'बिछा लो ज़मीं आसमां ओढ़ लो'
तुम बिछा लो ज़मीं ,आसमां ओढ़ लो ,
रास्ते खींच कर , कारवां मोड़ दो।
मैं तो तन्हा हूँ , तन्हाईयाँ हमसफर,
थाम लो हाथ ,या ,उँगलियाँ छोड़ दो ।
शब्द बनकर , पिघलता रहूँगा सदा,
छांट लो शीर्षक . हाशिया छोड़ दो ।
अजनबी मोड़ फिर मुड गई ज़िन्दगी,
वक्त पर मंजिलों का , पता छोड़ दो।
पत्ता-पत्ता, कली, फूल , कांटे ,सवा,
तोड़ लो शाख पर ,तितलियाँ छोड़ दो ।
मेहरवां आज फिर , इम्तहाँ ले रहे हैं,
सब मुबारक तुम्हे ,मेरी जां छोड़ दो ।
पंख पाकर परिंदे ,उड़े चूमने आसमा,
लौटकर आयेंगे वो , निशां छोड़ दो ।
क्या पता खुद से , कब सामना हो ,
एक दीवार पर , आईना छोड़ दो ।
हो घुटन गर कभी , काम आ जाएगी ,
घर में 'अनुराग',ताज़ा हवा छोड़ दो ।