खामोशी के साथ गुजर जाने दो शोर,
लेकर नई रौशनी आती होगी भोर |
हो ना हो अपना ही सिक्का खोटा हो,
सांप आसतीं में पलते हो घर में चोर |
कतरा-कतरा पिरो लिया उम्मींदों को,
कहीं टूट ना जाए नाजुक मन की डोर |
खुले हुए थे केश अचानक उलझ गए,
कभी-कभी जीवन में यूँ ही आते मोड़ |
हो कितना भी दर्द सहन कर लेती माँ,
ममता जब सारी मर्यादा देती तोड़ |
नहीं चाहिए मुफ्त,परे एहसान हटा ना,
ना रुकना,ना झुकना,ना होगें कमजोर |
बहशी होती भूख,प्यास कुछ कर देगी,
काश संभल जाते नेता, सत्ता, गठजोड़ |