वो मेरे दर्द से वाफिक तो है,मगर शामिल नहीं है,
यहाँ पे रास्ता तो है मुसाफिर,मगर मंजिल नहीं है |
यूँ तो वो मेरे दिल के,बहुत नजदीक होते हैं लेकिन,
वो जानते हैं यकीनन,मेरे हमदर्द के काबिल नहीं हैं |
तेरी बातों से बिस्मिल हैं आहें ,निगाहे आबरू तक ,
हमें अब भी सकूं है,तू जो हो ,मगर कातिल नहीं है |
मुझे मालूम है जी हाँ ,बखूबी,मेरी औकात क्या है,
आईना सच ही बोलेगा हकीकत तुझे मालूम नहीं है ।
जी मैंने आइनों के दरमियाँ,दीपक जला के रख दिये,
तुम्हें पहचान लूँगा रोशनी,तुम्हारे पांव में पायल नहीं है।