जिस थाली में खाते उसमें करते छेद
हिन्दू और मुस्लिम में ये मामूली भेद।
इन्हें निभाना नहीं आता अपनापन,
भाई-भाई के जुमले पर है हमको खेद।
सुन वतन हमारा रंगभूमि है प्रेमधरा,
कहें शास्त्र पुराण अष्टदस चारो वेद।
गंगा-जमुना-सरस्वती की धार - धवल
सृजन-संगमम हो जाता है अटल अभेद।
चन्दन सी समरसता हैं,जो बिषधर लटकाये,
बन कर ये तस्बीह फूल को ही देते ज़ेब।
ज़ल्लादों से संस्कार हैं नरभक्षी,आतंकी हैं,
फितरत है वहशीपन,पेश नफरत,नस्ल-फरेब।