मुश्किलों से लड़ संभल कर सामने आ,
रुख बदल तूफान का, या थामने आ।
वक़्त नंगे पाँव है जलती ज़मीं अंगार सी,
आग का दरिया है इसको लांघने आ।
रात भर मदमस्त होकर सो सकेगा,
घर में बेचैनी है अब तो जागने आ।
भूख , बेकारी ये नाहक़ प्यास बेबस,
सर उठा के गर्व से हक़ माँगने आ।
ख़ाक़ में मिलने ना दो तुम ज़िन्दगी को,
खुल गए उम्मीद के खत वांचने आ।
तुम इन चिरागों को जलाना रात भर,
तेवर बहुत गहरे अँधेरे फूंकने आ ।
ना कोई आहट मगर मन टूटकर बिखरा,
प्रेम धागों में पिरोकर बांधने आ।