मैं तेरे एहसास को जीता रहा,
आग,आंसू,थे धुआं पीता रहा।
दर्द में तो था मगर ना सका,
खुश रहे तू सोचता,सहता रहा।
यार लहरों के मुसाफिर थे कभी,
कुछ तो था साहिल वो बैठा रहा।
मेरी जानिब तो उंगलियाँ उठ गईं,
क्यों मेरा मुझपे कोई हँसता रहा।
हो गया गायब अचानक बात से,
जिसका हर शै-मात में चर्चा रहा।
आखिर भरोसा था तुम्हारा ज़िन्दगी,
रोज मर-मर कर भी जो ज़िन्दा रहा।
बेखुदी में था मेरे आगोश में तन्हा
होश में आया तो शर्मिंदा रहा।