हम शाख से टूटे,ज़मीं पर आ गए.
क्या हुआ जो,आप यूँ घबरा गए ।
थी उनींदी आँख,मैं जागा ही था ,
वो रात की चादर पुनःफहरा गए ।
आज मैं हैरान हूँ , इस बात से ,
मुझको परेशां देख,सब कतरा गए ।
मुस्तक़िल ,कुछ भी नहीं है दोस्तों ,
देख फिर मौसम, बहाराँ आ गए ।
दर्द तो हमको भी, होता है जनाब ,
आप पर गुजरी, तो यूँ मुरझा गए।
आँख में आंसूं, लहू की बूंद - बूंद,