हसरतों का बोझ इतना बढ़ गया,
थर-थराया तन-बदन फिर गिर गया।
चंद आँसू ही बचे हैं आँखों में,
दर्द का तूफ़ान शायद थम गया।
किसने चिंगारी हवा में घोल दी,
सूखे पत्तों सा नशेमन जल गया।
प्यार से अपना बनाया आपको,
कैसे एहसासों का दामन छिल गया।
दीप बनकर मैं जला हूँ रात भर,
फिर अँधेरा क्यों फिजां घुल गया।
जब पलट कर आपने देखा मुझे,
थकते क़दमों को सहारा मिल गया।
इतनी भी दरियादिली किस काम की,
बातों - बातों में ही सूरज ढल गया।
शख्त चट्टानों से जल रिसने लगा,
जब नदी की धार का मन हिल गया।
यार मौज़ों में उलझ कर रह गया,
देखने तो सिर्फ मैं साहिल गया।
वक़्त मुठ्ठी में हमारी बंद था,
मुठ्ठियाँ खोली तो हर इक पल गया।
हस्त - रेखाएं सरल हैं या खुदा,
सोचने कर 'अनुराग' का संवल गया।