आग से शीशे पिघलते हैं कभी पथ्थर नहीं,
शेर तो बस शेर है उसे गीदड़ों का डर नहीं,
बेखौफ फौलादी जवानी हौंसले बारूद हैं,
इनसे वतन आवाद है तलवार है खंज़र नहीं।
ये और दिन ज्यादा रह ना सकेंगी म्यान में,
जीत ना पाएं जिसे ऐसा कोई मंज़र नहीं।
तुम वक़्त की आब-ओ-हवा रूबरू हो जाइए,
मेहरबाँ मिल जाएंगे दिल का कोई रहवर नहीं।
क्या हो गया है आपको कितना तराशोगे,
मैं आज भी इंसान हूँ रहा की ठोकर नहीं।
आजमा कर देखलो पुख्ता करो अपना यकीं,
मैं हूँ गुलिस्तां प्यार का महका हुआ,बंजर नहीं।
किसने बोला था तुम्हें,पर्दे में रखना ज़िन्दगी,
क्यों क़ैद में रख्खा परिंदो सा उगाये पर नहीं।