सौजन्य :-ग़ज़ल संग्रह "मैं सोने की चिड़िया हूँ"से
तेरी तस्वीरों पर इक पैगाम लिखा है,
दिल के हर कोने में तेरा नाम लिखा है।
है सोने का फ्रेम मगर आईना टूटा,
असली औ नकली का अंतर जान चुका है।
हैं नाजुक हालात संभालेंगे कितना,
बिना तराशा हीरा भी बे-दाम बिका है।
मैं मन का सौदागर हूँ तन की मंडी में,
बे-जां चीज़ों पर ही महंगा दाम लिखा है।
खत का जब मजमून पढ़ा तो दिल रोया,
अश्कों की स्याही ने जो अंजाम लिखा है।
अब इंतज़ार में खुली रहेंगी ये आँखें,
अभी हमारे लिए बहुत कुछ काम रखा है।
हांसिल है हर सुख लेकिन खालीपन है,
किस्मत ने'अनुराग'हमें गुमनाम रखा है।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग' Dt.-17032016 CRAI LLC 00L