दीन - दशा है काम नहीं है,
दर्द में हूँ , आराम नहीं है ।
उगते सूरज , ढ़लती रातें,
दिन मिल जाये शाम नहीं है ।
अपने ही आंसूं पीता हूँ,
प्यास हमारी आम नहीं है ।
जो जी चाहे मोल चुका दो,
मेरा तो कोई दाम नहीं है ।
टूटा मन बिखरी बुनियादें,
ठहरा है नाकाम नहीं है ।
सांस - सांस कुर्बान ज़िन्दगी,
दी तुमको इलज़ाम नहीं है ।
इतना चुप , बुत हुआ आदमीं,
क्या , कुछ ये , पैगाम नहीं है ।
दिल , धड़कन बन गये किनारे,
जीना अब आसान नहीं है ।
लौ तो है बुझ गई रौशनी,
फिर भी वो गुमनाम नहीं है ।
छूने से कुम्लाह जाते हैं,
नाज़ुक वो , बदनाम नहीं हैं ।
कितना भी 'अनुराग' कीजिये,
बेगारी कोई काम नहीं है |