जीत तुम्हीं से,हार तुम्हीं से,
जीवन की रफ़्तार तुम्हीं से।
कितना भी समझालूं दिल को,
करता है ये प्यार तुम्हीं से।
प्रेम पथिक हूँ मंज़िल तुम हो,
इस पथ का विस्तार तुम्हीं से।
इन नयनो की ज्योति में भी,
शुभ-मंगल आकार तुम्हीं से।
स्वांस-हृदय की सारी गणना,
सबका ही आधार तुम्हीं से।
ज्ञात हुआ अज्ञात सत्य का,
अभिनन्दन,आभार तुम्हीं से।
मर्यादित जीवन की गरिमा,
शोभित भी साकार तुम्हीं से।
चित-चरित्र 'अनुराग'समरपण,
मिलता है अधिकार तुम्हीं से।