दर्द तो होता रहा,पर मुस्कुराना आ गया,
चढ़ते सूरज से हमें, नज़रें मिलाना आ गया ।
भूलकर भी ना भुला पाया तेरे एहसास को,
सामने पल-पल मेरे,गुज़रा ज़माना आ गया ।
नीड से बाहर निकल,नन्हें परिंदे उड गए,
उनकी खामोशी को यारों,चहचहाना आ गया ।
ज़िन्दगी के बोझ से,काँधे,कमर सब झुक गए,
बनके क़ाबिल बाप को,आँखें दिखाना आ गया।
मन,वचन,संकल्प से बहता रहा जो उम्र भर,
वक्त की संकरी नदी , गहरा मुहाना आ गया।
आँधियों , तूफ़ान में हमने संभाले हैं चिराग,
आप क्या समझेंगे अब,मौसम सुहाना आ गया ।
हो बुलंदी पर,ज़मीं मत भूल जाना आदमी ,
वक़्त है मालिक उसे,सबको झुकाना आ गया ।