'सूरज को देखकर'
जलने लगा सारा शहर,सूरज को देखकर,
सुस्ता रही है धूप भी ,छाया समेटकर ।
क्या हो गया है भूख को,कुछ तो बताइये,
भरता है पेट आदमीं , ईमान बेचकर।
कल तक दिलों के मौसम,बड़े खुशगवार थे,
अब देखते हैं लोग सब ,आँखे तरेरकर।
सपनो को आसमान से , नीचे उतार लो,
इनकों बुझाएंगे कभी , फुरशत में बैठकर ।
चुन-चुन के ले चलो सवाल ,लाज़िमी हों जो ,
शायद मिलें जवाब फिर , धरती कुरेदकर।
हम सबने बनाया है , मसीहा फ़कीर को ,
उम्मींद है अब अच्छे दिन , आयेंगे लौटकर।
दुआओं में असर हो न हो ,दम बद्दुआ में है ,
'अनुराग'लौटने लगे हैं ,वो गुनाह छोड़कर ।
'सूरज को देखकर'
जलने लगा सारा शहर,सूरज को देखकर,
सुस्ता रही है धूप भी ,छाया समेटकर ।
क्या हो गया है भूख को,कुछ तो बताइये,
भरता है पेट आदमीं , ईमान बेचकर।
कल तक दिलों के मौसम,बड़े खुशगवार थे,
अब देखते हैं लोग सब ,आँखे तरेरकर।
सपनो को आसमान से , नीचे उतार लो,
इनकों बुझाएंगे कभी , फुरशत में बैठकर ।
चुन-चुन के ले चलो सवाल ,लाज़िमी हों जो ,
शायद मिलें जवाब फिर , धरती कुरेदकर।
हम सबने बनाया है , मसीहा फ़कीर को ,
उम्मींद है अब अच्छे दिन , आयेंगे लौटकर।
दुआओं में असर हो न हो ,दम बद्दुआ में है ,
'अनुराग'लौटने लगे हैं ,वो गुनाह छोड़कर ।