हैं तेरे और मेरे बीच की ये दूरियां,
बनेगी पुल कभी तो हमारे दरमियाँ ।
कभी तो दो घडी ,खुद से मिलो ना,
समझ पाओगे तुम, तुम्हारी खूबियाँ ।
चमकते, हो गए मशहूर मोती दोस्तों,
किसी गहराई गुम हो गई हैं सीपियाँ ।
वक्त से आगे निकल आया मुसाफिर,
रहेंगी याद कब कितनी मेरी कुर्बानीयाँ ।
तरोशोगे कभी बुत आइनों से जब ,
पिघल जायेंगी सब खुश-फहमियाँ ।
खुदाया बंदगी काम आ गई मासूम की,
लहर के साथ आएँगी किनारे कश्तियाँ ।
अंधेरों से उजाले जोड़ दो'अनुराग'तुम ,
बढाओ हाथ आगे,थाम लो नजदीकियां।