शुक्रिया उम्मीद नाजिर हो गई,
मेहरबानी आज आखिर हो गई।
कर नहीं पाया बयां हालात को,
बेबसी आँखों से जाहिर हो गई।
लुत्फ़ आता है हमें अब दर्द में,
साथ तन्हाई मुसाफिर हो गई।
दोस्तों रहना सफर में मंज़िलें,
सोचना इकमुश्त हाज़िर हो गईं।
मुस्कुरा के कह गई कुछ तो नज़र,
सच छुपाने में जो माहिर हो गईं।
कम करें आओ दिलों के फासले,
कोशिशें कमजोर काफिर हो गईं।
हो चुकी इंसानियत भी बदचलन,
कौम कब कैसे मुतासिर हो गई।