मेरी उलझन को भी सुलझाता कोई,
राह भटका हूँ कि ,मिल जाता कोई ।
रोक देते मुश्किलें,वो मोड़ देते आंधियां,
फिर हौंसलों को राह दिखलाता कोई।
हैं अँधेरे ,हो रही कम ,भोर की संभावना ,
फिर रखे सूरज हथेली पे चला आता कोई।
गर्दिशों को क्या हवन,कर पाएंगी ये वेदीयां,
आहुति के वास्ते क्या-क्या स्वाहा करता कोई ।
यूँ ना दामन छोड़ना ,उम्मीद का है मशवरा ,
हैं बेरहम हालात तो,निश्चय ही टकराता कोई ।
मोड़ देता है कभी तिनका भी,रुख इतिहास का,
काश इस विश्वास का परचम भी लहराता कोई ।
क्यों ना हम फिर आजमा लें प्यार में'अनुराग'को,
देखते हैं टूटकर यूँ भी रिश्ता निभा पाता कोई ।