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दर्द में हूँ आराम नहीं है

7 नवम्बर 2015

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दीन - दशा  है   काम   नहीं     है,

दर्द     में   हूँ ,  आराम   नहीं   है ।


उगते     सूरज   ,  ढ़लती    रातें,

दिन  मिल  जाये  शाम   नहीं है 


अपने   ही     आंसूं    पीता    हूँ,

प्यास   हमारी   आम   नहीं  है ।


जो  जी  चाहे   मोल    चुका   दो,

मेरा   तो  कोई   दाम   नहीं   है ।


टूटा   मन     बिखरी     बुनियादें,

ठहरा    है     नाकाम     नहीं   है ।


सांस  - सांस    कुर्बान   ज़िन्दगी,

दी   तुमको     इलज़ाम   नहीं    है ।


इतना   चुप , बुत   हुआ    आदमीं,

क्या  ,  कुछ  ये  , पैगाम   नहीं   है ।


दिल , धड़कन   बन   गये    किनारे,

जीना     अब    आसान    नहीं    है ।


लौ    तो   है   बुझ     गई     रौशनी,

फिर   भी   वो    गुमनाम   नहीं    है ।


छूने       से      कुम्लाह    जाते     हैं,

नाज़ुक     वो  ,  बदनाम    नहीं     हैं ।


कितना   भी    'अनुराग'      कीजिये,

बेगारी      कोई      काम     नहीं     है |






अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

धन्यवाद प्रवीण वोरा जी !

7 नवम्बर 2015

प्रवीन बोरा

प्रवीन बोरा

बहुत बढ़िया.....

7 नवम्बर 2015

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

चंद्रेश जी आपका हार्दिक आभार,एवं अभिनन्दन !

7 नवम्बर 2015

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

गौरी कान्त जी आप का हार्दिक अभिनन्दन !

7 नवम्बर 2015

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

आपकी सुखद प्रितिक्रिया हेतु हार्दिक अभिन्दन शर्मा जी !

7 नवम्बर 2015

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

चंद्रेश विमला त्रिपाठी

जो जी चाहे मोल चुका दो, मेरा तो कोई दाम नहीं है...क्या बात है अनुराग जी

7 नवम्बर 2015

गौरी कान्त शुक्ल

गौरी कान्त शुक्ल

दर्द में हूँ , आराम नहीं है सुन्दर ग़ज़ल

7 नवम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

"दिल , धड़कन बन गये किनारे, जीना अब आसान नहीं है ।"…बेहतरीन ग़ज़ल !

7 नवम्बर 2015

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कैसे कह दूँ कि सवेरा हो गया

8 फरवरी 2016
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कैसे कह दूँ कि सवेरा हो गया, और भी गहरा अँधेरा हो गया।  हूँ धुआं औ धुंध के आगोश में,  आज साय से भी खतरा हो गया। कोई तो समझे हमारे दर्द को,क्यों ज़माना गूंगा-बहरा हो गया। मीठे सपनो को संजोये सो गया, जाग कर देखा तो पहरा हो गया। जिनके जिम्में थी हिफाज़त दोस्तों,शख्स वो काफिर लुटेरा हो गया। सामने आकर हमें

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एक तुम ही नहीं मेरहबां और भी हैं

10 मार्च 2016
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एक तुम ही नहीं मेरहबां और भी हैं,हमसफ़र भी नए कारवां और भी हैं। मंजिलों तुमको इतना गुमाँ किसलिए,इस जहाँ में हमारे मकाँ और भी हैं। बात सीधी है फिर भी समझ लीजिये,इस गुलिस्तान के बागवाँ  और भी हैं। हाथ छोडो मेरा शौक से जाइए तुम ,रास्तों में अभी नक़्श-ए-पां  और भी है। कौन जाने मुक़द्दर में क्या-क्या लिखा ह

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हवा को रोक मत अपना बनालो ज़िन्दगी

21 नवम्बर 2015
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परिंदे आसमां छूकर ज़मीं पर आ गये,नये तेवर , दिखाते पंख  वो  इतरा  रहे |कहीं खामोशियाँ फिर घेर ना लें रास्ता,यही तो सोचकर हम आप भी घबरा गये|दुआ फिर काम आएगी  संवारों ,ले चलो,बची उम्मीद के काबिल सिपाही आ गये |हवा को रोक मत अपना बनालो ज़िन्दगी,सिरों को जोड़ दो जो टूट कर  छितरा  गये |उठा लाओ कहीं से भी सकू

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बता दो देश किसका है ,कोई तो सामने आकर

13 जनवरी 2016
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बता दो देश किसका है ,कोई तो सामने आकर, मैं हिन्दू या मुसलमां हूँ जरा समझाओगेआखिर। मुझे भी बरगलाने की बहुत कोशिश हुई है दोस्तों, टिका हूँ फिर भी ईमां पर कहा सबने मुझे काफ़िर। ना जाने क्या हुआ है शहर की आब-ओ-हवा को, चलो हम-तुम रहेंगे आज से शमशान में जाकर। मिलेंगे दिल खिलेंगे गुल ये भूल जाओ अब नहीं,कलेज

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लहर बनकर क्यों किनारा ढूंढता है

7 दिसम्बर 2015
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क्यों लहर बनकर किनारा ढूंढता है,आदमी बुजदिल  सहारा ढूंढता  है। प्यार का रिश्ता है मत तौहीन कर, रे कम्बखत मेरा तुम्हारा ढूंढता है।  कोई बुलाता प्यार से आवाज़ देकर,    वो रात भर  टूटा सितारा ढूंढता है।   इक मर्तबा नज़रें मिला फिर करना,   आज-कल  छुपकर नज़ारा देखता है। यारो तज़ुर्बा हो गया अपने खिलाफ,  साथ

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तन्हा-तन्हा है आदमीं देखो

9 नवम्बर 2015
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आसमां खो दिया ज़मीं देखों,तन्हा-तन्हा है  आदमीं  देखो ।मंजिले हैं  ना  रास्ता  हासिल,मेरी कोशिश में है कमीं देखो ।मुश्किलें घर बना के  बैठ  गईं,दल - दली  हो  गई ज़मीं देखो ।ख्वाब   टूटे   हैं  आईना  झूठा,थर-थराती   है   रौशनी   देखो ।अब  मेरी  चाहतों  में  जिंदा  है,मर चुका है  जो  हमनशीं  देखो ।जम  ग

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अगर सामने आओ,आना संभल कर

23 फरवरी 2016
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अगर सामने आओ,आना संभल कर,हूँ तूफान पागल,न रख दूँ कुचल कर। लहर हो तो साहिल से टकराना होगा,समंदर  के  कन्धों  से नीचे उत्तर कर। उछल कर चलो पांव में बिजलियाँ हैं,उजालो,अंधेरों की गलियो से चल कर। वो मासूम तो था नहीं फिर भी शायद,   सच  ढूँढ   ले  आईनो  को  बदल  कर।  फ़ित्तरन लोग शातिर हैं खंजर सरीके,गुनाह

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वो मेरे दर्द से वाफिक तो है

17 अक्टूबर 2015
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वो मेरे  दर्द से वाफिक तो है,मगर शामिल नहीं  है,यहाँ पे रास्ता तो है मुसाफिर,मगर मंजिल नहीं है | यूँ तो वो मेरे दिल के,बहुत नजदीक होते हैं लेकिन,वो जानते हैं यकीनन,मेरे हमदर्द के काबिल नहीं हैं | तेरी बातों से बिस्मिल हैं आहें ,निगाहे आबरू तक ,हमें अब भी सकूं है,तू जो हो ,मगर कातिल नहीं है |मुझे माल

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मत कुरेदो ज़ख्म हैं,आंसू बहेगे

23 नवम्बर 2015
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मत कुरेदो ज़ख्म हैं,आंसू बहेगे,हारकर जीतेंगे हम ,जिंदा रहेगे। बख्श दूँ तुमको,खाताएँ आपकी, उम्रभर हम खुद से शर्मिंदा रहेंगे। याद आएगी  तेरी  हर  बात  पर,राज-ए-दिल अब होके बेपर्दा रहेंगे। दिल्लगी समझूँ तुम्हारा भोलापन,रात -दिन अब आप ही चर्चा रहेंगे। आपकी बातें,तुम्हारी कश-म-कश,देखकर नाराज़ कुछ ज्यादा रह

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पहले तो अपने आप का ईमां संवारिये

24 अक्टूबर 2015
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पहले तो  अपने आप  का ईमां  संवारिये, फिर आस-पास सबको आईना दिखाइये।था वक़्त विचारों को शमशीर  बना  देते ,इन शोर -शराबों से  , जरा बाज  आइये ।हम सब भी कर रहें हैं इन्साफ की पहल,तालिब हैं  आप  यूँ  ना  मजमाँ  लगाइए ।लफ्जों का मुक़म्बल,तराश कर  के  देख ,अलफ़ाज़  की  बुलंद  सदा   आजमाइए ।माना की अँधेरा  घना

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कितना वतन परस्त हूँ मैं जानता नहीं

7 जनवरी 2016
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कितना वतन परस्त हूँ मैं जानता नहीं,जल्लाद हूँ,गद्दार को मैं छोड़ता नहीं। वन्दे मातरम् करो या गूदडे समेट लो,सैलाव आ रहा है सालो भागना नहीं। जब ज़िद पे आ गया हलक़ खींच लाऊंगा,कमबख्त काफिरों को ज़िंदा छोड़ना नहीं। ये सब नमक हराम हैं साबित भी हो गया,जड़ से उखाडते चलो,दरख़्त तोडना नहीं। तिरंगे की शान में उठो सप

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वो सुनता है सबकी ,सुना कर तो देखो

20 दिसम्बर 2015
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वो  सुनता  है  सबकी ,सुना  कर  तो  देखो, लगन  दिल की दिल से लगा कर तो देखो। कि   धुल  जाएंगे   दाग़  ,दिल  के  तुम्हारे,तुम   आँखों  से  आंसूं  बहा  कर  तो  देखो। तेरी     मंज़िलें    कल    तेरे    पास    होंगी, क़दम   रास्तों   पर   बढ़ा   कर   तो   देखो। निभाना    है   मुश्किल   बहुत   फासले    हैं, ब

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तुम्हें हुआ अनुराग ना करिए अनदेखी

6 नवम्बर 2015
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आँखों  में  हैं  ख्वाव  लवों   पे  खामोशी,तुम्हें  हुआ  अनुराग  ना  करिए  अनदेखी।मुश्किल  से  दिल  मिलते हैं संवल करलो ,करो   नई   शुरुआत   समय  की  है मर्जी।हंसी , प्रेम  के  लिए समय  कम  पड़ता है ,नफरत     है    बेकार     छोडिये    सरदर्दी।बीत  गए  जो   लम्हें    उनको    जाने   दो,सच  करलो  स्वीकार

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हैं आज भी हालात की पगडंडियां,

2 फरवरी 2016
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हैं  आज  भी  हालात   की  पगडंडियां,  जो रास्तों की   बन   गयीं  नाकामियां। थी सामने मंज़िल क़दम का फासला,फिर  आ  गई  दीवार  कोई  दरमिया। कोशिशें   करता   रहा   मैं   बार - बार, लल्ले   गयी    आंधी    उड़ाती    कारवां। क्यों गुम रही पहचान  उड़ती  धुन्ध  में,हैं हर घडी  रिश्तों  में  बढ़ती  तल्ख़ियाँ। कांच

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बर्फ ,पानी ही बनेगा

12 अक्टूबर 2015
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''बर्फ ,पानी ही बनेगा''भाप  हो  या बर्फ ,पानी ही बनेगा,शब्द हैं कविता,कहानी भी बनेगा ।आजमा लेना किसी भी  मोड  पररहा का पत्थर , निशानी ही बनेगा ।मुश्किलों  का दौर जब भी आएगा ,जोश  का  लावा  रवानी  ही  बनेगा ।थाम लो हालात,हैं घुटनों पर  हमारे,वक्त कल फिर से जवानी ही बनेगा ।पीर को जब -जब तराशा   जायेगा

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ये उठती आवाज दबा ना पायोगे

14 फरवरी 2016
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ये उठती  आवाज  दबा  ना पायोगे,है  बुलंद  इकबाल झुका ना पाओगे। मैं धुली हुई दीवारों पर लिख जाऊंगा,हैं पथ्थर के लफ्ज़ मिटा ना पाओगे। धधक   रहे   हैं   हर  सीने  में  अंगारे,इंक़लाब  की  आग  बुझा ना पाओगे। चाहे जितना जोर लगालो अबकी बार,फिर से झूठे ख्वाब  दिखा ना पाओगे। टूटी  गर   इस  बार   हमारी  उम्मींद

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अधूरा था मुकम्बल हो गया

16 नवम्बर 2015
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अधूरा  था  मुकम्बल  हो  गया ,शुक्रिया  प्यार  हासिल हो गया ।ना  मुडकर  आपने देखा दोवारा,तुम्हारा  दिल ही  पत्थर हो गया ।चलो   आओ  मिटा   दें   फासले ,पिघलती   बर्फ  दरिया  हो  गया ।राह  से   कांटे  चुनूँगा  उम्र   भर ,तुम्हें  पाना  ही  मंजिल  हो  गया ।नहीं  सुलझे मगर जायज  सवाल,बदलता   वक्त   घायल

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रात-रात भर सपने देखे,आँख खुली तो सूनापन

6 मार्च 2016
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रात-रात भर सपने देखे,आँख खुली तो सूनापन, काम बटोरे ,ज़मीं कुरेदी नहीं भर सका खालीपन। चप्पा-चप्पा,कूल-किनारे टूटी छत थी झुकी दिवारें,धूप गुनगुनी,छाँव समेटे दूर छिटकता अपनापन। धीरे-धीरे दरक रही हैं रिश्तों की बुनियादें भी,मर्यादाएं टूट चुकी सब और पिघलता बहशीपन। ख़ामोशी में शोर सुलगता और भीड़ में सन्नाटा,

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''आंसुओं में बह निकले "

3 अक्टूबर 2015
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दर्द में डूब गए,आंसुओं में बह निकले ,दिल जो  पिघला ,तो  समंदर  निकले |बेवफा 'साँस'मगर,एतबार सदियों का ,हाँ यही सोच के ,घर से सिकंदर निकले|माइने रोज नए गूंथती,कतरा-कतरा सीती,ज़िन्दगी काश!नए-दौर का सफर निकले |टूटकर आप बिखरते हैं ,या संवर जाते हैं,जिसने हालात संभाले,वो मुकद्दर निकले|जब भी दिखते हैं आइनो

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वो हौंसलों को ऊँची उडान दे गया,

16 मार्च 2016
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!!*******ग़ज़ल*******!!वो हौंसलों को ऊँची उडान दे गया,जो बेजुबान को भी जुबान दे गया। हीरे भी यहां कांच के पत्थर बने रहे, तू जौहरी मिला तो पहचान दे गया।  मुझे आइना समझ के देखता रहा,गुमनाम ज़िन्दगी को एक नाम दे गया। सबकी निगाहों में अजनबी बना दिया,ये दिल्लगी थी लेकिन इल्ज़ाम दे गया। रोटी कमा रहा है ईमान ब

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उसकी जुबां में धार है

21 अक्टूबर 2015
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कुंद है शमशीर पर, उसकी जुबां में धार है ,वो मजहबी बारूद में ,सोया हुआ अंगार है ।बस्तियां भी जल उठीं,अफवाहों के यूँ पर लगे ,ये है सियासी खेल,इसका बेहरम विस्तार है ।खतरे में घर-आँगन हमारे,और उनकी आबरू,दिल में दरारें पड गईं ,सदमें में हर  दीवार  है।इस कदर बदले कि हमतुम कीमतों में ढल गए,बोली लगा कर देख

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मचाना शोर तू हिन्दू है ना मुसल्मा है

29 नवम्बर 2015
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मचाना शोर तू हिन्दू है ना मुसल्मा है,अपने दिल में झाँक,तू कितना इंसा है।  दहशत  का व्यापार  चलाना  बंद करो,तौबा करो गुनाहों से भगवान मेहरबां है। आँखों में बस प्यार,जला दो नफरत को,तोड़-फोड़,दंगे-फसाद,किसका अरमाँ है। बदल राह है दौर,सही बुनियाद रखो अब,भरेंगे घाव छोड़ टकराव,फैसला करना है। नहीं बदलती फितरत

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''ये तेरे और मेरे बीच का संवाद था ''

5 अक्टूबर 2015
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आंकलन मत कीजिये ,इस वक़्त उस उन्माद का ,ये सीधा-सीधा, मेरे और तेरे ,बीच का संवाद था ।तोड़कर सागर किनारा ,घुस गया है बस्तियों में ,पी गया जो ज़िन्दगी को ,ये कौन सा तूफ़ान था ।जागरण का दौर है मत सो,अन्धेरा ढूंढ ना ले मशवरा है आपको, मानना ना मानना ईमान था ।हो गई जर्जर इमारत ,खंडहर रोशन गुलिस्ताँ,गर्द

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इशारों की भाषा समझने लगे हैं

12 दिसम्बर 2015
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इशारों की भाषा समझने लगे हैं,हमें फासले अब अखरने लगे हैं। नहीं जानता हूँ,कहाँ मेरी मंज़िल,क़दम लडख़ड़ा के भी चलने लगे है। आजकल दर्द में लुत्फ़ आने लगा है,जखम प्यार बाले महकने लगे हैं। मेरे सामने प्रश्न तो  है, हल नहीं है,बुझे हौंसले फिर पिघलने लगे हैं । मुझे रोक लेंगे वो आवाज दे कर,यही सोच कर मन बहकने लग

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रात - दिन डसने लगी,तन्हाइयां

27 अक्टूबर 2015
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ज़िन्दगी की मुश्किलें ,दुशवारीयाँ,कर  रही  हैं , मौत  की  तैयारीयां।                                                        फासले  बढ़ने  लगे , हैं  बे- बजह,                                                        दे   रहीं  धोखा , मेरी    परछाइयां।                                                     

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ना कोई बंधन,ना कोई बेबसी देखी

2 जनवरी 2016
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ना कोई बंधन,ना कोई बेबसी देखी,ज़िन्दगी तो दोस्तों हमने हसीं देखी। गहराई से उठकर शिखर तक आ गए,उनकी आँखों में चमकती रौशनी देखी। मुश्किलें भी हमसफ़र थी रास्ता बनके,आँख मंज़िल पर हमेशा ही जमीं देखी ।दौड़कर आये कोई मेरे गले से आ लगे,अपने रिश्तों में यही शामिल कमीं देखी। वक़्त पर काम आ गए तो शुक्रिया यारों,पर

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निश्छल,अटल,संकल्प की परिकल्पना

25 दिसम्बर 2015
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निश्छल,अटल,संकल्प की परिकल्पना,जब-जब  हुई   सहनी  पड़ी  आलोचना।   पकड़ी  अलग  राह  तो बागी  कह दिया ,   देखना कल ये बुनेंगे इक नयी संभावना।    जिन  दरख्तों  को  लचकना  आ  गया है,     फूल-फल  देंगे  बनेगे  भूख  की  संवेदना।     करके   तजुर्बा   देख -सुन  अपने ख़िलाफ़,     जम गई है आइनों पे धूल कितनी देखन

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मुश्किल हैं हालात,मगर मैं जिंदा हूँ,

4 नवम्बर 2015
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मुश्किल हैं हालात,मगर  मैं जिंदा हूँ,सबके  उतरे  रंग  कि,मैं  शर्मिंदा   हूँ।नहीं चाहिए ,ये अपनापन  रहने   दो ,गुजर गए तूफ़ान कि,अब मैं अच्छा हूँ।मैंने  अपना  और  पराया   ना  जाना ,बिखर गए  जज़्बात,ह्रदय  से  टूटा  हूँ।महलों में  हम  नहीं  सफ़र  में  होते  हैं ,भूल  गया दिन-रात, हमेशा  चलता  हूँ।क्या  

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पता है रास्ता बदनाम है

9 जनवरी 2016
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पता  है  रास्ता  बदनाम  है,इसी तो बात का संग्राम है। कुरेदो  मत पुराने  घाव को,   बेक़ुसूरों के सर इल्ज़ाम है।   भटकता रात-दिन ये आदमी,  कोई  तो  बात  है  नाकाम  है। पेट  भर  रोटी  हमारी  आरज़ू, हमारी भूख़ तो बस आम   है।  मुश्किल तो नहीं  है  ज़िन्दगी,   परेशां  हर  तरफ   आवाम   है। यार अधिकारों बाते फिर

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'सूरज को देखकर'

9 अक्टूबर 2015
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                                           'सूरज को देखकर'जलने लगा सारा शहर,सूरज को   देखकर,सुस्ता   रही  है  धूप  भी ,छाया  समेटकर ।क्या हो गया  है भूख को,कुछ  तो  बताइये,भरता  है  पेट  आदमीं   , ईमान     बेचकर।कल तक दिलों के मौसम,बड़े खुशगवार थे,अब  देखते  हैं  लोग  सब  ,आँखे  तरेरकर।सपनो को  आसमान

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हम आज फिर हालात से आगे निकल

30 जनवरी 2016
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हम आज फिर हालात से आगे निकल, अब फूँक देगे क्रांति का मिलके बिगुल। लो ढाल और तलवार को पिघला दिया, हैं  हौंसले    फौलाद  से  गहरे , गरल। फिर खौलता लावा हुआ जोश -ए -जूनून,हम  बह  उठे  ज्वालामुखी  बनके  तरल। यूँ  तोड़कर  चट्टान  दरिया   चल  पड़ा,इन  पत्थरों   से   कब   रुकीं  धारें   धवल।गुनगुनाने  दो  मध

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ख़ुशी को बाँटता चल आदमी अच्छा लगेगा

7 नवम्बर 2015
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,ख़ुशी को बाँटता चल आदमी अच्छा  लगेगा, ग़मों की भीड़ में सच्चा कोई अपना  लगेगा।जिसे भी चाहोगे  दिल से तुम्हें मिल  जाएगा,नज़रीया साफ़ रखना शर्तीयाँ  मौक़ा  मिलेगा।मेरी उम्मीद तू फिर से  आदमी बन   जाएगा,कोई तो  हमसफ़र  होगा ,कोई  रस्ता   बनेगा।बयाँ करदो मेरी खामोशियों को लफ़्ज दे दो तुम,मुझे मालूम है  फिर को

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जिस थाली में खाते उसमें करते छेद

3 फरवरी 2016
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जिस थाली में खाते उसमें करते छेद हिन्दू और मुस्लिम में ये मामूली भेद। इन्हें निभाना नहीं आता अपनापन,भाई-भाई के जुमले पर है हमको खेद। सुन वतन हमारा रंगभूमि है प्रेमधरा,कहें शास्त्र  पुराण अष्टदस चारो वेद। गंगा-जमुना-सरस्वती  की  धार - धवल सृजन-संगमम हो जाता है अटल अभेद। चन्दन सी समरसता हैं,जो बिषधर ल

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कि रूठा ना करो

1 अक्टूबर 2015
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छोड़ भी दो जिद, कि रूठा ना करो ,तुम कांच के मानिंद, टूटा ना करो|मेरी उम्मीद कायम है,यकीनन आप से,सरे बाज़ार में हमको ,यूँ लूटा ना करो ।इरादा कर लिया जब,वक़्त से आगे चलेंगे,यूँ थककर रास्तों पर,आप बैठा ना करो । मुझे मालूम होता ,दर्द से रिश्ता पुराना है ,मगर इस बात से,दिल और छोटा ना करो ।हमें जीना भी

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कोई तो है हमको अपना सा लगता है

12 फरवरी 2016
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कोई तो है हमको अपना सा लगता है,लेकिन फिर सच भी सपना सा लगता है। यूँ तो दिल की गहराई में तुम बसते हो,क्यों सौ बार तुम्हें छूने को दिल करता है। कहने को कुछ भी शेष नहीं पर हलचल है,जीने की ख्वाहिश है मरने को दिल करता है। मैं बूंद-बूंद प्यासा सागर,आचमन  करूँ,भावों के गंगाजल पीने को मन करता है। तुम मधुर-म

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हो गए हैं ख्याल आवारा,

12 नवम्बर 2015
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हो   गए   हैं   ख्याल   आवारा,तीखी    बातें   सवाल   आवारा ।टूट  के  संग  बिखर  गए   लम्हें,जलते  बुझते   चिराग   आवारा।लौटके आ गए भटके   मुसाफिर,दिल में  बहती है  आग  आवारा।रंग,खुशबू , हवा  के  पंख   लिए,मिलने  आई   थी  रात   आवारा।काश  हालात   कुछ  सरल  होते,फिर ना बिछती विसात आवारा।और   खामोश   र

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छोटे-छोटे ख्वाब पलट कर आएंगे

18 फरवरी 2016
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छोटे-छोटे ख्वाब पलट कर आएंगे, जब मन के टुकड़े-टुकड़े बंट जाएंगे। ज़ख्मों का विच्छेदन होगा बात-बात पे, अपने  ही  साये  से हम  टकरायेंगे। अनदेखा मत करो किसी का दर्द कभी,पछतायेंगे   नज़रो   से   गिर   जायेंगे। तिनको से भी घर बनता है जोड़ो तो,  महल  सभी  हालांतो  के   ढह जायेंगे।  दुखते हैं जब  पाँव  के छाले

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'रूप-औ-रंग का एक गुलशन हो तुम'

15 अक्टूबर 2015
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  रूप और  रंग का एक गुलशन हो  तुम ,  रूपसी ,गुलबदन ,बरखा,सावन हो तुम !                                                           शोख ,चंचल ,अदा, नरगिसी ,  बांकपन,                                                           इक उफनती नदी जैसा ,योवन हो  तुम ।                                             

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जो दिल में उतर जाए वो यार मोहब्बत है

2 मार्च 2016
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जो दिल में उतर  जाए वो यार मोहब्बत है,जो हद से गुजर जाये वो प्यार मोहब्बत है। क्या हाल मेरे दिल का एहसास तुम्हें भी है,तेरे साथ में जीने का इजहार मोहब्बत है। बस दिल से तुम्हें चाहा कुछ और नहीं जाना,मंजूर तुम्हें जो भी अधिकार मोहब्बत है। आगाज़ से डरते थे अंजाम खुदा  जाने,स्वीकार नहीं फिर भी इंकार मोहब

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फिर उठ संभल आगे निकल

18 नवम्बर 2015
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फिर उठ संभल आगे निकल,ठोकरों को भूल कांटे कुचल ।मत  भ्रमित  हो आदमीं अब ,है  ये  वक्त ,अवसर में बदल ।बुझ गई आग , रख चिंगारियां,मुस्कुराने दे कीचड में कंबल ।छोड़ दे जिद ,हवा बदलाव की,बर्फ के मानिंद , झट से पिघल ।जल रही है रात,बुझती रोशनी,दिल जलाने की   करदे पहल।अगर दिल के सफ़े को बांच ले,उलझते एहसास  हो

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मत कुरेदो ज़ख्म हैं,आंसू बहेगे,

8 मार्च 2016
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मत कुरेदो ज़ख्म हैं,आंसू बहेगे,हारकर जीतेंगे हम ,जिंदा रहेगे।बख्श दूँ तुमको,खाताएँ आपकी                                                                                 ज़िन्दगी भर खुद से शर्मिंदा रहेंगेयाद आएगी तेरी हर बात पर                                                                             

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'हो गए बागी सवाल'

22 सितम्बर 2015
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वो लोग वतन बेच के,खुशहाल हो गए,वाशिंदा मेरे मुल्क के,कंगाल हो गए ।रखना पडा है गिरवी ,आबरू-ईमान को,बच्चे हमारे भूख से ,बेहाल हो गए ।रोटी की भूख कम थी ,चारा भी खा गए,सत्ता में सियासत के,जो दलाल हो गए ।है मुल्क तरक्की के, दौर-ए-सफ़र में यारो,कई राम-औ -रहीम के,बिकवाल हो गए ।लौ कंपकपा रही है,अरमान चिरागों

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डूब कर निकलेगा है दावा मेरा,

14 मार्च 2016
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डूब कर निकलेगा है दावा मेरा,सब्र रख अब आएगा मौका तेरा। मेरी उम्मीदों के चिथड़े उड़ गए हैं,कितना बिस्फोटक रहा धोखा तेरा। फट गया बादल किनारे बह गए हैं, अब तो आवारा हुआ दरिया तेरा। मैं तो लहर बनकर चला था रेत पर,लो बुझ गया मैं बन गया सहरा तेरा। आइनों के सामने बैठा रहा हूँ मैं, पर नज़र आता नहीँ चेहरा मेरा। 

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लगाई आग,फिर उठकर बुझाने चल दि

22 नवम्बर 2015
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लगाई आग,फिर उठकर बुझाने चल दिए,कितना अपनापन है,ये दिखाने चल दिए |पूरे इत्मीनान से,हालात की गर्दन पकड,टूटती अफवाहों के पर लगाने चल दिए | है जुबां बारूद की,उन्माद की चिंगारियां,जल गयी बस्ती पानी जलाने चल दिए |घर घरौंदों में कटीले फूल,कांटे झाड़ियाँ,पाँव में चुभने लगीं आंसू बहाने चल दिए |प्रेम पागल,पांव

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एतिहातन या अदब के साथ,झुकना पड़ेगा,

23 नवम्बर 2015
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एतिहातन या अदब के साथ,झुकना पड़ेगा,दौड़ने बालों तुम्हे हर हाल में,रुकना पड़ेगा। आज फिर बाज़ार में ईमान की बोली लगी,व्याकुल है बच्चे भूख  से इसे बिकना पडेगा। तुमको जलना है चिरागों रौशनी के साथ में,ये अंधेरों का हलाहल  आपको  पीना  पड़ेगा। देर  तक  बैठो  मेरी  तन्हाईयाँ   खामोश  हैं,ज़िन्दगी इक बार फिर  तुम्

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''ना सही धूप''

4 अक्टूबर 2015
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जोश भी है जूनून भी,शोलों में ढलने केलिए ,मुंतज़िर है वक़्त , कुछ कर गुजरने के लिए ।ना सही धूप ,चिरागों में रोशनी काफी,अंधेरों को उजालों में,बदलने के लिए । रोक के रास्ता मेरा,खड़ा है वक्त कबसे , मैं भी तैयार हूँ ,हालात बदलने के लिए ।तेरी ज़िद ने उजाड़ दी हैं ,बस्तियां दिल की ,मुझको मंजूर थी हर शर्त संभलने

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लगाओ रोक मत ,यूँ रफ़्तार पर,

23 नवम्बर 2015
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लगाओ रोक मत ,यूँ रफ़्तार पर,है भरोसा नाख़ुदा, पतवार  पर। शख्त चट्टानें पिघलती,हौंसले,टूटते  बहते  नदी  की  धार  पर। अँधेरा चीरकर निकलेगा सूरज,उम्मीद कायम अभी संसार पर।धुआं है,धूल भी,मिट्टी,बवन्डर,मैं  मरता  हूँ  मगर घर-वार पर। बहुत  गहरा है सन्नाटा  मगर,चढ़ेगा  शोर  फिर  तलवार  पर। आवाज़ संसद भी सुनेगा

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मैं जब आपकी आँखों,में आंसू देखता हूँ

22 अक्टूबर 2015
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मैं जब भी आपकी आँखों,में आंसू देखता हूँ ,गुनाह क्या हो गया हमसे  ,हमेशा सोचता हूँ  ।बदल दी आपने तकदीर,मेरा साथ  देकर ,तुम्हें मंजिल से मीलों दूर लेकर आ चुका हूँ ।ना जाने वक्त कब किसका सुना दे फैसला ,मैं  कब हालात से डरकर किनारा ढूंढता हूँ ।है मुश्किल वक्त पर उम्मीद को मत छोड़ना,संभल कर थाम लो लम्हें,

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टूटते रिश्ते,सिमटता आसमां

4 दिसम्बर 2015
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टूटते रिश्ते,सिमटता आसमां। हो गया तन्हा,मुसाफिर कारवां।थम गया है शोर सन्नाटा जवां,धुंध उड़ती और गहराता धुआं । खूब रोया था तेरे जाने के बाद,आँख रोई है सिसकती आत्मा। आखिरी उम्मीद भी जाती रही,रास ना आई मेरे मालिक दुआ। सामने दरिया मगर प्यासा रहा,बेबसी,थी किस कदर बे-इन्तहां। फूल से खुशबू  तराशो  ले  चलो, 

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"मैं आवाज़ हूँ"

23 सितम्बर 2015
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आप अल्फाज हैं ,तो मैं आवाज़ हूँ,खुबसूरत तरन्नुम का,मैं साज़ हूँ ।मुस्कुराना सिखाया था,कल आपने ,आज दुनिया के हंसने,का अंदाज़ हूँ ।ज़िन्दगी भर तराशे ,मुहब्बत के बुत ,उनकी मंजिल हूँ मैं ,तेरा आगाज़ हूँ ।चाहतों की डगर ,आइना हूँ तुम्हारा ,मत समझाना कभी,तुमसे नाराज़ हूँ ।हमसफर ना सही ,हूँ सफ़र आपका ,कल भी था

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वक़्त के पन्ने पलटना देखना

11 दिसम्बर 2015
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वक़्त के पन्ने पलटना देखना,धुंध के  नीचे मिलेगा  आईना।टूटते रिश्ते बिखरते जा रहे हैं,प्रेम-धागों में ,पिरोना  जोड़ना। लो बुझादो दोस्तों भड़के चिराग ,आग लगने की प्रबल संभावना। मत बनाओ बेबसी को सुर्खियां,ख़ाक़ में मिल जाये ना संवेदना। आईंना धुंधला गया उम्मीद का,  है मेरा सजना-संवरना कल्पना।  रौशनी  में उठ

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हम शाख से टूटे,ज़मीं पर आ गए

25 अक्टूबर 2015
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हम शाख से टूटे,ज़मीं पर आ गए.क्या हुआ जो,आप यूँ घबरा गए ।थी उनींदी आँख,मैं जागा ही था ,वो रात की चादर पुनःफहरा गए ।आज मैं हैरान  हूँ ,  इस  बात  से ,मुझको परेशां देख,सब कतरा गए ।मुस्तक़िल ,कुछ भी नहीं है दोस्तों ,देख फिर मौसम, बहाराँ  आ  गए ।दर्द तो हमको भी, होता है  जनाब ,                           

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फिर उडी मिटटी,हवाएं धुंध बादल छा गया

13 दिसम्बर 2015
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फिर उडी मिटटी,हवाएं धुंध बादल छा गया,है कोई संकट धरा पर देखना गहरा गया। सूझता अब कुछ नहीं,अपना-पराया दोस्तों,  भुखमरी ज़ालिम गरीबी का बवंडर आ गया।  हो रहे बदनाम हम-तुम सब्र की भी इन्तहां, है जुबां खामोश पर हाथो में खंज़र आ गया। मौत तक कायम रहेगा आदमी तेरा करम ,ज़िन्दगी दोहराए पे तेरा मुक़द्दर आ गया। कल

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''मगर मंजिल नहीं है''

6 अक्टूबर 2015
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मेरे इखित्यार में तो है ,मगर हांसिल नहीं है ,सफर भी,रास्ता भी है ,मगर मंजिल नहीं है|महज़ दस्तूर है ,मिलना-मिलाना ,दोस्ताना ,बदलते दौर में ,कोई यकीं काबिल नहीं है ।वो इक दिन लौट आएंगे ,मेरी उम्मीद उनसे ,फ़कत गुमराह है,वो आदमी पागल नहीं है ।तू रूठेगा अगर,हम भी मनाना सीख लेंगे,ज़मीं है प्यार में मौजूद ,अब

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करो हौंसला रुख हवा का बदल दो

24 दिसम्बर 2015
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करो  हौंसला  रुख  हवा का बदल दो,   चलो झूमकर मुश्कलों को कुचल दो।  ज्यादा नहीं  पर तेरे  सदक़े मन्ज़िल, भटकती  हुई  राह  को  एक  हल  दो। थाम के उँगलियाँ ले चलो रौशनी में,अंधेरे  मेरे   रौशनी    में   बदल  दो। अगर ज़िन्दगी का यही हश्र तय था, तो सूखे हुए आँसुओं  को भी जल दो। मिटा  दो  निशां   राह  से  रह

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नए आकार में मैं ढल रहा हूँ

28 अक्टूबर 2015
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लगाई आग थी,मैं जल रहा हूँ ,नए आकार में मैं ढल रहा हूँ ।बदल के रूप सांचे तोड़ आये,नया अंदाज़ में अब मिल रहा हूँ ।जलाओ या  बुझाओ  मर्जीयाँ ,मैं सूरज हूँ अभी तक जल रह हूँ ।मुझे हर वक़्त इतना मत तराशो,तुम्हारे साथ अब भी चल रहा हूँ ।गिरा जब भी संभाला ,आपको ,कभी तो मैं तुम्हारा दिल रहा हूँ ।फितरतन हम नहीं बद

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अभी हैं राख में चिंगारियां

29 दिसम्बर 2015
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अभी हैं राख में चिंगारियां, हवा दो फूंक दो दुश्वारियां। दबा कर मत रखो सपने ,उठो पूरा करो तैयारियां ।  काम नामुमकिन है ठानलो,  हार  के जीत लो  बाजियां  । तूफानो का डर लगता नहीं,जब हमसफ़र हों आंधीयां। ऎव खुद के तलाशो जरा तुम,गिनाते  हो हमारी खामियां । आबरू बाजार में बिकती,खामोश घर,वर,ड्योढियाँ। ख्वाहिश

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वक़्त से आगे निकल,फिर सामने आ

26 दिसम्बर 2015
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मुश्किलों से लड़ संभल कर सामने आ,रुख बदल तूफान  का, या  थामने  आ। वक़्त नंगे पाँव है जलती ज़मीं अंगार सी,आग  का  दरिया  है  इसको  लांघने  आ। रात   भर  मदमस्त   होकर  सो  सकेगा,घर   में   बेचैनी  है  अब  तो   जागने आ। भूख ,  बेकारी   ये  नाहक़  प्यास   बेबस, सर   उठा   के   गर्व   से   हक़  माँगने  आ। ख़ाक़

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नए कुछ रोज के मेहमाँ हैं ,पुराने ज्यादा

3 नवम्बर 2015
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शुरू होते ही ख़त्म होते हैं फ़साने  ज्यादा,नए कुछ रोज के मेहमाँ हैं  ,पुराने  ज्यादा ।नहीं फुर्सत उन्हें,मेरे हालात क्या जानेगे  वो,अब तो हर बात पे आते हैं  ,बहाने  ज्यादा । साथ,जज्बात  जरुरी  है ,निभा  लो  तुम  भी ,तेरे हर जिक्र में होते  हैं,यार  उल्हाने   ज्यादा ।उम्र छोटी है  मगर ,इल्म-ए-तजुर्बा  

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शुक्रिया उम्मीद नाजिर हो गई

5 जनवरी 2016
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शुक्रिया उम्मीद नाजिर हो गई,  मेहरबानी आज आखिर हो गई। कर नहीं पाया बयां हालात को,बेबसी आँखों से जाहिर हो गई। लुत्फ़ आता है हमें अब दर्द में,साथ तन्हाई मुसाफिर हो गई। दोस्तों रहना सफर में मंज़िलें,सोचना इकमुश्त हाज़िर हो गईं। मुस्कुरा के कह गई कुछ तो नज़र,सच छुपाने में जो माहिर हो गईं। कम करें आओ दिलों क

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''चिराग हवा ने बुझा दिया ''

8 अक्टूबर 2015
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''चिराग हवा ने बुझा दिए''जलता हुआ चिराग,हवा ने बुझा दिया ,झूठा नकाब सच के,बयाँ पर चढ़ा दिया |हम पूजते रहे जिसे ,भगवान् की तरह ,कम्बखत ने साँसों पे,पहरा बिठा दिया|कल तक ख्याल था,जिन्हें मेरे सुकून से ,उसने ही मेरी रहा को,मुश्किल बना दिया|मैं जानता हूँ आप भी,गुमराह हैं मगर ,भटके हुए को फिर भी,रास्ता बत

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कल भी तूफानो से मेरा सामना होगा

8 जनवरी 2016
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कल भी तूफानो से मेरा सामना होगा,बांकी कितना दम है हमको देखना होगा।  वक्त पर काम आएगी ये ज़िन्दगी नादां,इक खूबसूरत सा अगर रिश्ता बुना होगा। रात लम्बी है अँधेरी,घोर काली डर लगे है,अब अपनी उमीन्दो का सूरज ढूँढना होगा।हो ना दिलों के दरमियाँ कोई फ़ासला यारों  बड़ी शख्त दीवारों को मुश्किल तोड़ना होगा। मंजिले

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अधूरे ख्वाव ,टूटे आईने अब मत संभालो

5 नवम्बर 2015
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अधूरे ख्वाव ,टूटे आईने  अब  मत  संभालो ,उठो  आह्वान  दो   आसमां  को  झुका  लो| बुझी यादों  को  शोलों के  हवाले  कर  चलो ,बदल दो वक़्त भी हालात को अपना बना लो|जिन्हें तुम मानकर अपना  चले  हो हमसफर,कसौटी पर कसो पहले उन्हें  भी  आजमालो|ना लाना  चाँद  तारों  को हमें  शिकवा  नहीं , बुझे ना आंधीयों में  भी

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भीख पर कानून है फिर भी भिखारी हैं

12 जनवरी 2016
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भीख पर कानून है फिर भी भिखारी हैं,जो भीख से पैदा हुए वो सत्राधारी हैं। हैं कुकुरमुत्ते  कोई औकात मत पूछो, काम कुछ आता नहीं घातक बीमारी हैं। काँटों की तरह उग आये  है वो मधुवन में,सूख रहीं हैं पुष्प-लताएँ  बेबस  क्यारी  है।कल तक साहिल पर खड़े हुए तूफां से डरते थे, वक़्त फिर गया तिनकों का लहरों पे सवारी

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"एक तुम ही नहीं मेहरबाँ और भी हैं"

28 सितम्बर 2015
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एक तुम ही नहीं ,मेहरबाँ और भी हैं ,हमसफ़र और भी , कारवां और भी हैं ई मंज़िलों तुमको इतना गुमाँ किसलिए ,इस जहाँ में हमारे ,मकाँ और भी हैं ​I आरजुएं जवाँ,जोशे-दिल भी रवां ,जिंदगी में अभी ,इम्तहाँ और भी हैं Iहम परिंदे कहीं भी , ठहरते नहीं,नापने को अभी ,आसमाँ और भी हैं ​i वक़्त दिखता नहीं ,पर दिखता तो है

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क़ैद में मेरी उमींदे बेहिसाब

15 जनवरी 2016
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क़ैद में मेरी उमींदे बेहिसाब,एक दिन तो लाऊंगा मैं इन्कलाब। लुत्फ़ जीने में,मज़ा ले बाबरे,ज़िन्दगी खुद ही उठाएगी नक़ाब। वक़्त की तबियत जरा रंगीन है,देखते ही हो गया पानी शराब। इन लवों की सुर्खियों को देखकर,आज फिर शरमा गए खिलते गुलाब। मेरी जानिब तो उँगलियाँ उठ गईं,बे-मज़ा सब हो गया खाना खराब]बात छोटी थी मगर ग

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दर्द में हूँ आराम नहीं है

7 नवम्बर 2015
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दीन - दशा  है   काम   नहीं     है,दर्द     में   हूँ ,  आराम   नहीं   है ।उगते     सूरज   ,  ढ़लती    रातें,दिन  मिल  जाये  शाम   नहीं है ।अपने   ही     आंसूं    पीता    हूँ,प्यास   हमारी   आम   नहीं  है ।जो  जी  चाहे   मोल    चुका   दो,मेरा   तो  कोई   दाम   नहीं   है ।टूटा   मन     बिखरी     बुनिया

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वक़्त है बदलाव की आंधी चली है

1 फरवरी 2016
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वक़्त है बदलाव की आंधी चली है, बहुत बाँकी है अभी आधी जली है।अब लौट आओ भूले भटके आदमीं, क्या बुराई घर में जो आधी मिली है। तुम कल का सूरज देख पाओगे भला, ज़िन्दगी की मौत से दिल की लगी है। यूँ तो आँखों से गुजरते ख्वाब कितने,  हर स्वप्न की तासीर अपनी सादगी है। रह जायेगा सब कुछ यहीं ये हाथ खाली, सोच कर देखो

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'बिछा लो ज़मीं आसमां ओढ़ लो'

9 अक्टूबर 2015
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'बिछा लो ज़मीं आसमां ओढ़ लो'तुम बिछा लो ज़मीं ,आसमां ओढ़ लो ,रास्ते   खींच   कर  ,  कारवां मोड़ दो।मैं तो तन्हा   हूँ ,  तन्हाईयाँ   हमसफर,थाम लो हाथ ,या  ,उँगलियाँ  छोड़ दो । शब्द बनकर , पिघलता    रहूँगा  सदा,छांट लो शीर्षक . हाशिया   छोड़   दो ।अजनबी मोड़ फिर मुड  गई  ज़िन्दगी,वक्त पर  मंजिलों  का , पता  छ

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मेरी आवाज़ ख़ामोशी के परदे चीर डालेगी

3 फरवरी 2016
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मेरी आवाज़ ख़ामोशी के परदे चीर डालेगी,कहाँ तक बेजुबानी की हमें ज़ंजीर बांधेगी। बदलने हैं हमें तारीख में इतिहास के पन्ने,  जगाओ हौंसलों से ही तेरी तक़दीर जागेगी।  मचलता  जोश का तूफान सीने में  संभालो  लहू हर देशद्रोही का मेरी  शमशीर मांगेगी। ज़मीने दलदली होंगी पिघल जाएँगी चट्टानें,हवाएँ आग पीकर के तरल अंग

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घना अँधेरा छा गया,बुझ गए दीप चिराग

8 नवम्बर 2015
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घना अँधेरा छा गया,बुझ गए दीप चिराग.हैं  चिंगारी  राख  में  दबी  हुई    है  आग।पिघल गई सब ज़िन्दगी,धूप-छांव के संग,अपनी ढपली,तुड्तुडी,अपन-अपना राग ।मल-मल धोये जिस्म को,पाँव पाखरे खूब,ना तो बदले आईने,धुले ना  मन  के  दाग।कोयल, कौआ , केंचुली  उतरे हुए   भुजंग,कबहूँ ना  बैठत घर बने ,तकत बिराने बाग़ ।रूप  

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लो हमें चलो ले चलो क्षितज के पार जाना है

4 फरवरी 2016
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                                                             लो हमें भी ले चलो  क्षितज  के  पार जाना है,हवा के पंख पहने  हैं  इसी  रफ़्तार  जाना  है। वसीयत भी न हीं,कुछ  चाहिए! ख़ैरात कैसी, अगर्चे दे सको तो दिल तुम्हारा प्यार पाना है। दिखाई   दे  न  दे  तुमको  ज़माना  देखता  है, हक़  चाहिये   मेरा   मुझ

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'पाबंदगी ज्यादा ना कर'

19 सितम्बर 2015
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दिल के अहसासात पर पाबंदगी ज्यादा ना कर,बिक चुका है ये खुदा भी ,बंदगी ज्यादा ना कर ।हो गए हैं गुल चिरागां ,आंधियों का जश्न था ,रोशनी हुई गुमशुदा ,तू तिश्न्गी ज्यादा ना कर ।बनते -बनते आधुनिक ,लो आदमी आदिम हुआ,यूँ सभ्यता की दौड़ में ,बेहूदगी ज्यादा ना कर ।है सफ़र लम्बा नदी का ,मौजें भी हैं बद-मिजाज़ ,डू

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मेहरवांनी जानिये क्या बात है,

11 फरवरी 2016
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मेहरवांनी  जानिये  क्या बात है, मेरी साँसे है सा तुम्हारा साथ है।  तेरे   मेरे   बीच   में   हैं   दूरियां, अजनबीं सा अनछुआ एहसास है। मन से ख्यालों से जुदा होते नहीं,तू   जागते  सोते  हमारे पास  है। ऐ काश मिल जाये हमारी ज़िन्दगी,अभी तो बेरुखी,तल्खियाँ है प्यास है। बंद आँखों में भी तुम हो रूबरू,तू गुन

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गम मेरे ,मरहम् पराये हो गये

10 नवम्बर 2015
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गम मेरे ,मरहम् पराये हो गये,क्या हुआ जो दूर साये हो गये |हो गए पर्दानशीं सब बे-नकाब,हम भी जमाने के सताए हो गए|देखने वो आयें हैं,लेकिन तमाशा,आज घर, दफ्तर,सराय हो गये  |ज़िन्दगी नाख़ून है,बढती रहेगी ,वक़्त से बाकिफ निकाय हो गए |उम्र के एहसास हम जीभर जिए हैं सबके  तुम ,मेरे  सिवाये  हो  गए |

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मैं क़दमों के पाक-ए-निशां ढूंढता हूँ

13 फरवरी 2016
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मैं क़दमों के पाक-ए-निशां ढूंढता हूँ,   प्यार की सरज़मीं आसमां  ढूंढता हूँ।  है अंधेरों में गुम रह-गुज़र ज़िन्दगी,   रोशनी   ढूंढता   हूँ   शमाँ   ढूंढता   हूँ। थक चुका हूँ मगर है दूर मंज़िल अभी,  हमसफ़र   ढूंढता,  कारवां   ढूंढता   हूँ। हैं गुलसिताँ  से  मौसम  बहारें खफा,आ कहाँ छुप  गया   बागबां   ढूंढता

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''गर्व मत कर तू ,पराई ताकतों पर''

13 अक्टूबर 2015
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गर्व मत कर तू ,पराई ताकतों पर ,वर्ना आ जायेगा,इकदिन रास्तों पर ।आबरू तक वो  ,तुम्हारी  लूट  लेगा, तू भरोसा कर गया,जिन दोस्तों पर ।रहनुमां साथ लाये थे,सफर में आपको ,छुड़ाकर हाथ आगे बढ़ गये,वो रास्तों पर ।यकीनन आपतो ऊँगली पकड़ के चल दिए ,निभा पाओगे हमसे दोस्ताना ,सोच लो  पर।वो भीतर और बाहर से,है बस खाली

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पांव के नीचे ज़मीं गुम,और सर से आसमां,

16 फरवरी 2016
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पांव के नीचे ज़मीं गुम,और सर से आसमां,ढूंढता रहता हूँ अक्सर खो गए जाने कहाँ। रह गई एहसास बनकर  ज़िन्दगी आखिर,मज़िलें गुमशुदा  दर-दर भटकता कारवां। आज  तूफानो   से  टकराना  है   ज़िद  मेरी  , तुम हौंसला देना  हमें  साथ  बनके   रास्ता।  दर्द के हिस्से जरा तुम मोड़ कर रख लीजिये,कौन जाने कब तुम्हारे हाथ लग जा

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खास से आम हो गए

14 नवम्बर 2015
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खास से  आम हो  गए ,लोग  बदनाम  हो गए |कोशिशें हम लाख   की ,मगर नाकाम  हो  गए |बागबाँ आज बेचारा है,गुल-ए-गुलफाम हो गए |धूप   ने  छांव   बुझादी ,राख   पैगाम   हो   गए | बांटते हैं दर्द बे-हिसाब,मुझपे इलज़ाम हो गए |छूने से जो मुरझा गया,उसके भी दाम हो गए |रश्म-ए-उल्फत निभाई,इश्क  के   नाम  हो गए |ठोकरें

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आरती का दिया,अब जलाओ

18 फरवरी 2016
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 आरती का दिया,अब जलाओ,है अँधेरा घना ,सब भगाओ। आस्थाए बहकने लगी फिर,दिल से आवाज देकर बुलाओ। फूल,कलियाँ दहकने लगी हैं या मेरी कल्पना है बताओ । व्यक्तिगत हो गए रिश्ते-नाते,कोई दिल को धड़कना सिखाओ। भीड़ में हूँ बड़ा तन्हा-तन्हा,टूटता जा रहा अब  बचाओ। आप फिर आ गए आजमाने,आईना आप खुद को दिखाओ। थोड़ा लगने लगेगा

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संभालता आदमी

1 अक्टूबर 2015
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टूटकर जब भी, संभलता आदमी ,और भी ज्यादा ,निखरता आदमी ।मंजिलों के बाद भी, जो रास्ते हैं ,उनसे भी आगे, निकलता आदमी ।तोड़कर चट्टान,जब दरिया चला ,देख!सागर सा,पिघलता आदमी|है इरादों की बहुत, लम्बी उड़ान ,जीतकर अक्सर,गुजरता आदमी|मिल गई  ,बुझते चिरागों को हवा,लो रौशनी लेकर,चहकता आदमी| बंद  दरबाजों पे,दस्तक फिर

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बुझ गया हूँ और तुम कितना बुझाओगे

24 फरवरी 2016
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बुझ गया हूँ और तुम कितना बुझाओगे,लगता चिंगारी को फिर शोला बनाओगे।इसलिए बिखरा था तुम मोती समझ लोगे,  प्यार   से  चुनकर   मेरी   माला   बनाओगे। मैं  तुम्हें  भी  जान  लूँ  कोशिश  हमेशा  की,मेरा   अधूरा  स्वप्न   कब   पूरा   कराओगे। आस्तीं  में बुझ न जाएं ये मेरे खाबो-ख्याल,इस ज़िन्दगी में क्या कभी अपना

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सब्र कर हौंसला रख,धुआं छट जायेगा,

17 नवम्बर 2015
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सब्र कर  हौंसला  रख,धुआं  छट जायेगा,धूप  निकलेगी  फिर  से  उजाला  आयेगा ।डर  के  मुखौटे  तोड़, ताजगी  को ओढ़कर,आसमां लहरा,इक  सिलसिला  बन जयेगा।कोशिशों  के  बीज  बोये  हैं  उगेंगे शर्तियाँ,छोटी-छोटी चाहतों का कारवां बन जाएगा|दौड़  कर आ  ज़िन्दगी  लग जा  गले  से,मेरी बैचैनी को थोडा हौंसला मिल जायेगा |चाह

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हो जाये अगर प्यार तो मुश्किल है छुपाना

4 मार्च 2016
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हो जाये अगर प्यार तो मुश्किल है छुपाना,आसाँ  नहीं है फूँक कर सूरज को बुझाना। माना की तेज आंधिया आएँगी बार-बार,दिल में दिया उम्मीद का वाज़िब है जलाना। दिल ढूंढ ही लेता है अंधेरों में हमसफ़र,नश्तर तो कई बार चुभाता है ज़माना।टूटेगी इंतज़ार की दीवारें  एक दिन,रूठे हुए एहसास हैं शिद्द्त से मनाना। कहीं खो न ज

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''शब्दों की मर्यादा में ,कुछ कहने का साहस करना''

16 अक्टूबर 2015
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शब्दों की मर्यादा में ,कुछ कहने का साहस  करना,ऐसा  लगता  है  अंजुली में ,लहराता सागर  भरना ।बस्ती-बस्ती,बच्चा-बच्चा,पत्ता-पत्ता सा मन टूटा है ,मुश्किल है  पर ,मुमकिन उम्मीदों को आँगन करना ।चटक रहा है सख्त धरातल,सदियों से दोहन के बाद,लौट रहे हैं फिर सत्-पथ पे,शुभ-शुभ परिवर्तन करना ।सभी दिशाओं में जान

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आग से गर्मी हवा से ताज़गी मिलती रहेगी

7 मार्च 2016
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आग से गर्मी हवा से ताज़गी मिलती रहेगी,हूँ इकलौता दिया पर रौशनी मिलती रहेगी। सिर्फ मेरा घर नहीं सारा जहाँ  खतरें में है,आग बुझ जायेगी लेकिन ज़िन्दगी जलती रहेगी। मौत का सामां बनाकर है बहुत खुश आदमीं,और कितने दिन सलामत प्यार की धरती रहेगी। यार मुमकिन था मिटाना ये दिलों के फासले,पर सियासत की दलाली भी सदा

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जब कोई चेहरा उदास दिखता है

20 नवम्बर 2015
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जब  कोई  चेहरा  उदास  दिखता है ,वक्त  सचमुच  ख़िलाफ़  लगता  है |जागती    आँख   है ,सो   गये  सपने,कोई   अपना, ना  खास  लगता  है |हमने   सकूने  दिल गवा दिया यूँ ही,जाने    क्या  अब  तलाश  करता  है |कौन  आया  है सहरा छुपाए सीने में,शर्तीयाँ , समंदर  की प्यास रखता है|हक़   अदा   कर  चले  जाने    बाले  ,अब

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ये छुप नहीं सकते छुपाया ना करो

9 मार्च 2016
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ये छुप नहीं सकते छुपाया ना करो,तुम याद में आंसू बहाया ना करो। वक़्त तो यूँ भी गुजर जायेगा दोस्त,इस वक़्त से नज़रें  चुराया ना करो। माना जरुरी था उजाला ,रौशनी ,इसकी खातिर घर जलाया ना करो। बात क्या है क्यों तुम्हारी आँख नम, हैं कीमती  आंसू बहाया ना  करो। प्यार के दो बोल  आसां हैं मगर,व्यर्थ में मुश्किल ब

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चुन-चुन के लाये मोती

18 सितम्बर 2015
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चिड़ियों से चहचहाना चुना,झरनो से संगीत सुहाना चुना ।लहरों से मृदुल तान सीखी ,शीतल पवन से गुनगुनाना चुना ।फूलों के लवों से शबनम ली ,कलियों से मुस्कुराना चुना । चंदा से सीखी आँख -मिचौली ,ग्रामवधू से शर्माना चुना ।अंधेरों ने सिखाया रात में ढलना,तो सितारों से झिलमिलाना चुना ।ज्येष्ठ -बैसाख से मांगी तपन

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दर्द जब दिल से मिला अच्छा लगा

10 मार्च 2016
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दर्द जब दिल से मिला अच्छा लगा, धीरे-धीरे चल पड़ा क्या सिलसिला। वक़्त के पन्ने  पलट कर देख लेना, क्या खबर मिल जाए कोई  रास्ता।  ओढ़ कर  खामोशियाँ  बैठे  हैं  क्यों आने  वाला  है कहीं   तो  ज़लज़ला । प्यार से  आवाज़  दो  इक  बार  तुम। ठहर   जाएगा    बिखरता    हौंसला। आंसुओं  से  तर-बतर चेहरा  छुपाये,  रात  

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दिल में चाहत थी,करिश्मा हो गया

21 नवम्बर 2015
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दिल में चाहत थी,करिश्मा हो गया,वो आसमा का चाँद,अपना हो गया ।मुद्दतों  से था  नहीं  अपना  पराया,फिर  मेरा  साया आज मेरा  हो गया ।खोल  दो  खिड़की  झरोंखे,मन , हवा,तन-बदन महका  गुलिस्तां  हो  गया ।झोंपड़ी मुझको महल लगने लगी है,खुल गई आँखें,ईमान मंहगा हो गया । मैं  पलटकर ,लौटकर  आता  रहूँगा ,धड़कने  मेरी,म

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हम हौंसला करके मुक़द्दर आज़माएं

16 मार्च 2016
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हम हौंसला करके मुक़द्दर आज़माएं हम हौंसला करके मुक़द्दर आज़माएं ,तपते  सूरज  से  चलो  नज़रें  मिलाएं । आपकी  नज़र-ए-इनायत     मेहरबानी,रास्ता  तकते   तेरा   पलकें   बिछाए । तुम  अहम्  के  परदे  उठा  कर देखना,ज़िन्दगी   भर  काम  आती  हैं  दुआएं।फूल   की  खुशबू   गंवा  दी   बेरुखी में अब जम गईं हैं बरफ बनकर 

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''लो फूल काँटा बन गया''

18 अक्टूबर 2015
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आप  बोये  फूल, कांटा बन गया ,आदमी सचमुच तमाशा बन गया । नूर आँखों का, बना है किरकिरी ,धूप में कण-कण,प्यासा बन गया। भूख ने फुटपाथ पर, दम तोड़ दी ,मौत के,दिल की,दिलासा बन गया।एक चिंगारी दबाये,रात भर बैठा रहा,पाँव से सर तक ,अबा सा बन गया । चूम कर अपनी हथेली,चल दिया 'वो अभागा भी ,दुआ सा बन गया।रात-दिन कचर

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तेरी तस्वीरों पर इक पैगाम लिखा है

17 मार्च 2016
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सौजन्य :-ग़ज़ल संग्रह "मैं सोने की चिड़िया हूँ"से तेरी  तस्वीरों  पर इक पैगाम  लिखा है,दिल के हर कोने में तेरा नाम लिखा है। है  सोने  का   फ्रेम  मगर  आईना   टूटा,असली औ नकली का अंतर जान चुका है।हैं   नाजुक   हालात   संभालेंगे   कितना,  बिना  तराशा  हीरा  भी  बे-दाम  बिका  है।  मैं मन का सौदागर हूँ तन

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''जिधर देखो कुहासा है धुंआ है ''

19 अक्टूबर 2015
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जिधर देखो,कुहासा है,धुआं है,बड़े खतरे में,लगता आसमां है ।जरा ठहरो इसे तुम मत जलाओ ,सुना ,बारूद से निर्मित दिया है ।अंधेरों को कुचलदे,रौशनी में आ,तुम्हारे साथ , अब भी  कारवां है।ना पूंछो हाल,अब मेरे  वतन का ,घना  कातिल , लुटेरा,  हुक्मराँ  है।भरे बाज़ार में लूटी गई वो आबरू,सभी का  खून पानी , हो  गया  ह

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प्यार का पैग़ाम आएगा जरुर

23 नवम्बर 2015
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प्यार  का  पैग़ाम  आएगा  जरुर,दिल-दिलों की राह पायेगा जरुर। यार मुश्किल दौर  है  डरना  नहीं,हौसला  तूफां से टकराएगा  जरुर। मंजिलों तक ये क़दम  ले  जायेंगे,भूला  भटका  लौट  आएगा  जरूर। दूर साहिल  से  लहर  मत  देखिये,मौजों में उतरो लुत्फ़ आयेगा जरुर। धडकनों  हैं  रात-दिन  कब  देखती,थक   गया   ठहराव  आएगा

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वक़्त की रफ़्तार से

22 सितम्बर 2015
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वक़्त की रफ़्तार से,जब भी कदम चाहा मिलाना ,रास्ता रोका सभी ने ,हौंसला तोडा हमारा |यूँ तो तेरे शहर में ,हर बार ही लुटता हूँ मैं ,ढूढने जब-जब भी आया ,एक उम्दा आशियाना ।एक मुद्दत से नहीं मैं ,जी सका हूँ ज़िन्दगी ,हो गया है वक़्त का ,बर्ताव इतना कातिलाना ।दोस्त-दुश्मन की परख ,करना भी मुश्किल हो गया ,एक सी

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मिला सभी का प्यार,तुम्हारा अपनापन

23 नवम्बर 2015
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मिला सभी का प्यार,तुम्हारा अपनापन,आज हुआ गुलज़ार,हमारा घर -आँगन ।पिघल गये जज्बात,जरा सी आँच मिली,कर लो  फिर  श्रंगार सखी,संगी , साजन।आशाओं  के   दीप-दिवाली, जला  दिआ,भाग्य  लक्ष्मी  आई  चूमती  मन-आँगन।स्वस्थ  हुआ  संवाद  पुनः  संबंध  मधुर ,आज   करो  संकल्प समर्पण मन-भावन।खुशियों  के  फिर  फूल खिले ,ड

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उन्मुक्त भाव से उड़ना है ,धरती छोडो आकाश चुनो

21 अक्टूबर 2015
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उन्मुक्त भाव से उड़ना है ,धरती छोडो आकाश चुनो ,खुद अम्बर धरती पर आये ,पैदा इतना विश्वास करो ।ये लहरों का उन्माद नहीं,है साहिल का संकल्प प्रबल ,लव चूम लौटती बिखर-निखर,ऐसा सुन्दर आभास बुनो।सीमित विकल्प ही देते हैं,हटकर  करने  की स्वतंत्रता  बंधन की स्वस्थ ऊर्जा ले ,आगे  बढ़कर  संवाद   करो ।है धूल,फूल के

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कि जब-जब चाहतों के दीप जलते हैं

28 नवम्बर 2015
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कि जब-जब चाहतों के दीप जलते हैं,बदलती रुख़ हवा, पथ्थर पिघलते हैं।उचककर आसमां छूने चला है आदमीं,जमीं पर्वत में ढलती मौसम बदलते हैं। उठाकर पाँव कंधों पर चलोना मोड़ तक,बहुत बेताब है मंजिल राहों से गुजरतें हैं। मुश्किलों का सही हल ढूँढना लेना दोस्तों, महज हालत ही तो हैं ,अक्सर बदलते हैं।  उबलकर भाप बनता ट

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''ये सफ़र उस शोर तक''

4 अक्टूबर 2015
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रात थक कर सो चुकी,मैं जागता हूँ भोर तक ,है मेरी खामोशियों का,ये सफ़र उस शोर तक ।लम्हां-लम्हां जोड़कर ,जीनी पड़ी जो जिंदगी ,क्या हुआ हासिल तुम्हे ,यूँ वक़्त मेरा तोड़कर ।लटके रहे ,रिश्ते सलीबों पे, मगर हम उम्रभर,थे अँधेरे हमसफ़र ,उस रोशनी के छोर तक ।जल रहा था मन मगर ,बेचैन, आँखों में नमीं ।ये साँस ही उम्मी

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पीते हैं लोग ज़हर,दवाओं के नाम पर

30 नवम्बर 2015
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पीते  हैं  लोग ज़हर,दवाओं के नाम पर,है  दौरे  तरक्की आज का इस मुकाम पर। बाक़ी जो बचा ज़िन्दगी के नाम कर चले, निकलेंगे हैं आज फिर ये परिंदे उडान पर। साफ़ करके आईना जरा खुद को निहारिये   फिर रखना कसौटी  पे,हमें  इम्तहान पर ।  हर दिल में इन्कलाब का अरमान छुपा है ,  मत छेडिएगा आप उनके स्वाभिमान पर।  हरगिज़  

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पहले अरमाँ थे,अब आरज़ू है

24 अक्टूबर 2015
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पहले अरमाँ थे,अब आरज़ू है,ख्वाब अब भी, मेरा हु-बहु है ।कोशिशों के निशा सलवटों में ,आब कम ,आंसुओं में लहू है ।वक्त की धूप में गम  पिघलते ,अपना चर्चा भी अब चारसूं है ।शुक्रिया रहा की ठोकरों  का ,मंजिले, कारवाँ ,साथ  तू  है ।दर्दे दिल की पहुँच है रूह तक,गम से हर वक्त  ही  गुफ्तगू है ।ज़िन्दगी आज फिर मोड़

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कितने टुकड़ों में बटेगा आदमी

7 दिसम्बर 2015
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कितने टुकड़ों में बटेगा आदमी,आदमी कब फिर  बनेगा आदमी। बहती नदी है साफ भी हो जायेगी,  जब गंदगी अपनी चुनेगा आदमी।   कल बदल के यार मौसम आएगा,  फिर और भी बेहतर करेगा आदमी। फैसला कर शोर से बाहर निकल,   यूँ लडखडाता चल सकेगा आदमी।  खर्च मत यूँ ज़िन्दगी को बे-हिसाब ,  संग वक्त के चलना पड़ेगा आदमी। धूप-छांव,रात

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हूँ ज़िन्दगी के काबिल

18 सितम्बर 2015
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यूँ भी तो जिंदगी में मुकम्बल हुआ हूँ मैं ,समझा ज़मीं गया,कभी कंम्बल हुआ हूँ मैं । दुश्मन भी ज़िन्दगी को ,मुबारक बता गए ,जब मौत के आगोश में संवल ,हुआ हूँ मैं ।जैसे भी चाहा जिसने ,इस्तेमाल किया है ,इकलौता गुलिस्ताँ का,संदल हुआ हूँ मैं ।तुम शौक़ से बैठो ,हमें इंकार नहीं है ,पर खुद पे रहम करना ,दलदल हुआ ह

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उम्र भर आती रहेगी याद है

10 दिसम्बर 2015
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उम्र भर आती रहेगी याद है,प्यार है,प्यार की बुनियाद है। बाँट सकते हो दिलो का दर्द भी,  गौर से सुनना मेरी फ़रियाद है। सब्र करना आपकी आदत में है, काबिल-ए-तारीफ़ है,इरशाद है।फैसला  करना  पड़ेगा  आपको, मुश्किलें हैं राहत-ए-इमदाद है। लुफ्त बन जाती है बेरंग जिंदगी,होता दिलों में प्यार का संवाद है। फितरतन मौसम

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''चैन से सो जा,सवेरा आएगा''

25 अक्टूबर 2015
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चैन से सो जा , सवेरा  आएगा, धूप निकलेगी, अँधेरा  जाएगा ।बुझ नहीं सकता,है सूरज दोस्तों, लौटकर मौसम,सुनहरा  आयेगा ।  है इरादों में , कई  परतें  खुलेंगीं,फिर कोई  तेरा , या मेरा आएगा ।लुत्फ़ ले मौजों का तूफां भूल जा, लहर से  टकरा, किनारा  आएगा ।फिक्र  मत  कर , ढूंढ लेंगे  रास्ता ,वक्त जब सर पर ,करारा  आ

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आज फिर कोई शरारत हो गई

11 दिसम्बर 2015
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आज फिर कोई  शरारत हो गई,ज़िन्दगी जीने की आदत हो गई। छुप गई थीं राख में चिंगारियां,फिर जली बस्ती कयामत हो गई। मिल नहीं सकते नजर के सामने,आखों-आँखों से शिकायत हो गई।चन्द  साँसे हैं इन्हें भी खर्च करलूं ,बे-मज़ा  ,बे-लुत्फ़,चाहत  हो  गई।वो खूबसूरत है हमारी कल्पना भी,रात को  दिन  से  मोहब्बत हो गई। हो गए स

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''आपने जब भी मेरा पोषण किया है ''

5 अक्टूबर 2015
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व्यक्तिगत सीमाओं का, शोषण किया है,आप  ने जब भी मेरा, पोषण किया  है ।मैं किनारे पे खड़ा था,ठीक महफूज था,घिर गया लहरों में,आपने भाषण दिया है|आज तक टूटी नहीं थी, कोई मर्यादा यहांँ ,उन्माद हो उग्र ,उत्पात का वर्णन किया है |व्यर्थ के आवेश में ,पागल मनुजता हो गई ,अपने-अपने स्वार्थरथ,बैठकर विचरण किया है ।म

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काश वो पहचान जाता रास्ता

12 दिसम्बर 2015
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काश  वो पहचान  जाता  रास्ता,हम  सफर  होता  हमारा   कारवां ,दौड़कर  आगे निकल तो आये हो,जीत  बांकी  है  बचाना  हौसला। दाग  गहरा  हो तो इक पहचान  है,है नया सदियों पुराना सिलसिला। टूट  कर  पत्ते  उड़ेंगे  दो- चार  -पल,बाद फिर धरती है  इनका  करबला। मन्नतें मांगो इबादत कर दुआ भी,एक  ना  इक  दिन  सुनेगा  सदा

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मैं हूँ अँधेरे में , उजाला ढूंढ लूंगा

25 अक्टूबर 2015
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मैं हूँ अँधेरे में ,  उजाला ढूंढ लूंगा  ,पांव का कांटा भी,छाला ढूंढूं दूँगा ।आने वाले  वक़्त का, दावा हूँ  मैं ,आदमी का घर ,निवाला ढूंढ लूँगा ।भूख लाखों की उम्मीदें  खा  गई ,वक्तकी मस्ती का प्याला छीन लूंगा।कल नहीं  बदले अगर, हालात ये,हालात से हाला,हवाला छीन लूंगा ।दरारें पड गईं ,दिल धडकनों में सुन,ह

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शर्त ना कोई मंजूर होगी

19 दिसम्बर 2015
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शर्त  ना  कोई  मंजूर  होगी,ज़िन्दगी अब ना दस्तूर होगी। राज  अब   ना  छुपेंगे   छुपाए,बात  निकलेगी  मशहूर  होगी। बेबजह  ना  इन्हें  तुम  कुरेदो,चोट दुःख-दुःख के नासूर होगी। ला-इलाज-ए  मर्ज है  दवा क्या,हो   इनायत  तो  काफूर  होगी। ढूंढ   लाएं  चलो   हम  उजाले,रात   लम्बी   है  बेनूर   होगी। कितनी मासू

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"ज़िन्दगी के और भी नजदीक जाना है "

23 सितम्बर 2015
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चाँद-तारों को ज़मीं पर, फिर बुलाना है ,ज़िन्दगी के और भी, नज़दीक जाना है ।रूठकर जो लोग ,गुम हो गए थे भीड़ में,ढूंढकर उम्मीद के ,आँगन में लाना है ।फैसला कल वक़्त का,जो भी हो देखा जायेगा ,मंजिलो की रहा पे, पांव को चलना सिखाना है ।हौंसलों से जीत लायेंगे दिलों का पुर-सुकून ,आखिर...अंधेरों को ,उजालों से बुझा

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जब सब नया ताज़ा प्रतीत होता है

22 दिसम्बर 2015
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जब सब नया ताज़ा प्रतीत होता है, तुम देखना सबका अतीत होता है।  है  नहीं  महफूज अस्मत भी घरों में ,  कोई ना कोई डर तो  करीब होता है।  सबके  जीने  की  बजह  बस प्यार है, फिर क्यों कोई दिलसे गरीब होता है। क्यों व्यर्थ में संकल्प खंडित हो गया,   विजय का रथ जाग्रित,समीप होता है।  अँधेरा  छट गया,उम्मीदों का

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बस्ती के जंगल से जब तू गुजरेगा

28 अक्टूबर 2015
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बस्ती  के   जंगल  से  जब  तू  गुजरेगा,संभल-संभल के चलना कोई चुग लेगा।पानी की हलचल को,पर्वत क्या रोकेगा,तोड़ - फोड़  के  चट्टानें ,बह  निकलेगा।टूट गया संवाद   ,वेदना  पिघल  रही  है ,अंतस में पड गईं दरारें,अब ना संभलेगा ।ख़ामोशी  ले  गई  चुरा  कर   सपनो को,टुकड़ा-टुकड़ा बिखर गया मन दर्पण का ।उतर रहा फिर चा

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दुआ पास रख लो,दवा आज़मालो

24 दिसम्बर 2015
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दुआ पास रख लो,दवा आज़मालो, अजनबीं हूँ,अपने गले से लागलो।  है ग़म बेवफा दिल नहीं मानता है,ये परछाईं है चाहे जब भी बुलालो। जी रहने भी दो ये अदब मेहरबानी,गिरे जब कोई उसको झुकके उठालो। कोई  तो  नज़ र देखती  है  तुम्हें भी,क़रम कर इबादत दिया फिर जलालो। मेरा दो गज कफ़न सिर्फ दो गज़ ज़मी, बाक़ी सब आपका ही है,आओ सं

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हालांकि मैंने वक़्त का रास्ता नहीं देखा

7 अक्टूबर 2015
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"हालाँकि मेरा वक़्त ने रास्ता नही देखा ,लेकिन किसी मुकाम पे ठहरा नही देखा ,मैं एक ऐसा हूँ आईना मैं हूँ दोस्तों जिसने ,मुद्दत से किसी शख्स का चेहरा नही देखा,होती है, प्यास क्या ये उससे पूछते हो क्यों ,जिस नावं ने सुखा हुआ दरिया नही देखा ,ख़्वाबों को बचाने के लिए टूट खुद गया ,पर उम्र भर टुटा हुआ सपना नह

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ना मैं भूलूंगा ना तुमको भूलने दूंगा

25 दिसम्बर 2015
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ना मैं भूलूंगा ना तुमको भूलने दूंगा,ये  हृदय के घाव यूँ भरने नहीं दूंगा,फिक्र अब अंजाम की तुम कीजिये,  जां हथेली पर मगर मरने नहीं दूंगा। इक शब्द काफी है तेरी औकात में, ये जुबां की आबरू गरिमा नहीं दूंगा। तुमसे बेहतर तो कई गद्दार अच्छे,आखिरी गलती है,दोहराने नहीं दूंगा। दवा के नाम पे तुम भी पिलाते ज़हर,

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फिर कोई ताज़ा लहर आती है तब

29 अक्टूबर 2015
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ज़िन्दगी थक कर ठहर जाती है जब ,फिर कोई ताज़ा  लहर  आती  है तब।जब कोई आहिस्ता दिलों  से रूह तक,छूकर अगर गुजरे दुआ,कहलाती है रब।पहले  सहर  फिर  गुनगुनी  दोपहर में ,याद से तेरी हर शै महक जाती है  तब ।शोर में ,तन्हाई  में ,दर्द की  गहराई  में,आंख खोलूं बस तू नज़र आती ही अब।वक्त था न कि ज़मीं जो नाप लेंगे दो

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मैं तेरे एहसास को जीता रहा

29 दिसम्बर 2015
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मैं तेरे एहसास को जीता रहा,आग,आंसू,थे धुआं पीता रहा। दर्द में तो था मगर ना सका,खुश रहे तू सोचता,सहता रहा। यार लहरों के मुसाफिर थे कभी, कुछ तो था साहिल वो बैठा रहा। मेरी जानिब तो उंगलियाँ उठ गईं,क्यों मेरा मुझपे कोई हँसता रहा। हो गया गायब अचानक बात से,  जिसका हर शै-मात में चर्चा रहा। आखिर भरोसा था तु

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तुम क्यों नहीं बताते मेरी खता हुज़ूर,

27 दिसम्बर 2015
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तुम क्यों नहीं बताते मेरी खता हुज़ूर,दिल मानता नहीं है ,दोनों हैं बेकुसूर,बिखरे  पड़े   हैं देखो  पुर्जे शरारतों के,  जीने  की आरज़ू में,मरने का है गुरुर। कैसे  बुलाऊँगा,ना घर,कोई ठिकाना, घर बन सका तो यारों दूंगा पता जरूर। क्यों आज फिर जुबां पे तेरा ही नाम है,जाकर कहाँ छुपा,है नज़रों से बहुत दूर। तू एक

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तेरे और मेरे बीच की ये दूरियां

30 अक्टूबर 2015
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हैं तेरे और मेरे बीच  की  ये  दूरियां,बनेगी पुल कभी तो हमारे  दरमियाँ ।कभी तो दो घडी ,खुद से  मिलो  ना,समझ पाओगे तुम, तुम्हारी  खूबियाँ ।चमकते, हो गए मशहूर  मोती  दोस्तों,किसी गहराई गुम हो गई  हैं  सीपियाँ ।वक्त से आगे निकल आया  मुसाफिर,रहेंगी याद कब कितनी मेरी कुर्बानीयाँ ।तरोशोगे कभी  बुत  आइनों  

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मेरी चाहतों का धरम पूछते हैं

1 जनवरी 2016
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मेरी चाहतों का धरम पूछते हैं ,बताते नहीं हैं कि कितना मेरे हैं । बड़ी कश्मकश से गुजरते है लम्हें ,निगाहों पर अनचाहे परदे पड़े  हैं । लड़ेंगे रात-दिन अपने खिलाफ, वो सकूँ के चार पल मँहगे पड़े है। अलग अंदाज़ था लेकिन क़यामत, ज़ख़म  उम्मीद  को गहरे मिले हैं। पहन कर आ गए शाही लिबास ,गरीबों के तन-बदन नंगे  पड़े है

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''चांदनी सा निखर जाऊँगा मैं''

8 अक्टूबर 2015
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''चांदनी सा निखर जाऊँगा मैं''चांदनी सा , निखर जाऊँगा मैं ,सीधा दिल में, उतर जाऊँगा मैं|तुम जो छू लो ,जो छूलो हमें तुम,बनके खुशबू ,बिखर जाऊँगा मैं| आप सावन हैं,मैं बरखा की बूँदें ,हर कलि पर , बरस जाऊँगा मैं ।आईना तुम मेरी,  ज़िन्दगी का ,बन गए तो ,संवर  जाऊँगा मैं ।अजनबी राह पर  ,मुड गए हम ,सोच लो तुम

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रह गया आधा-अधूरा आदमीं

3 जनवरी 2016
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रह गया आधा-अधूरा आदमीं,दर्द दिल में है, आँखों में नमीं। बाँट लो आकर मेरी तन्हाइयां,आती-जाती सांस मेरी ज़िंदगी। खो गया सारा शकूने दिल कहीं, हम अंधेरों में, भटकती रौशनी ।चल दिए मुंह मोड़के मेरे अज़ीज। कौन खालीपन भरेगा फिर कमी। शक्ल मेरी देख,आईना घबरा गया,  हो  गया आखिर भयानक आदमीं। ये दर्द का रिश्ता हमें

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मेरी उलझन को भी सुलझाता कोई

3 नवम्बर 2015
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मेरी   उलझन    को भी  सुलझाता   कोई,राह   भटका   हूँ   कि ,मिल  जाता   कोई ।रोक  देते  मुश्किलें,वो  मोड़  देते  आंधियां,फिर   हौंसलों   को  राह  दिखलाता  कोई। हैं  अँधेरे ,हो रही   कम ,भोर की  संभावना ,फिर रखे सूरज  हथेली पे चला आता  कोई।गर्दिशों को क्या हवन,कर पाएंगी ये वेदीयां,आहुति के वास्ते क्या

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इंसानियत,इन्साफ सब बेकार है

7 जनवरी 2016
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इंसानियत,इन्साफ सब बेकार है,मैं विरोधी दल हूँ तू सरकार है। आप-हम दोनों गुनाहों में शरीक,गढ़े मुर्दे उखाड़ेंगे मेरा अधिकार है। यूँ तो अक्षर हूँ तराशा जाऊँगा,सही से अर्थ में रखना तेरा आभार है। बहुत छोटा सा है मेरा बजूद दोस्तों,जहाँ तक साथ है तेरा-मेरा संसार है। शिकायत हो अगर तो मुआफ करदोना,तुम्हारा दंड

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"है गजब रहनुमाँ कारवां ढूंढता है"

25 सितम्बर 2015
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गुमशुदा मंजिलों,का निशां ढूंढता है,है गजब रहनुमाँ ,कारवां ढूंढता है ।थरथरा के ,चिरागों की लौ बुझ गई ,फिर अंधेरों में कैसा ,धुआं ढूंढता है|मुश्किलों में निखरती है, जो ज़िन्दगी ,वक़्त भी उस खुदी का,बयाँ ढूंढता है|आदमी है मगर ,वो इवादत नुमाँ है ,तो बता और क्या ,मेहरबां ढूंढता है । जो हुआ ही नहीं था,दिल

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अब आपकी मर्जी भुला देना

7 जनवरी 2016
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अब आपकी मर्जी भुला देना,जो भी जी चाहे सजा देना। कल बिठाया था फलक आपने,  फिर आज नज़रों से गिरा देना। मेरी जानिब तो उठाईं उँगलियाँ,तुम खुद से भी नज़रें मिला लेना। दर्द बांटा था मेरा अच्छा लगा,यूँ हँसते-हँसते ,मत रुला देंना । अब  दवा,कोई दुआ काफ़ी नहीं,तुम हमको सीने से लगा लेंना। दूर तक संग-संग चलेगी रोशन

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बना लो खास ,पल थोड़े बहुत हैं

5 नवम्बर 2015
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ख़ुशी  की  राह  में,  रोड़े   बहुत  हैं ,बना लो खास ,पल थोड़े  बहुत   हैं।अमा  मुश्किल  का हल  मौजूद    है ,भरेंगे देर में ,ज़ख्म  गहरे    बहुत  है।मेरा है  दर्द  से रिश्ता  पुराना दोस्तों,मधुर  मुस्कान  पर ,पहरे   बहुत  हैं।हैं लाखों  घर, शहर,ये  बस्तियां  भी,अगरचे भीड़ में भी  अकेले  बहुत हैं।कोई तो है

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दर्द जब दिल से मिला अच्छा लगा

9 जनवरी 2016
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दर्द जब दिल से मिला अच्छा लगा, धीरे-धीरे चल पड़ा क्या सिलसिला। वक़्त के पन्ने  पलट कर देख लेना, क्या खबर मिल जाए कोई  रास्ता।  ओढ़ कर  खामोशियाँ  बैठे  हैं  क्यों आने  वाला  है कहीं   तो  ज़लज़ला । प्यार से  आवाज़  दो  इक  बार  तुम। ठहर   जाएगा    बिखरता    हौंसला। आंसुओं  से  तर-बतर चेहरा  छुपाये,  रात  

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''मगर मंज़िल नहीं है''

8 अक्टूबर 2015
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''मगर मंज़िल नहीं है''मेरे इखित्यार में तो है ,मगर हांसिल नहीं है ,सफर भी,रास्ता भी है ,मगर मंजिल नहीं है|महज़ दस्तूर है ,मिलना-मिलाना ,दोस्ताना ,बदलते दौर में ,कोई यकीं काबिल नहीं है ।वो इक दिन लौट आएंगे ,मेरी उम्मीद उनसे ,फ़कत गुमराह है,वो आदमी पागल नहीं है ।तू रूठेगा अगर,हम भी मनाना सीख लेंगे,ज़मीं ह

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चलो ये भी तजुर्बा आप कर लो

11 जनवरी 2016
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चलो ये भी तजुर्बा  आप  कर  लो,नज़र भी आईना भी साफ कर लो। अँधेरा चीर कर निकलेगा सूरज,गुजरती रात है विश्वास कर लो।  रास्ता हूँ हमसफर जिद छोड़ दो,अकेला हूँ हमें भी साथ कर लो। आंधी उड़ा ले जायेगी सारे मकान , दो अपनापन इसे आबाद कर लो।  हमेशा कुछ नहीं रहता मुक़म्मल,नया अपना पुराना याद कर लो । सुलगती आग है आब-

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पर रिश्तों में प्यार जरुरी होता हैं

5 नवम्बर 2015
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रिश्तों का विस्तार जरुरी  होता  है,पर रिश्तों में प्यार  जरुरी  होता  हैं।धन,दौलत ना काम हमेशा  आएगी,अपनापन भी यार जरूरी  होता  है।सुन्दर सपनो की अपनी मर्यादा है ,सही दिशा ,आधार जरूरी होता है ।कई बार तो सच  कहने के रास्ते  में ,परिचय का आकर जरुरी  होता  है ।इच्छाओं अभिलाषाओं का अंत नहीं,सुन्दर सा  स

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बता दो देश किसका है ,कोई तो सामने आकर

12 जनवरी 2016
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बता दो देश किसका है ,कोई तो सामने आकर, मैं हिन्दू या मुसलमां हूँ जरा समझाओगेआखिर। मुझे भी बरगलाने की बहुत कोशिश हुई है दोस्तों, टिका हूँ फिर भी ईमां पर कहा सबने मुझे काफ़िर। ना जाने क्या हुआ है शहर की आब-ओ-हवा को, चलो हम-तुम रहेंगे आज से शमशान में जाकर। मिलेंगे दिल खिलेंगे गुल ये भूल जाओ अब नहीं,कलेज

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यादों के धुंधले दर्पण से

19 सितम्बर 2015
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जूझ रहा 'तन्हा'जीवन से ,यादों के धुंधले दर्पण से ।घना अँधेरा नहीं पिघलता ,बुझते सूरज की कतरन से ।मौसम सिसक रहा है 'सूखा' रूठ गई बरखा सावन से ।जब भी दुखते,पांव के छाले,लगते हैं,प्रिय के चुम्बन से ।टूट रहा मन आंसू-आंसू ,हृदय बह रहा है नैनन से|रुक-रुक कर,साँसों का आना ,लगता है ,अंतिम दर्शन से | आखिर

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हसरतों का बोझ इतना बढ़ गया

14 जनवरी 2016
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हसरतों    का  बोझ  इतना   बढ़   गया,  थर-थराया    तन-बदन   फिर गिर गया। चंद     आँसू     ही    बचे   हैं  आँखों   में, दर्द    का   तूफ़ान     शायद  थम   गया। किसने    चिंगारी   हवा   में   घोल   दी, सूखे   पत्तों   सा   नशेमन   जल   गया। प्यार    से    अपना    बनाया   आपको,   कैसे  एहसासों  का  दामन

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अच्छा लगेगा ख़ुशी को बाँटता चल आदमी अच्छा लगेगा

6 नवम्बर 2015
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,ख़ुशी को बाँटता चल आदमी अच्छा  लगेगा, ग़मों की भीड़ में सच्चा कोई अपना  लगेगा।जिसे भी चाहोगे  दिल से तुम्हें मिल  जाएगा,नज़रीया साफ़ रखना शर्तीयाँ  मौक़ा  मिलेगा।मेरी उम्मीद तू फिर से  आदमी बन   जाएगा,कोई तो  हमसफ़र  होगा ,कोई  रस्ता   बनेगा।बयाँ करदो मेरी खामोशियों को लफ़्ज दे दो तुम,मुझे मालूम है  फिर को

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दर्द अगर गहराई से गहरा होगा

29 जनवरी 2016
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दर्द अगर गहराई से गहरा होगा,जरा संभलना यारों कुछ खतरा होगा। अनहोनी का दंश सहा हंसकर मैंने, क्या मेरी साँसों पर भी पहरा होगा। उम्मीदों से कम था ज्यादा मिला नहीं,मुझे पता है माल कहाँ ठहरा होगा। हमें नहीं स्वीकार दिखावा अपनापन,कुछ भी मोल चुका दो ना मेरा होगा। ख़ामोशी को शोर घोल कर पी लेगा,क्या जाने सच प

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मगर मैं अब भी जिंदा हूँ

9 अक्टूबर 2015
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मगर मैं अब भी जिंदा हूँ जिसे तुम आग  कहते  हो , उसे  मैं  रोज  पीता हूँ ,क़यामत भी गई मिलकर ,मगर मैं अब भी जिंदा हूँ। बदल  डालेंगे  ये    हालात ,  अब  पक्का इरादा है,संभलना वक्त को होगा ,मैं परिवर्तन का  झोंखा  हूँ।खुला छोडो ना ज़ख्मों  को ,न ये  नासूर  बन  जाएँ,पिला दो घूंट लोहा लो मैं , अब  फौलाद  ब

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है बुलंदी काम की तो ठीक है

31 जनवरी 2016
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है  बुलंदी   काम  की   तो   ठीक है,भूल  जाओ  हार    है की  जीत है। कोई  तो  समझो  हमारी मुश्किलें,साज़    रूठे     टूटता    संगीत    है। ज़िन्दगी का है अलग अंदाज़ देखो,दोस्त फिर दुश्मन पुराना मीत है। अब बजह जीने की हमको चाहिए,बेबजह  उलझन  हमारी  रीति   है। एक दो पल साथ चल कर मुड़ गए,रास्ते   ना  हमसफ़र  

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कहाँ गया वो प्यार ,तुम्हारी हमदर्दी

7 नवम्बर 2015
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कहाँ गया वो  प्यार ,तुम्हारी  हमदर्दी,उतर गया है ज्वार,लहर की मन-मर्जी ।आया  था  तूफ़ान   डुबाने   कश्ती  को, बन  बैठा  पतवार ,समय की   बेरहमीं ।कलियाँ चुन-चुन हार पिरोये  धागों  में,गुलशन का आभार महकती  सरगरमी।कितना और  बदलते  अपनी   तकदीरें ,बनी  रही  दीवार , दिल्लगी  हदकरदी ।जब भी गुजरोगे  दिल  के

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और तुम कितना तराशोगे मुझे

1 फरवरी 2016
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और तुम कितना तराशोगे मुझे,प्यार से छूलो तो पा लोगे  हमें। कबसे सजदे में खड़ा  हूँ  देखिये,  तुम चाहतो का ये सिला दोगे हमें।  आज तक खाली रहा दामन मेरा, तुम दवा  या दर्द  क्या दोगे हमे। हूँ वहीं ठहरा हुआ उस मोड़ पर मैं,आरज़ू!  मुड़कर  के देखोगे  मुझे। पथ्थरों को रब समझ  कर पूजते,     जब सामने आया सजा दोगे

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"एक तुम ही नहीं मेहरबाँ और भी हैं"

28 सितम्बर 2015
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एक तुम ही नहीं ,मेहरबाँ और भी हैं ,हमसफ़र और भी , कारवां और भी हैं ई मंज़िलों तुमको इतना गुमाँ किसलिए ,इस जहाँ में हमारे ,मकाँ और भी हैं ​I आरजुएं जवाँ,जोशे-दिल भी रवां ,जिंदगी में अभी ,इम्तहाँ और भी हैं Iहम परिंदे कहीं भी , ठहरते नहीं,नापने को अभी ,आसमाँ और भी हैं ​i वक़्त दिखता नहीं ,पर दिखता तो है

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छाया घना कुहरा अँधेरा रात काली

2 फरवरी 2016
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छाया घना कुहरा अँधेरा रात काली, तुम जागते रहना अभी है बात बाँकी।  मेरी आँखों में अब तक प्यार देखा है, छेड़िये मत है अभी तो  आग  काफी। रंग,खुशबू,फूल,कलियाँ,तितलियाँ,मौसम।  हमेशा एक से रहते नहीं हालात साथी।  नज़र के सामने आँखों में भरलो आस्मां,कुछ कह नहीं सकता दिले जज्बात का भी। अभी तो उँगलियों पर गिन र

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आग जलती है अगर धुआं भी लाज़मीं है,

8 नवम्बर 2015
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आग जलती है अगर धुआं भी लाज़मीं  है,रौशनी की लहर है   हवा   में ताज़गी   है।प्रगति    पथ    पर   निरंतर   अग्रसर   है,मग्न, संलग्न   है  वो  जुझारू आदमीं  है।हार, थक  कर,टूट कर  यूँ  मत  बिखरना,अभी  उम्मींद  में  कायम  काफी  नमीं  है।तुम्हारी   सोच  में  ही  फ़लसफ़े  मौजूद  है,निखरती जारही  देखो  हमारी  

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जाग जा हो जाएगा जलवानुमां

3 फरवरी 2016
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जाग जा हो जाएगा जलवानुमां,तेरे  सजदे  में झुकेगा आसमाँ। जिस्म की हर शै ताराशी जाएगी,ले चलो आगे तुम्हारा कारवाँ। अब समझ में आ गई सारी कहानी,और मत लो तुम हमारा इंम्तहां। सब्र अब हद से गुजरने जा रहा,कल शौक़ से सबको सुनाना दास्ताँ। पथ्थरों में बुत बनो भगवान का,दोहरा  हो  जायेगा  सारा  जहाँ। उंगलिया मेरी

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''भेदभाव बढ़ चला है आपसी''

12 अक्टूबर 2015
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भेदभाव बढ़ चला है आपसी ,दोस्तना कर रहा है ख़ुदकुशी ।है प्रकृति घायल ह्रदय में वेदना , केश खोले रो रही है रूपसी ।गुनगुनाहट गुन्जनों की कर्कशी ,चांदनी तपने लगी है धूप सी ।टूटते रिश्ते ,सिमटती आस्थाएं ,देखना पल-पल बदलता आदमीं ।ईद-होली का मिलन तो खा गया,बदचलन इंसानियत है , बेबसी ।कौन किसको रो रहा है भूल ज

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लो मेरी ख्वाहिशों का चाँद बुझ गया

4 फरवरी 2016
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लो मेरी ख्वाहिशों का चाँद बुझ गया,जब आसमां ज़मीं पे आके झुक गया।जो कारवाँ गुजर रहा था झूमता हुआ,जाने क्या हुई बात रुख बदल  गया। वो शोर मचाते रहे कुछ भी नहीं किया,कीमती था वक़्त  यूँ ही फिसल गया। वो सद चाक़ कर गया गिरेबां को तार-तार,जलते चिराग की भी रोशनी निगल गया। बनता रहा हूँ बे-वजह लोगों का खिलौना,गर

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हमारी मुहब्बत जबां हो गई है

8 नवम्बर 2015
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मुहब्बत हमारी    जबां   हो  गई  है,छिटक कर ज़मीं आसमाँ हो गई  है ।अजी  गर्दिशों  ने  तराशा  है  इतना,लो तूफा में  कश्ती  रवां  हो  गई  है ।उम्मीदें  भी दम तोडती आ भी जाओ,कसम  प्यार  की  इम्तहाँ  हो  गई  है ।गुम गईं मंजिलें,रास्ते कारवां,हमसफर,कल की नजदीकियां दूरियां हो गई  हैं ।तुम तो ऐसे ना थे मेहरब

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तीर तरकश में रखो बरछी म्यान में

6 फरवरी 2016
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तीर तरकश में रखो बरछी म्यान में,बारूद सा उन्वान है  मेरे  बयान  में। जब-जब तराशा जाएगा हीरा बनेगा वो,जो मिला था काँच का टुकड़ा खदान में। होश में आ जाओ करो इल्तजा क़ुबूल ,वर्ना! हैं और तीर भी हमारी कमान में। मैं दिल से,ज़मीर से अभी तक मरा नहीं,डटकर खड़ा रहा हूँ आंधी-ओ-तूफान में। भटकों को कैसे आप  रास्ता

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जाने ना कितने!

17 सितम्बर 2015
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संकल्प के टुकड़े हुए ,जाने ना कितने ,प्रेम में उजड़े चमन चमा ,जाने ना कितने|नीर ने अधरों ने जब भी ,गुफ्तगू की ,प्यास के टुकड़े हुए ,जाने ना कितने|पीर तो चट्टान सी ,स्तब्ध है 'चुप',हैं हृदय में घाव व्याकुल,जाने ना कितने|पी गई गहरे उजाले , तिमिर की त्रासदी ,और बेबस थे 'दिए',जाने ना कितने|वो दुखित मन अश

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कौन कहता है की सवेरा है

8 फरवरी 2016
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कौन कहता है कि सवेरा है,मेरे चारों तरफ अँधेरा है। रौशनी लेकर करूँगा क्या,ज़िन्दगी में भी नूर तेरा है। टूट के यूँ बिखर नहीं सकता,मुझमें उम्मीद का बसेरा है। अपनी रग-रग तराश ली मैंने,वो  चमकता  गुरुर  मेरा  है। आज मेरी तलाश ख़त्म हुई,मंज़िले सामने पथ सुनहरा है। सिर्फ  मैं  हूँ  और सब मेरा है 'अनुराग' बर्ब

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सच से जितना दूर रहोगे,

9 नवम्बर 2015
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सच से जितना दूर  रहोगे,व्याकुल तुम भरपूर रहोगे ।समय गंवाने वालों सोचो,कितने दिन मशहूर रहोगे ।रिश्तों में अपनापन रखना,तुम आँखों के  नूर  रहोगे ।पीर   छुपाये   आंसू  पीते,आदत   से  मजबूर  रहोगे।भूख  गरीबी   खा  जायेगी,कुछ दिन ही मगरूर  रहोगे।आज ह्रदय की बात बतादो,कब   तक  यूँ  दस्तूर  रहोगे।सच'अनुराग'

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हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !

12 फरवरी 2016
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वीणा की झंकार दे,मन के तार संवार दे !हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !!मीरा,सूर,कबीरा ने भी माँ चरणों में सुमन चढ़ाये,तुलसी ने मानस में जी भर तेरे ही इच्छित गुण गाये,मेरी कल्पना की उड़ान बन,रचना को श्रंगार दे ।वीणा की झंकार दे,मन के तार संवार दे !हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !!आ

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''तन्हाइयों से दूर''

13 अक्टूबर 2015
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समय तल्ख़ है ,इसकी परछाइयों से दूर,हमें ले चलो ,गम से ,तनहाइयों  से  दूर ।भरे  रंग आँचल  में  ,नई   रौशनी   हम ,हवा मोड़ दे  रुख , पुरवाइयों  की  ओर ।संवरने लगे  सपने ,जो  तुम मिल गए हो,खिंचे  जा  रहे दिल, गहराइयों  की  ओर ।उडा  ले  चले  लो  पंख , नीले गगन  में ,महकता बदन थामें ,अंगडाइयों की डोर ।अगर

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है तेरे-मेरे एहसासों की धूप गुनगुनी

13 फरवरी 2016
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है तेरे-मेरे एहसासों की धूप गुनगुनी,संदल बदन शबनमीं साया रूप चांदनी। फिर बसंत सा निखर उठा द्रित गात तुम्हारा,हो तरूमाला अभिसार लता तुम  पुष्प-पल्लवी। निर्झरी नीरजा अल्हड़पन  इतराती चंचलता,हो बरखा ऋतु की प्रथम बूँद सी पुण्य पावनी। मृगनयनी कटि धनुष अधर रस मधुशाला हो,श्वेत दन्त घनश्याम केश मधुर मुस्कान

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अदब से झुक गईं नज़रें,इनायत हो गई है

11 नवम्बर 2015
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अदब  से झुक गईं नज़रें,इनायत हो गई  है,शर्तीयाँ आपको खुद से मुहब्बत हो गई है |करम फ़रमा दिया तुमने,शुक्रिया,मेहरबानी,हमें  तो इस  ज़माने से शिकायत हो गई  है |कि फिर लौट आये हैं सपने पुराने दिन हमारे,सितमगर हो गए ज़िंदा ,क़यामत हो  गई  है |तड़फती रूह,मन जलता,बदन की आबरू भी,वो परवाने,शमां , सबको नज़ाक़त हो गई

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जब वक़्त ने खिलाफ फैसला दिया यारों,

13 फरवरी 2016
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जब वक़्त ने खिलाफ फैसला दिया यारों,दौर-ए-मुश्किल में सबने भुला दिया यारों। हमने   क़दम   रफ्तार  बरक़रार    रख्खी,ठोकरों   हादसों   ने   हौंसला  दिया  यारों। आग   ने  जब  जलाया  हुनर निखार लिया, दोस्त-दुश्मन से दिल खोल कर मिला यारों। हम तो पथ्थर ही थे तुमने ही तराशा होगा,आम  से  खास  हमें  तुमने   बनाय

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आरजू कद से,बड़ी हो जाएगी

1 अक्टूबर 2015
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आरजू कद से,बड़ी हो जाएगी ,क्या पता था,ख़ुशी खो जायेगी ।आइना पत्थर, से जब टकराएगा,अक्श की शै,सौ गुनी हो जायेगी ।जल रहे है पांव ,थोड़ा सब्र करले ,दरख्तों में भी,छांव घनी हो जायेगी ।बर्फ सी जिद को पिघलना चाहिए ,धूप जब भी, गुनगुनी हो जायेगी ।पास थे,उनकी कद्र कुछ भी ना थी,फासले में कीमते ,सौगुनी हो जायेंगी

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हम तो लिखते हैं इस दिल के एहसासों को

16 फरवरी 2016
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हम तो  लिखते हैं इस दिल के एहसासों को , लेकिन तुम पढ़ते हो सिर्फ लिखे अल्फ़ाजो को। मोती  मिलते  हैं  कब  छिछले  पानी में  यूँ , उतरो   गहराई  में  समझोगे  जज्बातों  को। सुनो  सर्वथा   स्वार्थ   हृदय   खोखला  करेंगे,अर्थहीन  परिचर्चा छोड़ बंद  करो संवादों को। लो आखिर प्यार पराया निकला  छोड़ गया,है   दर्द

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तुम अगर छू लो बड़ा हो जाऊंगा

12 नवम्बर 2015
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तुम अगर छू लो बड़ा हो जाऊंगा,शाख पर सूखा ,हरा हो जाऊंगा । आंधियां मगरूर हैं मैं  जानता हूँ,देखना  तनके  खड़ा हो  जाऊँगा।शर्त अब कोई  नहीं  मंजूर  होगी,वक्त की आबो-हवा हो जाऊंगा।आग  पीता  हूँ  मगर  दावा  है ये ,और भी खालिश खरा हो जाऊँगा।नीव  रखता चल सही,ओ आदमीं,आज बच्चा,कल जवां हो जाऊँगा।हो गर तुझे महस

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आग से शीशे पिघलते हैं कभी पथ्थर नहीं

18 फरवरी 2016
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आग से शीशे पिघलते हैं कभी पथ्थर नहीं,शेर तो बस शेर है उसे गीदड़ों का डर  नहीं,बेखौफ  फौलादी  जवानी हौंसले  बारूद  हैं,इनसे वतन आवाद है तलवार है खंज़र नहीं। ये और दिन ज्यादा रह ना सकेंगी म्यान में, जीत  ना  पाएं जिसे ऐसा  कोई  मंज़र  नहीं। तुम वक़्त की आब-ओ-हवा रूबरू हो जाइए,  मेहरबाँ मिल जाएंगे दिल का क

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'शब्द में ढलकर ,स्याही बोलती है'

14 अक्टूबर 2015
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जुबां जब हुक्मरानों की ,तबाही घोलती है,बला के शब्द में ढलकर ,स्याही बोलती है ।बदल जाते हैं  पल में ज़िन्दगी के माइने ही,बुझी आँखों से जब,सच्ची गवाही बोलती है ।नहीं,अच्छा नहीं है ,बरगलाना आदमी को ,चटकती पाँव की,दुखती बिबाई बोलती है ।लचकती शाख से,बचके गुजरती आंधीया ,मशवरा भी यही है ,ये ही सच्चाई बोलती

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यूँ मत दिखाओ आँख हम बदले नहीं हैं

18 फरवरी 2016
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यूँ मत दिखाओ आँख हम बदले नहीं हैं, हम आज भी सरहिंद  हैं पुतले  नहीं  हैं। फिर हो गई है तुमको खुजली काफिरों,   आकर क़तर  देंगे जो  पर  क़तरे नहीं हैं।  डूब कर मर जाइए दो बूंद पानी में कही,मन  से  बदसूरत  हो  तन  उजले   नहीं। खोखली , बेजां  दलीलें  पेश  करते  आप,पुंगी बजायेंगे ये आदमी पगले नहीं  हैं। कै

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मीलों दूर निकल जाते हैं,

14 नवम्बर 2015
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मीलों   दूर  निकल  जाते  हैं,जब भी ख्वाब मचल जाते हैं |रिश्तों की बुनियाद दरकती ,हम  खुद  को  तन्हा  पाते हैं |बाहर निकल संभल  जाएगा ,जो  चलते   मंजिल   पाते  हैं |पलकों से मत इन्हें दबाना ,बहने दो गम धुल  जाते  हैं | अपने  साय से डर  लगता है,जब अपने  रंग बदल जाते  हैं |मिटटी के घर महल दिखेंगे ,जब ब

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आज बयां होंगे पिछले अफ़साने भी

21 फरवरी 2016
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आज  बयां  होंगे पिछले अफ़साने भी,जायज-औ-नाजायज सभी बहाने भी।कल देखा था तुमको ही ईमान बेचते,मजबूरी हो शायद करज  चुकाने  की। मायूसी    के  अंधकार  से  बाहर  आ,आ जायेंगे  तुमको  भाव  बताने  भी। रखना  अपने  पंख  खोलकर  उड़ना है,  जांबाज परिंदों   में  होंगे  दीवाने   भी।  तुमने  कितने  राज़  छुपा  के  रख्ख

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जोश भी है जूनून भी

19 सितम्बर 2015
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जोश भी है जूनून भी,शोलों में ढलने केलिए ,मुंतज़िर है वक़्त , कुछ कर गुजरने के लिए ।ना सही धूप ,चिरागों में रोशनी काफी,अंधेरों को उजालों में,बदलने के लिए । रोक के रास्ता मेरा,खड़ा है वक्त कबसे , मैं भी तैयार हूँ ,हालात बदलने के लिए ।तेरी ज़िद ने उजाड़ दी हैं ,बस्तियां दिल की ,मुझको मंजूर थी हर शर्त संभलने

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हम हौंसला करके मुक़द्दर आज़माएं

23 फरवरी 2016
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हम हौंसला करके मुक़द्दर आज़माएं हम हौंसला करके मुक़द्दर आज़माएं ,तपते  सूरज  से  चलो  नज़रें  मिलाएं । आपकी  नज़र-ए-इनायत     मेहरबानी,रास्ता  तकते   तेरा   पलकें   बिछाए । तुम  अहम्  के  परदे  उठा  कर देखना,ज़िन्दगी   भर  काम  आती  हैं  दुआएं।फूल   की  खुशबू   गंवा  दी   बेरुखी में अब जम गईं हैं बरफ बनकर 

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फितरत रोज बदलते लोग

16 नवम्बर 2015
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फितरत रोज बदलते लोग,आदत  या   केवल  संयोग ।सीधी -सच्ची बात हमारी,देखे  बहुत  सुलगते  लोग ।मिटटी और महक उठती है,मेहनत  करते चलते  लोग ।धूप  सिकुड़ती  देखी  हमने,छांव  चुराते  मिलते   लोग ।भूख  सो गई  आंसू  पीकर,छप्पन   भोग  गटकते लोग ।हम कब तक खामोश रहेंगे,दिल  के  दर्द  कुचलते  लोग ।कंधों   पर   आकाश

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हैं पथ्थर के लफ्ज़ मिटा ना पाओगे

25 फरवरी 2016
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ये उठती  आवाज  दबा  ना पायोगे,है  बुलंद  इकबाल झुका ना पाओगे। मैं धुली हुई दीवारों पर लिख जाऊंगा,हैं पथ्थर के लफ्ज़ मिटा ना पाओगे। धधक   रहे   हैं   हर  सीने  में  अंगारे,इंक़लाब  की  आग  बुझा ना पाओगे। चाहे जितना जोर लगालो अबकी बार,फिर से झूठे ख्वाब  दिखा ना पाओगे। टूटी  गर   इस  बार   हमारी  उम्मींद

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''ज़िन्दगी ने दिया फिर दगा दोस्तों''

16 अक्टूबर 2015
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ज़िन्दगी ने दिया,फिर दगा दोस्तों,कोई अपना रहा ना , सगा दोस्तों ।खो गए रास्ते ,हैं मज़िलें गुमशुदा ,पाँव फिर  हो गए ,बेवफा दोस्तों ।यूँ तराशा,चटख के बिखरने लगा,कच्ची मिट्टी का हूँ ,पुतला दोस्तों ।ठीक मंझधार में छोड़कर नाखुदा,साथ पतवार भी  ले  गया  दोस्तों ।अब तो हर सांस ही इम्तहाँ बन गई ,ज़हर पी कर  चली

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कब तक तेरी तस्वीर से बातें करेंगे हम

3 मार्च 2016
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कब तक तेरी तस्वीर से बातें करेंगे हम,तन्हाई की ज़ंजीर से कैसे  लड़ेंगें  हम। लानत है मेरी ज़िन्दगी जो मौत से डरूँ,जल्लाद की शमशीर से बाते करेंगे हम। हूँ बेखुदी में फिर भी तुम्हारा ख्याल है,पहलू में रहकर आपके सजदे करेंगे हम। बनके ख़याल आप मेरे साथ हो लिए,तुम आइना हो खुद को सवांरा करेंगे हम। धड़कन बना लिया

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खामोशी के साथ गुजर जाने दो शोर

17 नवम्बर 2015
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खामोशी के साथ गुजर जाने दो शोर,लेकर नई रौशनी आती होगी भोर |हो ना हो अपना ही सिक्का खोटा हो,सांप आसतीं में पलते हो घर में चोर |कतरा-कतरा पिरो लिया उम्मींदों को,कहीं टूट ना जाए नाजुक मन की डोर |खुले हुए थे केश अचानक उलझ गए,कभी-कभी जीवन में यूँ ही आते मोड़ |हो कितना भी दर्द सहन कर लेती माँ,ममता   जब   स

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ग़ज़ल

4 मार्च 2016
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"टूटकर जब भी, संभलता आदमी"

1 अक्टूबर 2015
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टूटकर जब भी, संभलता आदमी ,और भी ज्यादा ,निखरता आदमी ।मंजिलों के बाद भी, जो रास्ते हैं ,उनसे भी आगे, निकलता आदमी ।तोड़कर चट्टान,जब दरिया चला ,देख!सागर सा,पिघलता आदमी|है इरादों की बहुत, लम्बी उड़ान ,जीतकर अक्सर,गुजरता आदमी|मिल गई ,बुझते चिरागों को हवा,लो रौशनी लेकर,चहकता आदमी|बंद दरबाजों पे,दस्तक फिर हु

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तुम खोल दो दिल के झरोखे और मन

7 मार्च 2016
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तुम खोल दो दिल के झरोखे और मन,फिर हो रहा है  ज़िन्दगी का आगमन। इन चिरागों में अभी है  नूर बाँकी,करते रहेंगे  हम अंधेरों का दमन।  ये वक्त खुशबू की तरह बह जायेगा,मैं अंजुली भर-भर करूंगा आचमन। लोग अमृत के अधिकतर पक्षधर हैं,जिसने किया बिषपान उन सबका नमन। मन,वचन,तन सब प्रदूषित हो गए है,हो ज्ञान की भागीरथी

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दर्द तो होता रहा,पर मुस्कुराना आ गया,

19 नवम्बर 2015
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दर्द तो होता  रहा,पर   मुस्कुराना  आ  गया,चढ़ते सूरज से हमें, नज़रें  मिलाना  आ गया ।भूलकर  भी ना  भुला पाया  तेरे  एहसास को,सामने पल-पल  मेरे,गुज़रा  ज़माना आ गया । नीड  से  बाहर   निकल,नन्हें  परिंदे  उड  गए,उनकी खामोशी को यारों,चहचहाना आ गया ।ज़िन्दगी के बोझ से,काँधे,कमर सब झुक गए,बनके क़ाबिल बाप को,आँ

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ना मैं भूलूंगा ना तुमको भूलने दूंगा

8 मार्च 2016
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ना मैं भूलूंगा ना तुमको भूलने दूंगा,ये हृदय के घाव यूँ भरने नहीं दूंगा,फिक्र अब अंजाम की तुम कीजिये,जां हथेली पर मगर मरने नहीं दूंगा।इक शब्द काफी है तेरी औकात में,ये जुबां की आबरू गरिमा नहीं दूंगा।तुमसे बेहतर तो कई गद्दार अच्छे,आखिरी गलती है,दोहराने नहीं दूंगा।दवा के नाम पे तुम पिलाते हो ज़हर,मैं जान

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जिन दरख्तों ने कभी भी,फल दिए ना छांव दी ,

17 अक्टूबर 2015
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चोर ,डाकू,घोर क़ातिल,सब लुटेरे मिल गए ,यारों गज़ब तो देखिये,संध्या सबेरे मिल गए ।फिर से कहीं नीलाम होगी,द्रोपदी की आबरू,मुद्दतों के बाद फिर शकुनी को मौके मिल गए।

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तुमसे उम्मीदें लगाना था फिजूल

8 मार्च 2016
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तुमसे उम्मीदें लगाना था फिजूल,ज़ख्म-ए- दिल मरहम पुराना था फिजूल। दिन आंसुओं में बह गए तेरी क़सम,प्यार में वादे निभाना था फिजूल।  ज़िन्दगी हर मोड़ पर तन्हा मिलेगी,महफिले,मज़मां  लगाना था फिजूल। शाम की तबियत बहुत रंगीन थी,पर सवेरे को  जगाना था फिजूल।पुर्जे-पुर्जे हो गया दिल का शुकून,धड़कनो को सुर में लाना थ

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मुमकिन नहीं है बेबजह में सर झुकाना दोस्तों

20 नवम्बर 2015
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मुमकिन नहीं है बेबजह में सर झुकाना दोस्तों ,मैं अगर गिर जाऊं झुककर मत उठाना दोस्तों |हौसला  चट्टान सा हो ,तो भला क्या आंधियां,खुद ही बिखर जायेंगे ,तुम मत मिटाना दोस्तों |जागना  काफी   नहीं  है ,जागते   रहना   पड़ेगा ,बेहद  जरुरी  हो  गया   सबको  जगाना  दोस्तों |आदमी एहसास को कब जी सका  दो-चार  पल,अब

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उफ़!ये तन्हाइयाँ ज़िन्दगी की

10 मार्च 2016
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उफ़!ये तन्हाइयाँ ज़िन्दगी की,इम्तहां  बन गईं आदमी की। रात बंजर है दिन सूखे-सूखे,सिर्फ  चर्चा है यारों नमीं की। वक़्त पिघला हुआ आइना है,दास्ताँ कह रहा है सभी की। अपनी परछाइयों का मुक़द्दर,प्यास है इक क़्वारी नदी की । मुख़्तसर सी  मेरी इब्तदा है,उम्रें  छोटी,बड़ी दोस्ती की। ख़त्म हो जाएगा धीरे-धीरे, ये हवा और

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हिंदी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें

14 सितम्बर 2015
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अकेला हूँ हमें भी साथ कर लो

10 मार्च 2016
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चलो ये भी तजुर्बा  आप  कर  लो,नज़र भी आईना भी साफ कर लो। अँधेरा चीर कर निकलेगा सूरज,गुजरती रात है विश्वास कर लो।  रास्ता हूँ हमसफर जिद छोड़ दो,अकेला हूँ हमें भी साथ कर लो। आंधी उड़ा ले जायेगी सारे मकान , दो अपनापन इसे आबाद कर लो।  हमेशा कुछ नहीं रहता मुक़म्मल,नया अपना पुराना याद कर लो । सुलगती आग है आब-

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मिटा दो फासले तुम,अपना बना लो,

21 नवम्बर 2015
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मिटा  दो  फासले  तुम,अपना बना लो,ना  रख्खो  शर्त  फिर  भी  आजमा  लो|अधूरे  ख्वाब  हम  पूरे  करेंगे  ज़िन्दगी, मैं बेरंग पानी  हूँ  जहाँ  चाहो  मिला  लो |हवा  का  रुख  बनेगा  कल नया मौसम,जायेंगे  बदल   हालात , अंदाजा लगालो |वो   हालांकि  हमारा  हमसफर  है दोस्तों,मगर  अपना नहीं जिसे दिल से लगा लो |मिली

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मेरी आवाज़ ख़ामोशी के परदे चीर डालेगी

11 मार्च 2016
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मेरी आवाज़ ख़ामोशी के परदे चीर डालेगी,कहाँ तक बेजुबानी की हमें ज़ंजीर बांधेगी। बदलने हैं हमें तारीख में इतिहास के पन्ने,  जगाओ हौंसलों से ही तेरी तक़दीर जागेगी।  मचलता  जोश का तूफान सीने में  संभालो  लहू हर देशद्रोही का मेरी  शमशीर मांगेगी। ज़मीने दलदली होंगी पिघल जाएँगी चट्टानें,हवाएँ आग पीकर के तरल अंग

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''नज़र माँ ने सदके उतार दी''

18 अक्टूबर 2015
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लागी नज़र तो माँ ने,सदके उतार दी ।पिता ने राह दी,हर मुश्किल बुहार दी । ज़िन्दगी बिखर रही थी ,रास्तों पे  हम ,कमबख्त दोस्तों ने ,आकर संवार   दी।वो देखते रहे  उन्हें,हसरत  भरी  नज़र,जिसने सरे बाज़ार में,पगड़ी उछाल दी।इक उम्र तोड़ करके,आशियाँ बना लिया,बच्चों ने सौंप दी हमें , चादर उधार  की।रिश्ते सुलग रहे है

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है यार शीशे मुक़द्दर क्या करोगे तुम

14 मार्च 2016
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है यार शीशे का मुक़द्दर क्या करोगे तुम,हाथ में सबके है पत्थर क्या करोगे तुम। हाँ वो कभी  फुर्सत में मिलते  ही  नहीं हैं,उनको सपनो में बुलाकर क्या करोगे तुम। आँसुंओं को फिर सिरहाने रख लिए हमने, अब आँख से नीदें चुराकर क्या करोगे तुम।  उम्र भर चलती रहेंगी आँधियाँ काफ़िर ,फिर दोवारा घर बनाकर क्या करोगे तु

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अपने ही साए थे हम पीछा किये

22 नवम्बर 2015
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अपने ही साए थे हम पीछा किये,आस्तीं में  सांप  जब  पैदा  किये |बहता सर से है पसीना पांव  तक ,पीके लहू अपना हलक सींचा किये |काश फिर विश्वास मेरा जीत जाये, केवल  दगाबाजों से हम चर्चा किये |वक्त-ए-शाख से खास लम्हें तोड के,साथ  लेकर चल ,तुम्हें  तन्हा  किये |टूटते बिखरे खिलौने बे-जुवां सपने,उजले-उजले तन

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जीत तुम्हीं से,हार तुम्हीं से

16 मार्च 2016
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जीत तुम्हीं से,हार तुम्हीं से,जीवन की रफ़्तार तुम्हीं से। कितना भी समझालूं दिल को,करता है ये प्यार तुम्हीं से। प्रेम पथिक हूँ मंज़िल तुम हो,इस पथ का विस्तार तुम्हीं से। इन नयनो की ज्योति में भी,शुभ-मंगल आकार तुम्हीं से। स्वांस-हृदय की सारी गणना,सबका ही आधार तुम्हीं  से।  ज्ञात हुआ अज्ञात सत्य का,अभिनन

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''मेरे और तेरे ,बीच का संवाद था''

4 अक्टूबर 2015
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चलेंगे खोटे सिक्के बार - बार

22 नवम्बर 2015
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सियासत में मुनाफ़ा बे-शुमार,सियासी  हैं  गधे , घोड़े , गवार|हकीकत आप भी तो आज़मालो,चलेंगे  खोटे  सिक्के  बार - बार |मत  कहो  है ये  मतदाता  बेचारा,हरामी,चोर को जिताते बार-बार |बालात्कारी,कुकर्मी,घोर कातिल,सही   नेता  की  है  पहचान  यार |गिरावट का विफल सिद्दांत  हैं,बनावट की ये  संभावना  अपार । वतन  की

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ज़हर पी जाऊंगा !

13 सितम्बर 2015
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सबके हिस्से का,जहर पी जाऊंगा ,चाहे जो हालत हो, जी    जाऊँगा ।  मुद्दतों करवट में,हम  जिनके  रहे , याद उनको भी,बहुत दिन आऊंगा ।धीरे-धीरे क़त्ल ,कर  देना  मुझे ,यूँ ना दिल को तोडना,मर जाऊंगा ।सिर्फ तुम ही तुम,नज़र में चार सूं ,बोल क्या तन्हाई  में ,रह पाऊँगा ।  बेखबर था ,बेबफा हर कोई है ,किस-किस का दिल

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हिंदी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें

14 सितम्बर 2015
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रे मन मेरे !

18 सितम्बर 2015
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मत व्यथित हो मन मेरे ,मौसम में ढलना सीख ले ,छोडो अंधेरों से वफ़ा ,आंधी में जलना सीख ले ।फूल हों खुशबू ना हो,हो एक पर दोनों जुदा ,वक़्त के मानिंद तू ,करवट बदलना सीख ले । भूल जा कटु शब्द ,ना आये समय उपहार लेकर ,रख ह्रदय कोमल सदा,नटखट मचलना सीख ले । भोर निश्चित है, निशा के छोर पे निश्छल,अटल , हैं सभी छलि

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'सताता है ज़माना '

24 सितम्बर 2015
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बेजा सवाल करके , सताता है ज़माना ,काँटों के जाल रोज,बिछाता है ज़माना ।कैसे सुनाऊँ उनके ,गुनाहों की दास्तान ,कमजोर को बे-वक़्त .मिटाता है ज़माना ।मेहनत से जिसने,चार निवाले ही जुटाए हैं ,उस पे ही उँगलियाँ क्यों ,उठाता है ज़माना ।पहले तो बेकुसूर की ,गर्दन तराशता हैं ,फिर शीश इबादत में ,झुकाता है ज़माना ।

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''जलती मशालों में है''

7 अक्टूबर 2015
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जो हिफाजत की, जलती मशालों में हैं ,हर जुबाँ पर,  सुलगते सवालों में हैं ।है तो जिंदा मगर ,मौत के खौफ से ,ना अधेरों में है,ना उजालो में है ।ज़िन्दगी की सज़ा ,ज़िन्दगी बन गई ,ऐसा किस्सा बहुत कम,मिसालों में है ।प्यार बढ़ता है जब, बेखुदी देखकर ,लुत्फ़ भी क्या गज़ब,उन उबालों में है ।तख़्त ना ताज़ ,ना ये महल चाहिए

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छोड़कर पीछे अंधेरे ,रोशनी में आ गए

29 अक्टूबर 2015
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छोड़कर पीछे अंधेरे ,रोशनी  में  आ   गए ,मिल गईं ताज़ा हवाएं ,ज़िन्दगी को पा गए ।जी रहे थे यूँ तो हम भी,थी घुटन हर सांस में,सांस ली हमको लगा फिर ताजगी में आ गए ।आग से निकले तो,दरिया मिल गया मोड़ पर ,फिर बुझाई प्यास हम ,पाँव  भी  सुस्ता  गए ।मुश्किलें तो थीं संभलता चल पड़ा वो आदमीं,धूप  में  जलते ,पिघलते ,

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चैन से सो जाऊं मुमकिन हो नहीं सकता

29 दिसम्बर 2015
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चैन से सो जाऊं मुमकिन हो नहीं सकता,कोई एक भी बैचैन है मैं सो नहीं सकता। तुम वक़्त की कीमत समझ कर बोलना,  बे-बजह खामोश चुप-चुप रो नहीं सकता।  लो कर दिया एलान तो अब जंग भी होगी, सिलसिला इतिहास का रंग खों नहीं सकता। आँख का पर्दा हटा फिर देख सूरज की तपिस,   शोला , दहकती  आग  हूँ  तू  छू  नहीं सकता। कोई ह

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