है तेरे-मेरे एहसासों की धूप गुनगुनी,
संदल बदन शबनमीं साया रूप चांदनी।
फिर बसंत सा निखर उठा द्रित गात तुम्हारा,
हो तरूमाला अभिसार लता तुम पुष्प-पल्लवी।
निर्झरी नीरजा अल्हड़पन इतराती चंचलता,
हो बरखा ऋतु की प्रथम बूँद सी पुण्य पावनी।
मृगनयनी कटि धनुष अधर रस मधुशाला हो,
श्वेत दन्त घनश्याम केश मधुर मुस्कान दामिनी।
तुम भावों से भरी प्रेम ममता-मय सहज समर्पित,
सृजन प्रकृति का अभिनन्दन संकल्प
बर्षा,ग्रीष्म,बसंत,शरद ऋतु की समरसता हो,
संस्कार के सृजन बांटती अर्पित सत्य कामिनी।
साँसों में अनुगूँजित हो शब्दों का आलाप मधुर,
तुम मन की वीणा के स्वर हो प्रेम वाहिनी।
हो तरूमाला अभिसार लता तुम पुष्प-पल्लवी।
निर्झरी नीरजा अल्हड़पन इतराती चंचलता,
हो बरखा ऋतु की प्रथम बूँद सी पुण्य पावनी।
मृगनयनी कटि धनुष अधर रस मधुशाला हो,
श्वेत दन्त घनश्याम केश मधुर मुस्कान दामिनी।
तुम भावों से भरी प्रेम ममता-मय सहज समर्पित,
सृजन प्रकृति का अभिनन्दन संकल्प
बर्षा,ग्रीष्म,बसंत,शरद ऋतु की समरसता हो,
संस्कार के सृजन बांटती अर्पित सत्य कामिनी।
साँसों में अनुगूँजित हो शब्दों का आलाप मधुर,
तुम मन की वीणा के स्वर हो प्रेम वाहिनी।
श्वेत दन्त घनश्याम केश मधुर मुस्कान दामिनी।
तुम भावों से भरी प्रेम ममता-मय सहज समर्पित,
सृजन प्रकृति का अभिनन्दन संकल्प
बर्षा,ग्रीष्म,बसंत,शरद ऋतु की समरसता हो,
संस्कार के सृजन बांटती अर्पित सत्य कामिनी।
साँसों में अनुगूँजित हो शब्दों का आलाप मधुर,
तुम मन की वीणा के स्वर हो प्रेम वाहिनी।
संस्कार के सृजन बांटती अर्पित सत्य कामिनी।