रूप और रंग का एक गुलशन हो तुम ,
रूपसी ,गुलबदन ,बरखा,सावन हो तुम !
शोख ,चंचल ,अदा, नरगिसी , बांकपन,
इक उफनती नदी जैसा ,योवन हो तुम ।
संग-ए-मरमर की मूरत, महक संदली ,
जुल्फ काली घटा,बिजली,बादल हो तुम ।
दूर हो पास हो ,मन का एहसास हो ,
ऋतु,हवा,ताजगी,और धड़कन हो तुम ।
शक्ल-ओ-सूरत हया साजो श्रंगार ,तन ,
हुश्न की आग से पिघला ,दरपन हो तुम ।
यूँ उतर आयी ज्यों , आसमां से किरन ,
चांदनी,चौहदवीं रात ओ पूनम हो तुम ।
स्वप्न 'अनुराग' अब ,जागरण बन गए,
प्रेम-मय-साधना ,मेरी दुल्हन हो तुम ।