पता है रास्ता बदनाम है,
इसी तो बात का संग्राम है।
कुरेदो मत पुराने घाव को,
बेक़ुसूरों के सर इल्ज़ाम है।
भटकता रात-दिन ये आदमी,
कोई तो बात है नाकाम है।
पेट भर रोटी हमारी आरज़ू,
हमारी भूख़ तो बस आम है।
मुश्किल तो नहीं है ज़िन्दगी,
परेशां हर तरफ आवाम है।
यार अधिकारों बाते फिर कभी,
करने के लिए कोई काम है।
ज़िन्दगी भी दिल्लगी कर चली,
आखिरी है मौत का पैगाम है।