इशारों की भाषा समझने लगे हैं,
हमें फासले अब अखरने लगे हैं।
नहीं जानता हूँ,कहाँ मेरी मंज़िल,
क़दम लडख़ड़ा के भी चलने लगे है।
आजकल दर्द में लुत्फ़ आने लगा है,
जखम प्यार बाले महकने लगे हैं।
मेरे सामने प्रश्न तो है, हल नहीं है,
बुझे हौंसले फिर पिघलने लगे हैं ।
मुझे रोक लेंगे वो आवाज दे कर,
यही सोच कर मन बहकने लगे हैं।
लहर छू रही है किनारों के मन को,
भंवर प्रेम के लहर बनने लगे हैं।
हमें याद हैं वो मुक़द्दस सी बातें,
मुड़े छोर फिर शून्य बढ़ने लगे हैं।