मीलों दूर निकल जाते हैं,
जब भी ख्वाब मचल जाते हैं |
रिश्तों की बुनियाद दरकती ,
हम खुद को तन्हा पाते हैं |
बाहर निकल संभल जाएगा ,
जो चलते मंजिल पाते हैं |
पलकों से मत इन्हें दबाना ,
बहने दो गम धुल जाते हैं |
अपने साय से डर लगता है,
जब अपने रंग बदल जाते हैं |
मिटटी के घर महल दिखेंगे ,
जब बस्ती ,शहर उजड़ जाते हैं |