पांव के नीचे ज़मीं गुम,और सर से आसमां,
ढूंढता रहता हूँ अक्सर खो गए जाने कहाँ।
रह गई एहसास बनकर ज़िन्दगी आखिर,
मज़िलें गुमशुदा दर-दर भटकता कारवां।
आज तूफानो से टकराना है ज़िद मेरी ,
तुम हौंसला देना हमें साथ बनके रास्ता।
दर्द के हिस्से जरा तुम मोड़ कर रख लीजिये,
कौन जाने कब तुम्हारे हाथ लग जाए दुआ।
कुछ नहीं होगा ज़माने से शिकायत मत करो,
मुठ्ठियों में हैं लकीरें आओ करले तर्जुमाँ।
आ गई कश्ती किनारे पर मगर तूफ़ान भी,
इंम्तहां की ये घडी है ओ हमारे नाखुदा।
आबरू कब तक सलामत रह सकेगी सोचिये,
उग रहे गुलशन में कांटेदार पौधे झाडियां।