फिर उठ संभल आगे निकल,
ठोकरों को भूल कांटे कुचल ।
मत भ्रमित हो आदमीं अब ,
है ये वक्त ,अवसर में बदल ।
बुझ गई आग , रख चिंगारियां,
मुस्कुराने दे कीचड में कंबल ।
छोड़ दे जिद ,हवा बदलाव की,
बर्फ के मानिंद , झट से पिघल ।
जल रही है रात,बुझती रोशनी,
दिल जलाने की करदे पहल।
अगर दिल के सफ़े को बांच ले,
उलझते एहसास हो जाते सरल |
व्यर्थ है , संकल्प , ये सवेदना,
ना उजड़ जाएँ मुरादों के महल |