुक़द्दर में क्या-क्या लिखा है,
तुम चलो तो सही रहनुमां और भी हैं।
हर और जीत से हमको शिकवा नहीं,
जीतने के लिये खेलना और भी है।
तुम ना होगे तो क्या हम बिखर जाएंगे,
सज-संवर जायेंगे आईंना और भी हैं।