चैन से सो जाऊं मुमकिन हो नहीं सकता,
कोई एक भी बैचैन है मैं सो नहीं सकता।
तुम वक़्त की कीमत समझ कर बोलना,
बे-बजह खामोश चुप-चुप रो नहीं सकता।
लो कर दिया एलान तो अब जंग भी होगी,
सिलसिला इतिहास का रंग खों नहीं सकता।
आँख का पर्दा हटा फिर देख सूरज की तपिस,
शोला , दहकती आग हूँ तू छू नहीं सकता।
कोई हंगामा नहीं मत बोल कुछ करके दिखा,
बनके खालिश बोझ खुद को ढ़ो नहीं सकता।
मत गिनाओ नुख्श यूँ हर बात पे ओ आदमीं,
ये हैं तेरे दुखते ज़ख़्म क्या धो नहीं सकता।
छट-पटा कर बैठ जाता चिलचिलाती धूप में,
फिर भी सूरज चाहिए ये बुझ नहीं सकता।