रह गया आधा-अधूरा आदमीं,
दर्द दिल में है, आँखों में नमीं।
बाँट लो आकर मेरी तन्हाइयां,
आती-जाती सांस मेरी ज़िंदगी।
खो गया सारा शकूने दिल कहीं,
हम अंधेरों में, भटकती रौशनी ।
चल दिए मुंह मोड़के मेरे अज़ीज।
कौन खालीपन भरेगा फिर कमी।
शक्ल मेरी देख,आईना घबरा गया,
हो गया आखिर भयानक आदमीं।
ये दर्द का रिश्ता हमें मंजूर है यारों,
साथ इनका है निभाना लाजमीं।
गर्दिश-ए -माहौल से बाहर निकल,
जाग कदमों में झुकेगी सरज़मीं।