
कहाँ गया वो प्यार ,तुम्हारी हमदर्दी,
उतर गया है ज्वार,लहर की मन-मर्जी ।
आया था तूफ़ान डुबाने कश्ती को,
बन बैठा पतवार ,समय की बेरहमीं ।
कलियाँ चुन-चुन हार पिरोये धागों में,
गुलशन का आभार महकती सरगरमी।
कितना और बदलते अपनी तकदीरें ,
बनी रही दीवार , दिल्लगी हदकरदी ।
जब भी गुजरोगे दिल के गलियारों से ,
फूटेगी रसधार मधुर मीठी - मीठी ।
कभी अतिक्रमण मत करना मर्यादा का
खो दोगे अधिकार अगर की अनदेखी ।
गलत आंकलन मत करना तुम क्षमता का,
हैं शब्द मेरी तलबार मेरी करनी -धरनी ।