कितना वतन परस्त हूँ मैं जानता नहीं,
जल्लाद हूँ,गद्दार को मैं छोड़ता नहीं।
वन्दे मातरम् करो या गूदडे समेट लो,
सैलाव आ रहा है सालो भागना नहीं।
जब ज़िद पे आ गया हलक़ खींच लाऊंगा,
कमबख्त काफिरों को ज़िंदा छोड़ना नहीं।
ये सब नमक हराम हैं साबित भी हो गया,
जड़ से उखाडते चलो,दरख़्त तोडना नहीं।
तिरंगे की शान में उठो सपूत आहुति बनो,
तुम राष्ट्रयज्ञ के लिए बने हो भूलना नहीं।
जिसमें मनुष्यता वो हिन्दू है हिन्दुस्तान है,
तुम रक्त-बीज हो सबाल पूछना नहीं ।
संसद में शोरगुल पे मौन चुप नहीं रहना,
बिकराल काल ढाल हैं कभी भी टूटना नहीं।