आज फिर कोई शरारत हो गई,
ज़िन्दगी जीने की आदत हो गई।
छुप गई थीं राख में चिंगारियां,
फिर जली बस्ती कयामत हो गई।
मिल नहीं सकते नजर के सामने,
आखों-आँखों से शिकायत हो गई।
चन्द साँसे हैं इन्हें भी खर्च करलूं ,
बे-मज़ा ,बे-लुत्फ़,चाहत हो गई।
वो खूबसूरत है हमारी कल्पना भी,
रात को दिन से मोहब्बत हो गई।
हो गए सारे नज़ारे गुमशुदा मंजर,
लोफिर अंधेरों की इनायत हो गई।
आज-कल मेरा पता मत पूछियेगा,
हम सफर में है इबादत हो गई।