हम हौंसला करके मुक़द्दर आज़माएं
हम हौंसला करके मुक़द्दर आज़माएं ,
तपते सूरज से चलो नज़रें मिलाएं ।
आपकी नज़र-ए-इनायत मेहरबानी,
रास्ता तकते तेरा पलकें बिछाए ।
तुम अहम् के परदे उठा कर देखना,
ज़िन्दगी भर काम आती हैं दुआएं।
फूल की खुशबू गंवा दी बेरुखी में
अब जम गईं हैं बरफ बनकर कल्पनाएं।
दिन-रात दीवारो से सर टकराये,
खोखली साबित हुई परियोजनाएं।
पंथ भटकाते क्षितिज को तोड़ डालो,
हैं पाँव में ज़ंज़ीर सी बोझिल दिशाएं।
कल हम वतन की खाक में मिल जाएंगे,
गुनगुनायेंगी हमें बादल हवाएं।
छोटी-छोटी ख्वाहिशें लेकर चलो न ,
ये आग पानी से बुझेगी चल बुझाएं
अवधेश सिंह भदौरिया 'अनुराग'