छोड़कर पीछे अंधेरे ,रोशनी में आ गए ,
मिल गईं ताज़ा हवाएं ,ज़िन्दगी को पा गए ।
जी रहे थे यूँ तो हम भी,थी घुटन हर सांस में,
सांस ली हमको लगा फिर ताजगी में आ गए ।
आग से निकले तो,दरिया मिल गया मोड़ पर ,
फिर बुझाई प्यास हम ,पाँव भी सुस्ता गए ।
मुश्किलें तो थीं संभलता चल पड़ा वो आदमीं,
धूप में जलते ,पिघलते ,रास्तों पर छा गए ।
देर तक टकराए तूफां से ,कई बुझते चिराग,
साजिशों में मर गए ,महफूज थे घर आ गए ।
दोस्तों को दोस्ताना , गर निभाना आ गया ।
शर्तीयाँ फिर गुल खिलेंगे,जो कहीं मुरझा गए ।
वक्त की शै -मात से ,बचता नहीं कोई यहाँ ,
डर गए 'अनुराग'क्यों,फिर किसलिए घबरा गए ।