क्यों लहर बनकर किनारा ढूंढता है,
आदमी बुजदिल सहारा ढूंढता है।
प्यार का रिश्ता है मत तौहीन कर,
रे कम्बखत मेरा तुम्हारा ढूंढता है।
कोई बुलाता प्यार से आवाज़ देकर,
वो रात भर टूटा सितारा ढूंढता है।
इक मर्तबा नज़रें मिला फिर करना,
आज-कल छुपकर नज़ारा देखता है।
यारो तज़ुर्बा हो गया अपने खिलाफ,
साथ जब अपना-हमारा छोडता है।
मत हवा दो बुझ रहीं चिंगारियां को,
क्यों जान मुर्दों में दुबारा फूंकता है।
सरहदों कैद से आज़ाद है ताज़ा हवा,
सुरीली तान ,मीठा तराना गूंजता है